Warning: Undefined variable $td_post_theme_settings in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/news/wp-content/themes/Newspaper/functions.php on line 54
India hits back at pakistan, for rising wani encounter at UN
Home Delhi भारत को संयुक्त राष्ट्र में गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं

भारत को संयुक्त राष्ट्र में गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं

0
भारत को संयुक्त राष्ट्र में गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं
India hits back at pakistan, for rising wani encounter at UN
India hits back at pakistan, for rising wani encounter at UN
India hits back at pakistan, for rising wani encounter at UN

कश्मीर में बुरहान वानी की मौत के बाद शुरू हुई हिंसा को लेकर पाकिस्तान द्वारा इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाने के बाद भारत द्वारा इस मुद्दे पर आक्रामक रुख अपनाया गया है। यूएन में भारत के प्रतिनिधि सैय्यद अकबरुद्दीन ने पाकिस्तान को आतंकवाद का सबसे बड़ा पनाहगार बताते हुए कहा है कि भारत के पड़ोसी देश में मानवाधिकारों के कोई मायने नहीं हैं।

वैसे भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की आतंकी हरकतों की दलील प्रस्तुत करने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता तथा आवश्यकता इस बात की है कि आतंकवाद के मुद्दे पर भारत संयुक्त राष्ट्र के सामने गिड़गिड़ाने जैसी कवायद न करे तथा पाकिस्तान को माकूल जवाब देने का खुद ही साहस दिखाए।

अराजकता, अमानवीयता तथा आतंकवाद का पर्याय बन चुके पाकिस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर में बुरहान वानी की मौत के बहाने भारत पर जिस तरह से कूटनीतिक दबाव बढ़ाने की कोशिशें की जा रही हैं उससे स्पष्ट है कि पाकिस्तान कश्मीर में जानबूझकर ऐसे हालात पैदा करना चाहता है कि राज्य में भारत की शासन-सत्ता के प्रति आक्रोश निरंतर बढ़ता रहे तथा पाकिस्तान इस मुद्दे को भुनाने में लगातार सफलता अर्जित करता रहे।

पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकारों का जो मुद्दा उठा रहा है वह बेहद ही हास्यास्पद एवं शर्मनाक है क्यों कि पाकिस्तान में तो मानवाधिकारों के कोई मायने नहीं होते तथा वहां के नागरिक तो आतंकमय माहौल में जीवन व्यतीत करने के लिये अभ्यस्त से हो चुके हैं।

पाकिस्तान के एक मोहल्ले में अगर कोई बम विस्फोट होता है तो दूसरे ही मोहल्ले के लोगों में कोई प्रतिक्रिया नहीं होती। लोग खून-खराबे के माहौल में जीवन व्यतीत करने को अपनी किस्मत ही मान चके हैं। जबकि भारत में अगर कहीं कोई आतंकी घटना होती है तो देश के सभी धर्मों और जातियों के लोगों में इसके खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया होती है तथा आतंकवाद को नेस्तनाबूत करने व आतंकियों को सबसे सिखाने के लिये पूरा देश उठ खड़ा होता है।

आशय स्पष्ट है कि भारत के लोग पाकिस्तान की अपेक्षा ज्यादा मानवतावादी, देशभक्त एवं संवेदनशील हैं। पाकिस्तान अगर कश्मीर में बुरहान वानी की मौत को मानवाधिकारों का उल्लंघन करार दे रहा है तो मानवाधिकारों का हत्यारा तो पाकिस्तान को ही माना जायेगा। क्यों कि बुरहान वानी जैसे लोग पाकिस्तान के मोहरे के तौर पर ही तो काम करते हैं।

बुरहान जैसे लोगों को पाकिस्तान द्वारा अपने स्वार्थी एवं कुटिल इरादों को पूरा करने के लिये इस्तेमाल किया जाता है। पाकिस्तान को अगर मानवाधिकारों की इतनी ही चिंता है तो वह अपनी गिरेबां में झांकने और अपने अंदरूनी स्तर पर मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने का साहस क्यों नहीं दिखाता?

पाकिस्तान में आतंकी हमले में एक सैकड़ा से ज्यादा स्कूली बच्चों की मौत हो जाती है तथा पाकिस्तान गुनाहगारों को सजा देने के बजाय सिर्फ घडिय़ाली आंसू बहाता रह जाता है तो क्या यह मानवाधिकारों का उल्लंघन व मानवीय मूल्यों के प्रति पाकिस्तान की घोर संवेदनहीनता का स्पष्ट प्रमाण नहीं है?

पाकिस्तान दुनिया के देशों से कर्ज लेकर भारत के खिलाफ जंग लडऩे की बेवकूफाना फितरत पालता रहता है और वहां के लोग बदहाली, भय और भूख का सामना करते हुए घुट-घुटकर मरने के लिये मजबूर रहते हैं तो क्या यह शर्मनाक दृश्य मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है?

पाकिस्तान को चाहिए कि वह मानवाधिकारों के मुद्दे पर भारत को उपदेश देने और संयुक्त राष्ट्र को बरगलाने की कोशिश न करे तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता एवं मानवीय मूल्यों के आलोक में अपने देश की भारत के प्रति वैमनस्यपूर्ण सोच में बदलाव लाने की कारगर पहल करे।

पाकिस्तान आतंकवाद के सहारे भारत पर कूटनीतिक बढ़त हासिल करने के जिस मिशन पर काम कर रहा है, वह मिशन आगे चलकर पाकिस्तान के अस्तित्व के खत्म होने का ही कारण बनने वाला है। क्यों कि पाकिस्तान की सरजमीं पर पल रहे आतंकवादी आगे चलकर उसी का नामोनिशान मिटाने में अपनी पूरी ऊर्जा लगाएंगे।

साथ ही भारत को भी यह सोचना होगा कि पाकिस्तान को उसकी सीमाओं का ज्ञान कराने तथा आतंकवाद के खात्मे की दृष्टि से संयुक्त राष्ट्र की कोई खास उपयोगिता व प्रासंगिकता नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की मंशा काफी जटिल और इरादे अत्यंत कुटिल हैं तथा उक्त देश किसी भी मुद्दे पर भारत की कारगर मदद नहीं करने वाले हैं।

संयुक्त राष्ट्र को लेकर भारत को अपनी प्रतिबद्धता कायम रखना उसकी कूटनीतिक जरूरत हो सकती है लेकिन मजबूरी हरगिज नहीं। भारत को चाहिए कि वह हर मुद्दे का समाधान संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले ढूंढऩे के बजाय खुद के स्तर पर कुछ कारगर पहल करे।

खासकर पाकिस्तान एवं पाकपोषित आतंकवाद के मुद्दे पर तो भारत को अपने दम पर कुछ साहसिक कदम उठाना ही होगा। क्योंकि खुद के वजूद एवं अस्मिता को ललकारे जाने पर दुनिया के अन्य राष्ट्र ऐसा ही साहसिक दृष्टिकोण अपनाते हैं तथा उनके द्वारा तब संयुक्त राष्ट्र के मापदंडों में मूल्यों की कोई परवाह नहीं की जाती है। ऐसे में सिर्फ भारत ही संयुक्त राष्ट्र की झंडाबरदारी क्यों करता रहे?

सुधांशु द्विवेदी