यह सवाल आम चर्चा का है कि कश्मीर की स्थिति का स्थाई हल क्या है, अधिकांश लोगों का मानना है कि आतंकवादियों एवं देशद्रोही तत्वों से सख्ती से निपटा जाए कुछ लोगों का मानना है कि अलगाववादियों से चर्चा कर स्थिति को सामान्य किया जाए।
पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाव की बात होती है, अमरीका जो अक्सर पाकिस्तान की नीतियों का समर्थन करता था, उसने स्पष्ट कहा है कि कश्मीर का मामला भारत का आंतरिक मामला है, उससे भारत सरकार ही निपटेगी।
अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा और हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की निकटता का परिणाम है कि अमेरिका भारत के साथ खड़ा है, उसने पाकिस्तान पर दबाव बनाया है कि आतंकवाद को समाप्त करे। यह सच्चाई है कि पाक कब्जे वाले कश्मीर में पाकिस्तान सरकार की एजेन्सी आईएसआई के द्वारा करीब चालीस आतंकवादी तैयार करने के केन्द्र संचालित हो रहे हैं।
पाकिस्तान की सेना भी भारत में आतंकी घुसपैठ कराने की साजिश करती है, पाकिस्तान का यह दावा झूठा है कि वह आतंकवादियों के खिलाफ कार्यवाही करता है। इसी प्रकार भारत की सीमा भी सुदृढ़ हुई है। रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर के स्पष्ट निर्देश हैं कि जो घुसपैठ करे, उनका सफाया कर दो, इसलिए घुसपैठ करने वाले मारे जा रहे हैं।
हाल ही में हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने पर अलगाववादियों के आव्हान पर कश्मीर के देशद्रोही एवं पाकिस्तान के समर्थकों ने सुरक्षा बलों पर पथराव किया। उन पर हथगोले फेंक, गोलियां दागी, इस संघर्ष में 34 लोग मारे गए, करीब तीन सौ लोग घायल हैं। इनमें सुरक्षा कर्मी भी शामिल हैं।
कट्टरपंथी हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष सैयद अलीशाह गिलानी को गिरफ्तार कर लिया गया है। कश्मीर की स्थिति ऐसी क्यों है, इसके लिए इतिहास के घटनाक्रम को समझना होगा। जिस तरह पहले गृहमंत्री सरदार पटेल ने सभी स्टेट का विलय भारत में किया था। हैदराबाद के निजाम ने आनाकानी की तो पटेल ने सुरक्षा बल भेजकर उसे भारत में विलय के लिए राजी कर लिया।
आतंकवादी मजहबी जुनून पैदा कर मुस्लिम युवकों को आतंकी बनाते हैं। अब तो इस्लामी आतंकवाद दुनिया के लिए गंभीर खतरा बन गया है। हाल ही में फ्रांस में तीसरा आतंकी हमला हुआ, वहां के समुद्र तट पर स्थित नीस नगर में जब नेशनल डे परेड को देखने हजारों की भीड़ जमा थी, तभी एक मोहम्मद नामक आतंकी ने एक विस्फोटक भरे ट्रक को भीड़ में घुसाकर विस्फोट कर दिया।
निर्दोष 84 लोग मारे गए। इनमें मासूम बच्चे भी हैं। मजहबी जुनून पैदा करने का सिलसिला जारी है। अब तो यह मानना भी गलत है कि इस्लामी बुद्धिजीवी आतंकवाद के खिलाफ हैं, इसका ताजा उदाहरण है, इस्लाम के विवादित विद्वान जाकिर नाइक। भारत में उनके भाषणों के टेपों को खंगाला जा रहा है।
फ्रांस, बांग्लादेश में उनकी तकरीरों को प्रतिबंधित कर दिया है। उन्होंने जुम्मे (शुक्रवार) के दिन सऊदी अरब से स्काइप के माध्यम से प्रेस कांफ्रेंस कर स्वयं को शांतिदूत बताते हुए कहा कि युद्ध में आत्मघाती हमले जायज हैं।
अब सवाल यह है कि जाकिर जिहादी आतंकवाद को जंग मानता है कि नहीं? जितने भी आतंकी सरगना है, आईएस का सरगना बगदादी हो या पाकिस्तान में रहकर हाफिज सईद कश्मीर के लोगों को भारत के खिलाफ जंग के लिए भडक़ाता हो, दोनों सरगना इसे जंग ही कहते है।
जिन मुस्लिम युवकों में मजहबी जुनून पैदा कर उन्हें आतंकी बनाया जाता है, उन्हें भी इस्लाम के लिए जंग के लिए प्रेरित किया जाता है? यह भी लालच दिया जाता है कि इस जंग में मारे जाओगे तो जन्नत मिलेगी, वहां हूरें हैं, अर्थात सुंंदर लड़कियां तुम्हारे ऐशो आराम के लिए उपलब्ध रहेगी। इसलिए तुम काफिरों के खिलाफ जंग करो।
इस जंग में आत्मघाती हमलों को बड़ी चालाकी से जाकिर उचित ठहराते हुए इस्लाम के लिए जंग ही मानते हैं। चाहे वे शब्दों से फ्रांस जैसे आतंकी हमलों की निन्दा करे, लेकिन वे अपनी तकरीरों से मुस्लिमों को आतंकवाद बनाने का जुनून पैदा करने का अभियान चला रहे है, ऐसे अन्य इस्लामी बद्धिजीवी हैं जो इस प्रकार के भाषणों के द्वारा जिहादी आतंकवाद को पुष्ट करते हैं।
इसके साथ ही इस सच्चाई को भी समझना होगा कि जहां इस्लामी शरीयत के कानून है, वहां लोकतंत्र और वैचारिक आजादी को पूरी तरह दफन कर दिया जाता है, पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देश में लोकतंत्र का केवल मुखौटा है। जो जिहादी आतंकवादी दुनिया का इस्लामीकरण करने के लिए जंग कर रहे है उनमें इराक और सीरिया मनुष्यों के खून से लथपथ है।
दो तरह के संकट गंभीर होते जा रहे हैं, एक है इस्लामी जुनून पैदा करने का अभियान और प्रत्यक्ष में इन आतंकी दरिन्दों से कैसे निपटा जाय। जब भी फ्रांस या भारत में आतंकी हिंसा की घटना होती है तो उसकी जुबानी निन्दा सब करते हैं, हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनिया में घूमकर आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एक जुटता की अपील की है।
इसका कमोबेश प्रभाव भी हुआ है। अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भी इसी तरह की बातें करते हैं, लेकिन आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर रणनीति नहीं बन सकी है। हालांकि अमरीका, रूस और फ्रांस जैसे देश आतंकी ठिकानों को निशाना बनाने के लिए ड्रोन हमले कर रहे हैं। आतंकी मारे भी जा रहे हैं।
इसके बाद भी जेहादी आतंकवाद का नेटवर्क फैलता जा रहा है। हमारे यहां मुहावरा है कि – ‘दर्द बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा की। इसी संदर्भ में भारत की स्थिति का आंकलन करना होगा। ऐतिहासिक सच्चाई यह है कि आजादी के बाद पाकिस्तान की ओर से कबाइली हमला हुआ। भारतीय सेना ने हमलावरों को खदेडऩा प्रारंभ किया, लेकिन तत्कालीन नेहरू नेतृत्व द्वारा लचीली और दब्बू नीति के कारण सेना के बढ़ते कदमों को रोक दिया गया।
इस कारण कश्मीर का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। इसे पाक कब्जे वाला (पीओके) कश्मीर कहा जाता है। इसे वापिस लेने की स्पष्ट नीति का अभाव है। दुनिया को इस सच्चाई से अवगत कराना होगा कि पाकिस्तान गत अरसठ वर्षों से भारत के भू-भाग पर बलात् कब्जा करके बैठा है। यही मुद्दा कूटनीतिक क्षेत्र में भारत को प्रभावी करना होगा, तभी पाकिस्तान की सच्चाई से दुनिया अवगत हो सकेगी।
भारत के लिए आंतरिक चुनौती यह है कि कश्मीर की स्थिति को कैसे सामान्य रखा जाय। वहां के अलगाववादी, ये पाकिस्तान के एजेन्ट की तरह काम कर रहे हैं। अब दुनिया के लिए खतरा बने इस्लामी स्टेट के झंडे फहराने वाले कश्मीर में हैं। वहां उपद्रव सुनियोजित ढंग से हो रहे हैं। सुरक्षा जवानों पर गे्रनेड एवं पत्थरों से हमले हो रहे है।
अब तो यह भी बताया जाता है कि हर पत्थर फेंकने वालों को पांच सौ रूपये दिये जाते हैं। इस संकट के निपटने का एक तरीका यही है कि हमलों का मुकाबला हथियार से ही किया जाय। दूसरा स्थाई हल यही हो सकता है कि कश्मीर की अलग पहचान बताने वाले अस्थाई अनुच्छेद 370 को समाप्त किया जाय। इससे देश के अन्य लोगों का आवागमन वहां होगा।
उद्योग, धंधे पैदा होंगे, वहां के युवकों को रोजगार मिलेगा और देशद्रोही तत्वों को नियंत्रित किया जा सकेगा। भाजपा के एजेन्डे का यह प्रमुख मुद्दा है। राष्ट्रहित में सभी राजनैतिक दलों को अस्थाई अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए सहमत होना चाहिए। कश्मीर की स्थिति से निपटने का हल इसके अलावा कोई विकल्प नहीं हो सकता।
जयकृष्ण गौड़
लेखक-राष्ट्रवादी लेखक और वरिष्ठ पत्रकार