पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए राज्य में प्रभावशाली राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव की जा रहीं जोरदार तैयारियों के बीच भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद नवजोत सिंह सिद्धू ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है वहीं उन्होंने भाजपा भी छोड़ दी है।
संभावना जताई जा रही है कि सिद्धू दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी आम आदमी पार्टी में शामिल होंगे। बताया जा रहा है कि आप के शीर्ष नेताओं के साथ सिद्धू की इस संदर्भ में बातचीत हो चुकी है तथा तय रणनीति के अनुसार ही उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दिया है।
अब सिद्धू आम आदमी पार्टी में शामिल हों या अन्य किसी राजनीतिक दल की ओर रुख करें यह उनकी मंशा पर निर्भर करता है लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर सिद्धू आम आदमी पार्टी में शामिल होते हैं तथा उन्हें आप की ओर से पंजाब में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बना भी दिया जाता है तो वह पार्टी के लिए राजनीतिक दृष्टि से कितने उपयोगी साबित होंगे।
साथ ही यह भी विचारणीय विषय है कि क्या आम आदमी पार्टी सिद्धू के नाज-नखरे उठाने के साथ ही उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के पूरा करने में सफल हो पाएगी। वैसे भी सिद्धू ने किसी सैद्धांतिक प्रतिबद्धता या वैचारिक क्रांति के चलते भारतीय जनता पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है।
उनके इस्तीफे की असली वजह यह है कि भाजपा द्वारा उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा नहीं किया जा सका तथा भाजपा की पंजाब की राजनीतिक व्यवस्था का निर्धारण सिद्धू की शर्तों पर नहीं किया गया।
जहां तक सिद्धू की लोकप्रियता का सवाल है तो सिद्धू पूर्व क्रिकेटर होने के साथ-साथ राजनेता भी हैं इसलिए उनकी कुछ लोकप्रियता तो होगी ही। लेकिन यह बात भी यही है कि सिद्धू की तुकबंदी और जुमलेबाजी कई बार इतनी ज्यादा आपत्तिजनक होती है कि उनको खुद ही बैकपुुट पर आना पड़ जाता है।
यहां यह बता दें कि गुजरात विधानसभा के 2012 के चुनाव प्रचार के लिए गुजरात में नवजोत सिंह सिद्धू को भाजपा की ओर से स्टार प्रचारक बनाया गया था तब नवजोत सिंह सिद्धू नरेन्द्र मोदी का खासमखास बनने के चक्कर में धुंआधार चुनाव प्रचार कर रहे थे। लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान ही उन्होंने अति उत्साह में आकर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और तत्कालीन गुजरात परिवर्तन पार्टी के नेता केसूभाई पटेल को गौमांस खाने वाला करार दे दिया था।
सिद्धू के इस बयान पर इतना अधिक बवाल मचा था कि उन्हें भाजपा के बड़े नेताओं फटकार सुनने के साथ-साथ उन्हें गुजरात के चुनाव प्रचार से वापस भी लौटना पड़ गया था। उसके बाद से सिद्धू भारतीय जनता पार्टी में रहकर खुद को स्थापित करने के लिए संघर्ष करते रहे तथा अब तक उन्हें कुछ खास सफलता अर्जित नहीं हो पाई थी।
राजनीतिक जगत में एक से एक लोकप्रिय नेता होते हैं तथा उनका पूरा जीवन देश और जनमानस की सेवा के लिए समर्पित रहता है लेकिन साथ ही उनमें उतने ही उच्चकोटि का स्वानुशासन भी पाया जाता है जो उनके सतत राजनीतिक उत्कर्ष तथा सुखद व यशस्वी जीवन का आधार बनता है। लेकिन उन नेताओं में सिद्धू जैसा मसखरापन नहीं पाया जाता।
पंजाब के मौजूदा राजनीतिक हालातों के अनुसार आम आदमी पार्टी या अन्य कोई भी राजनीतिक दल सिद्धू को चुनाव प्रचार की कमान भी सौंपें तो भी उत्कृष्ट सफलता की कोई गारंटी नहीं होगी क्यों कि सिद्धू अपने लटकों-झटकों से भीड़ जुटाने में तो कामयाब हो जाएंगे लेकिन उनकी अपील पर पंजाब के सभ्य-सभ्रांत लोग किसी भी पार्टी को वोट देने के लिए भी तैयार हो जाएंगे इस बात की संभावना कम ही है।
क्योंकि राज्य में स्वाभाविक विपक्षी राजनीति के लिए कांग्रेस पार्टी है जिसमें कैप्टन अमरिंदर सिंह व प्रताप सिंह बाजवा जैसे प्रतिबद्ध नेताओं की फौज है। साथ ही यह ऐसे नेता हैं जो सिर्फ चर्चा में आने के लिए या किसी पर दबाव बनाने के लिए पंजाब राज्य व पंजाबवासियों की सेवा का दावा नहीं करते बल्कि सेवाभावी जुनून उनके संस्कार व कार्यशैली में पाया जाता है।
आम आदमी पार्टी को पिछले लोकसभा चुनाव में पंजाब में चार सीटें प्राप्त हो गई थीं तब से केजरीवाल पंजाब में अपनी पार्टी की राजनीतिक सफलता को लेकर फूले नहीं समा रहे हैं। अभी पिछले दिनों ही उनके एक करीबी ने अति उत्साह में आकर अपनी पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र की तुलना गुरु ग्रंथ साहिब से कर दी। उसके बाद सिख धर्म के पुरोधाओं की लताड़ के बाद केजरीवाल को माफी मांगनी पड़ी।
अब केजरीवाल अगर सिद्धू के सहारे पंजाब में अपनी राजनीति चमकाने की फितरत पालें तो सिद्धू की अगंभीरता और नैतिक अनुशासन का अभाव आम आदमी पार्टी की समस्त चुनावी संभावनाओं को मटियामेट भी कर सकता है।
सुधांशु द्विवेदी