राजकुमार अग्रवाल
कैथल। लगता है हमारे देश में कानून बनाने वाले बुद्धिजीवी लोग भी नेताओं की तरह वोट या सपोट लेने और अपने आकाओं को खुश करने के लिए कानून बना कर लागू करवा देते हैं।
भारत जैसे बड़े देश में जो भी नया कानून बनाया जा रहा है उसका का सही या गलत इस्तेमाल होगा इस बारे में शायद ही किसी नेता, या कानून बनाने वाले ने सोचा हो। लगता है इन कानूनों के चलते भविष्य के परिणामों के बारे में किसी ने सोचने की जहमत नहीं उठाई। इसके क्या परिणाम निकलेंगे किसी ने इसके विपरीत सोचने की कोशिश नहीं की, क्या हमारे देश की सरकार या कानूनविदो ने कभी इस बात पर भी चर्चा की है की एक तरफा कानून बनाने से देश को कितना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
भारत देश का हर आम आदमी अब घर से बाहर निकलने के लिए सौ बार सोचेगा। पुरुष प्रधान कहे जाने वाले भारत में अब पुरुषों का अस्तित्व नाम मात्र रह गया है। जो थोड़ा बहुत बचा है वह इस तरह के एक तरफा सोच वाले कानूनों से खत्म हो जाएगा और अगर हमारे देश में राजनितिक आकाओं को खुश करने का यही अफसरी तरीका कायम रहा तो वह दिन दूर नही जब भारत में हम पुरुष नामक प्राणी को ढूढ़ते रह जाएंगे।
भारत आज 21 वीं सदी में प्रवेश करने की बात कर रहा है और सोच 15वीं सदी की अपना रहा है, क्या यही है हमारे आधुनिक भारत की पहचान? कब सबक लेंगे हम? दुनिया की नजरों में तो भारत पहले ही इतना गिरा हुआ है की कुछ कहते और लिखते भी शर्म आती है, और रही सही कस्र हमारे देश का अंधा कानून और राजनेता भारत को पुरुष विहीन बनाने की नीतिया लागू करवा कर पूरी कर देंगे।
दहेज उत्पीडन कानून का हमारे देश में किस तरह इस्तेमाल हो रहा है यह सब जानते है, और अब भारत की पिछली कांग्रेस सरकार ने महिला उत्पीडऩ के खिलाफ कानून बना कर जो वाहवाही लूटी, अब उसका भी बेजा इस्तेमाल होना शुरू हो गया है या फिर यूं कह लीजिये की हो रहा है। महिला उत्पीडऩ नहीं होना चाहिए ये सही है, लेकिन क्या पुरुष का उत्पीडऩ होना चाहिए? इस बारे में देश की सरकार या कानून बनाने वालों ने कभी नही सोचा। क्या सिर्फ पुरुष ही महिला का उत्पीडऩ करते है, क्या महिला कभी पुरुष का उत्पीडऩ नही करती?
ऐसा नामुमकिन है क्योंकि आजकल भारत में महिला और पुरुष को बराबरी का दर्जा है पुरुषों की तरह महिलाएं भी हर क्षेत्र में अपनी भागीदारी कर रही है, हम आए दिन टीवी, और समाचार पत्रों में पढ़ते है की फलां जगह एक मां ने अपने बेटे के साथ ये किया, एक बहन ने ये किया, एक पत्नी ने अपने पति के साथ ऐसा किया और इसी तरह पुरुषों के बारे में भी पढ़ते और सुनते है की फलां फलां जगह महिलाओँ के साथ इस तरह की घटनाएं घटी। फिर भारत में एक तरफा कानून क्यों, पुरुष उत्पीडऩ के खिलाफ कानून क्यों नहीं।
दहेज विरोधी कानून के गलत इस्तेमाल होने की वजह से भारत की माननीय अदालत को आखिर संज्ञान लेना ही पड़ा और कहना पड़ा की हमारे देश में दहेज उत्पीडन कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है जिसके चलते माननीय अदालत ने दहेज उत्पीडन कानून में कुछ बदलाव भी किए, क्योंकि महिलाएं इस कानून का फायदा उठाने लगी थी और ऐसा ही गलत इस्तेमाल होना शुरू हो गया है महिला उत्पीडऩ कानून का।
क्योंकि जिस तरफ दहेज विरोधी कानून में पुरुष पक्ष की एक नहीं सुनी जाती थी उसी तरह हमारे देश के नए महिला उत्पीडन में भी पुरुष की नही सुनी जाती, महिला ने जो कह दिया वो सही क्योंकि देश का कानून महिला का पक्षधर है महिला चाहे कितनी भी गलत हो उसकी कही हर बात सही मानी जाती है और कानून के हिसाब से पुरुष कितना भी सच्चा और साफ सुधरा हो उसकी कही हर बात झूठ का पुलिंदा। पुरुष को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए सबूत जुटाने पड़ते है जबकि महिला का कहना ही उसके हक का सबूत है।
कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं, आदमी बेबस है, कोई भी महिला आप पर राह चलते छेड़छाड़ का इलजाम लगा सकती है, आप गलत और महिला सही मानी जाएगी। माना की सही और गलत का फैसला करना हमारे देश में माननीय अदालत का काम है और हमारी न्यायपालिका कर भी रही है, लेकिन सोच किसी की भी गलत हो सकती है महिला की भी और पुरुष की भी इसलिए कानून में दोनों पक्षों को समान अधिकार मिलना चाहिएए न्याय एक तरफा नहीं।
देश में पिछले कुछ वषों में महिला उत्पीडऩ की बहुत सी दर्दनाक घटनाएं घटी जिसके लिए दुनिया भर में भारत को शर्मिंदगी उठानी पड़ी, देश की पिछली सरकार में अपनी नाकामयाबी छुपाने के लिए देश की जनता पर बल इस्तेमाल किया, जिसका सारे देश में विरोध भी हुआ तब जाकर एक नया कानून जन्मा महिला उत्पीडऩ कानून, जिसमे किसी महिला का पीछा करना, घूर कर देखना, अपशब्द बोलना, छेड़छाड़ करना, बलात्कार करना, जैसे अनेक शब्द जिसमे किसी महिला की मानहानि होती हो के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया, लेकिन इस कानून में पुरुष उत्पीडऩ होता है किसी महिला द्वारा उसके लिए किसी बात का शायद कोई उल्लेख नही किया गया।
इस नए महिला उत्पीडऩ कानून के चलते देश के कई नामी गिरामी लोग आज जेल की हवा खा रहे हैं, और कुछ आम जन भी इस कानून की चपेट में जेल की सलाखों के पीछे है जिन पर अभी उन पर फैसला होना बाकि है देश की कई माननीय अदालतों में ट्रायल चल रहा है लेकिन मेरी नजर में अभी तक देश भर में कोई ऐसा केस सामने नहीं आया की पुरुष उत्पीडन के मामले में कोई महिला जेल में बंद हो या जिस पर पुरुष उत्पीडऩ का केस चल रहा हो।
अभी पिछले दिनों हरियाणा के रोहतक में घटी घटना ने पूरे देश की जनता को सोचने पर मजबूर कर दिया की महिला उत्पीडऩ कानून कहा तक सही है, गौरतलब है की पिछले कुछ दिन पहले 2 युवा लड़कियों दुआरा चलती बस में और पार्क में युवकों को पीटने और वाह वाही लूटने का मामला सामने आया जिसके चलते हरियाणा की नामसमझ सरकार ने इन दोनों लड़कियों को ना केवल शाबाशी दी, बल्कि बिना मामले की तह तक जाए आनन फानन में सम्मानित तक करने का एलान कर डाला। आखिर मामला है क्या, कौन गलत और कौन सही? किसी ने भी जानने और सोचने की जहमत नही उठाई।
पुलिस भी नाकारा साबित हुई अपने आकाओं को खुश करने के लिए लड़कों को सलाखों के पीछे डाल दिया, लड़कियों को मर्दानी लड़कियों के नाम से नवाजा गया। हरियाणा की नई भाजपा सरकार इस मामले को लेकर कटघरे में गिर गई। मामला सोशल मिडिया में खूब उछला। एक के बाद एक लड़कियों के कई वीडियो सामने आने से मामला बेहद पेचीदा बनता जा रहा है। हमारे देश की एक महानता है की सौ गुनाहगार बच जाएं एक निर्दोष को सजा नही होनी चाहिए, लेकिन हरियाणा की बदनाम पुलिस का रवैया चौकाने वाला था ऐसा लग रहा है की एक निर्दोष और सजा जरूर मिलनी चाहिए चाहे उसके लिए सौ गुन्हगार बच जाएं।
इस मामले ने हमारे देश के कानून निर्माताओं को भी कटघरे में खड़ा कर दिया, देश की सरकार, राज्य सरकार, नेताओ को भी नही बक्शा इस मामले ने इन सबकी सोच पर ऊँगली उठ गई, सुनने और देखने वालों गवाहों के मुताबिक मामला बस में सीट के विवाद का बताया जा रहा है परन्तु घटिया मानसिकता ने और मानवता के गिरते स्तर ने इसे छेड़छाड़ का मामला बना कर पेश क्या किया की हरियाणा में तूफान आ गया।
मामले पर अभी कार्यवाही चल रही है नतीजा क्या होगा, कौन गलत है कौन सही यह तो जांच के बाद ही सामने आएगा लेकिन आज जिस गंभीरता इस मामले ने तूल पकड़ा है उसे देखते हुए महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है इस मामले को देख कर तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है, क्योंकि बस छेड़छाड़ का मामला जैसे ही सामने आया ठीक उसके कुछ समय बाद इन्ही लड़कियों का एक और वीडियो सामने आया जिसमे ये लड़कियां एक पार्क में किसी लड़के की पिटाई कर रही थी जो उस समय बेंच पर बैठा दिखाई दे रहा था।
इसलिए आखिर माजरा है क्या, ये मर्दानी लड़किया गंदी गंदी गालिया दे रही हैं, सवाल उठ रहा है कि छेड़छाड़ की घटनाएं इन्हीं 2 लड़कियों के साथ क्यों हो रही है? इनका वीडियो कौन बना रहा है, क्या ये सब एक सोची समझी साजिश है? इस तरह की घटनाओं को अंजाम देकर सुर्खियों में रहने की साजिश है या फिर कोई राजनितिक षड्यंत्र।
हरियाणा के रोहतक की जिन लड़कियों की बहादुरी को सभी जगह कसीदे पढ़े जा रहे हैं, इन लड़कियों के गांव की ही कुछ महिलाओं ने लड़कों के समर्थन में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। आरोपी युवक गांव आसन निवासी कुलदीप, दीपक और मोहित के पक्ष में 5 महिलाएं मंगलवार को कोर्ट पहुंच गई और उन्होंने लड़कों के समर्थन में गवाही दी। मीडिया के सामने दिए अपने बयानों में इन महिलाओं ने दावा किया कि वे बस में सवार थीं और सारा झगड़ा सीट को लेकर हुआ। उन्होंने न केवल आरोपी युवकों के वकील को एफिडेविट दिया, बल्कि एसपी के सामने बयान भी दर्ज कराए। कुलदीप के ताऊ रामचंद्र का कहना है कि लड़कों को झूठा फंसाया गया है। लड़कियों ने खुद ही वीडियो बनवाया है।
आरोपी पक्ष के वकील संदीप राठी ने बताया कि बस में सवार गांव गढ़ी सिसाना की बिमला देवी पत्नी ईश्वर ने एफिडेविट में कहा है कि उसने लड़कों से टिकट मंगवाई थी। तीन नंबर सीट दी गई। जबकि आठ नंबर सीट पर एक बीमार महिला को बैठाना था। इसी सीट पर दोनों लड़कियां बैठी हुई थीं। बिमला के मुताबिक लड़कों ने लड़कियों से बीमार महिला को सीट देने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया। वकील राठी ने बताया कि बुधवार को भी बस में सवार कुछ अन्य लोगों को बुलाया जाएगा। ताकि मामला साफ हो सके। इधर, गांव थाना खुर्द की ही एक अन्य महिला संतोष ने एफिडेविट के जरिए लड़कियों पर कई आरोप लगाए हैं।
हरियाणा सरकार ने बिना किसी नतीजे और बिना किसी सोच के लड़कियों को सम्मानित करने का एलान कर खुद को हीरो बनाने की कोशिश की लेकिन वहीं दूसरी तरफ पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री की पत्नी ने भी इन लड़कियों को अदालत का फैंसला आने से पहले और बिना मामले की गहराई तक जाए सम्मानित करने का एलान कर दिया। इस मामले में जिन लड़कों पर उंगलिया उठी उनकी कोई इज्जत नही है? समाज में घट रहीं इस तरह की घटनाओं पर फैसला लेना न्यायालयों को काम है पर महिला उत्पीडन कानून का वेजा इस्तेमाल हो रहा है इस पर बहस जरूर छिड़ गई है।
(यह लेख लेखक के निजी विचारों पर आधारित है, आप इससे सहमत हो यह जरूरी नहीं)