सुरक्षा बलों ने कश्मीर घाटी में हिजबुल मुजाहिदीन के तथाकथित कमांडर आतंकी बुरहान बानी को आठ जुलाई को मार गिराया।
बाईस साल का बुरहान पिछले छह-सात साल से घाटी में सक्रिय था। वह घाटी के स्थानीय मुसलमानों को आतंकी संगठनों में शामिल हो जाने के लिए तैयार करता था। इसके लिए अन्य साधनों के अतिरिक्त सोशल मीडिया का भी भरपूर उपयोग करता था। उस पर सरकार ने दस लाख का इनाम भी घोषित किया हुआ था।
आतंकियों के लिए वह उनका पोस्टर ब्वॉय था। यकीनन बुरहान का वर्णन करने के लिए यह शब्द मीडिया ने ही गढ़ा होगा। इससे आतंक के जगत में ही किसी भी आतंकी का रुतबा बढ़ता है। कद और रुतबा बढऩे से दूसरे युवक भी उस ओर आकर्षित होते हैं और उससे प्रेरित होते हैं।
आतंकी जगत के सूत्रधार, बुरहान बानी का इस्तेमाल इस काम के लिए भी कर रहे थे। मीडिया ने जाने अनजाने इसमें खूब मदद की और अब भी कर रहा है। कुछ राजनीतिज्ञ भी हवा का रुख देख कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं।
शेख अब्दुल्ला खानदान के चिराग उमर अब्दुल्ला कश्मीर घाटी के मुसलमानों को आश्वस्त कर रहे हैं कि चिन्ता मत करो, एक बुरहान के मारे जाने से आतंक का खात्मा नहीं होगा, अनेक नए बुरहान पैदा हो जाएंगे।
उधर, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में पिछले दिनों बहुत परिश्रम से मुसलमान युवकों का नया नायक जिसको तैयार किया गया था और जिसमें देश के अनेक राजनीतिक दलों ने बहुत मेहनत की थी, उस उमर खालिद ने भी उमर अब्दुल्ला की हां में हां मिलाते हुए कहा कि एक बानी की मौत से दूसरे बानी निकलेंगे। लेकिन इस नायक को साम्प्रदायिक न कहा जाए, इस लिए उन्होंने चे ग्वेवारा के नाम का सहारा लिया।
हैदराबाद विश्वविद्यालय में भी बुरहान बानी को शहीद घोषित करते हुए बाकायदा शोक सभा आयोजित की। इसके कारण विद्यार्थियों में विवाद भी हुआ। जम्मू कश्मीर के एक और नेता गुलाम नबी आजाद, जो सोनिया कांग्रेस के बड़े नेताओं में गिने जाते हैं चेतावनी दे रहे थे कि तसलीमा नसरीन और तारिक फतह कश्मीर के मसले पर कैसे बोल रहे हैं।
गुलाम नबी को गुस्सा था कि जब ये बोलते हैं तो इस्लाम की तौहीन होती है और उसे जम्मू कश्मीर के वाशिंदे भला कैसे सहन कर सकते हैं? उनका लहजा कुछ ऐसा था कि यदि उनका वश चलता तो वे तसलीमा नसरीन और तारिक फतह दोनों को ही पकड़ कर घाटी के आतंकवादियों के हवाले कर देते।
आजकल दुनिया में यह माहौल बनता जा रहा है कि पाकिस्तान आतंक फैलाने में आधिकारिक तौर पर मदद करता है। यानि आतंक और आतंकी पाकिस्तान की राज्य नीति का हिस्सा है। पाकिस्तान की कोशिश रहती है कि इस छवि को ठीक किया जाए।
इसलिए वह बुरहान की मौत पर चुप रह सकता था। लेकिन उसके चुप रहने से शायद घाटी में सक्रिय, उसके द्वारा नियंत्रित आतंकियों का हौसला गिरता। इसलिए पाकिस्तान ने सारी शर्म हया त्याग कर प्रधानमंत्री के स्तर पर बुरहान बानी की मौत पर दु:ख व्यक्त किया।
नवाज शरीफ ने बुरहान बानी की मौत पर कैबिनेट की विशेष मीटिंग बुलाई और उसमें बानी को शहीद घोषित करते हुए 19 जुलाई को पाकिस्तान में बानी की मौत के विरोध में काला दिवस मनाने की घोषणा की। नवाज शरीफ ने कहा कि बानी की मौत ने उन्हें बहुत बेचैन कर दिया है। एक आतंकी को किसी सरकार द्वारा दी गई राजकीय श्रद्धांजलि।
जाहिर है इसका संदेश घाटी में सक्रिय आतंकियों में गया होगा। कहा जा रहा है कि नवाज शरीफ पर ऐसा आचरण करने के लिए वहां की सेना, आई एस आई और वहां के आतंकवादी संगठनों का जबरदस्त दबाव था। हाफिज सैयद तो सार्वजनिक रुप से पाकिस्तान की सिविल सरकार के व्यवहार को नियंत्रित कर रहा था।
खबर है कि बानी की मौत के बाद घाटी के कुछ जिलों में दंगा फसाद करवाने के लिए पाकिस्तान सरकार की आईएसआई ने पचास साठ करोड़ रुपया हवाला के जरिए घाटी में पहुँचा दिया है। यह सभी जानते हैं कि आतंक का भी एक अर्थशास्त्र है।
लेकिन जिनके पास आतंक का अर्थ यानि पूंजी रहती है वे समाज के भद्र पुरुष होते हैं। वे समाज में ही छिपे होते हैं, सामान्य क्रिया कलाप करते हुए। लेकिन जिनके पास आतंक की बन्दूक थमा दी जाती है वे समाज के मध्य या निम्न मध्य वर्ग के ही होते हैं।
बाकी अपने देश के सूचीबद्ध बुद्धिजीवी तो तुरन्त सक्रिय हो ही गए हैं। उनको बुरहान की मौत में मानवाधिकारों का हनन दिखाई दे रहा है। अपनी अपनी नजर का सवाल है। जब नजर ही किसी की नजरबन्द हो जाती है तो आतंकी भी पीर दिखाई देने लगता है। बुरहान बानी के मामले में यही हो रहा है। लेकिन इससे घाटी में असर पड़ता है और पड़ रहा है।
बुरहान बानी की मौत के बाद कश्मीर घाटी के कुछ हिस्सों में लोग सुरक्षा बलों से भिड़ रहे हैं। पत्थरबाजी हो रही है और आगजनी की जा रही है। बुरहान की मौत के बाद घाटी में जो पत्थर मार अभियान शुरु हुआ है, वह स्वाभाविक प्रक्रिया तो नहीं है। ये पत्थरबाजी में प्रशिक्षित युवा हैं।
इनको इस काम के लिए बाकायदा तैयार किया गया लगता है। जो लोग पत्थर मार रहे हैं, वे आतंकवाद की पूरी रणनीति का एक हिस्सा मात्र है। इस बार आतंकवादियों ने अपनी रणनीति में भी बदलाव किया है। इस बार वे सामान्य जनता को निशाना बनाने की बजाय सुरक्षा बलों को ही निशाना बना रहे हैं।
कुछ लोग इस पत्थरबाजी को देख कर यह अन्दाजा लगा रहे हैं कि घाटी में आतंकवाद उभर ही नहीं रहा बल्कि वह सरकारी प्रशासन पर भारी भी पड़ रहा है। इस पत्थरबाजी में 34 लोग मारे जा चुके हैं। सुरक्षाबलों के सैकड़ों लोग घायल हुए हैं।
दरअसल इन दिनों के आसपास आतंकवादी, पाकिस्तान की योजना के अनुसार हर साल घाटी के हालात खराब करने की कोशिश करते हैं। ये अमरनाथ यात्रा के दिन हैं। लाखों यात्री देश के हर हिस्से से कश्मीर घाटी में अमरनाथ के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। उसमें खलल डालना उद्देश्य होता है।
उस खलल की कथाएं इन यात्रियों के माध्यम से देश के हर हिस्से में पहुंचाई जा सकती हैं। आगे आने वाले दिनों में मौसम बदल जायेगा और बर्फबारी के कारण घुसपैठ के रास्ते बन्द हो जायेंगे। इसलिए इन्हीं दिनों घुसपैठ करवाना लाजिमी है। कश्मीर घाटी में आतंकी एक नारा देते हैं- मक्की हमारी, बर्फ तुम्हारी।
अभी मक्की की ऊंची फसल के खेतों में आतंकियों के लिए पर्याप्त अवसर हैं। इसलिए इस मौसम को आतंकी अपने लिए लाभदायक मानते हैं। बर्फ के दिनों में घुसपैठ करना कठिन हो जाएगा और सुरक्षाबल भारी पड़ेंगे। इसलिए जो करना होगा अभी करना होगा। और वह किया जा रहा है।
जम्मू कश्मीर में लोक सभा, बाद में विधान सभा के लिए हुए चुनावों ने भी वहां के वातावरण को बदला है। लेकिन यह बदला हुआ वातावरण ही पाकिस्तान और आतंकवादी संगठनों की आंख की किरकिरी है। कुछ दिन पहले अनन्तनाग की विधान सभा सीट के लिए पीडीपी की महबूबा मुफ़्ती का चुन लिया जाना भी आतंकवादी संगठनों के लिए चुनौती बन गया था।
यह सीट उनके पिता मुफ़्ती मोहम्मद की मौत के कारण रिक्त हुई थी। वैसे तो किसी राज्य के मुख्यमंत्री का किसी विधान सभा सीट के लिए उपचुनाव में जीत जाना बड़ी खबर नहीं है। लेकिन महबूबा की जीत की खबर केवल खबर नहीं बनी बल्कि वह महाखबर बन गई।
यहां तक की पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी इस चुनाव में खासी रूचि दिखाई जा रही थी। यह जान लेना भी जरुरी है कि आतंकवादियों ने इस चुनाव का बायकाट करने का आदेश जारी किया था और इश्तहार लगा कर, मतदान करने वालों को सबक सिखा देने की धमकी दी हुई थी।
डॉ. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री