रांची। किसी प्रेगनेंट महिला की कोख में पल रहा बच्चा बेटा है या बेटी यह साइंटिफिक तरीके से तो अल्ट्रासोनोग्राफी से पता चलता है लेकिन खुखरागढ़ स्थित चांद पहाड़ में पत्थर से लगाया गया निशाना भी बता देता है कि किसी महिला की कोख में पल रहा शिशु बेटा है या बेटी।
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि गर्भवती महिला का निशाना पत्थर का चांद के शीर्ष में लगने से लड़का और निचले हिस्से में लगने से लड़की पैदा होती है। सदियों से चली आ रही इस परंपरा को यहां के लोग नमस्कार करते हैं।
ग्रामीण परिवेश के कारण बहुत सी गर्भवती महिलाएं यहां दूसरों की नजर बचाकर यहां आती है और चांद पहाड़ का प्राकृतिक अल्ट्रसाउंड की तरह इस्तेमाल कर मन का कौतुहल शांत करती है। जब बच्चे का जन्म होता है तो उनका विश्वास इस परंपरा के प्रति पक्का हो जाता है।
गांव के 79 वर्षीय बुजुर्ग और रिटायर प्रधान सहायक सह लेखापाल श्रीनाथ साहू चांद के निशान के बारे में बताते हुए कहते हैं कि ये निशान नागवंशी राजाओं के खुखरागढ़ छोड़ने से पहले बना है।
इसके अलावा भी बेड़ो से 14 किलोमीटर दूर स्थित खुखरागांव अपने आगोश में ऐतिहासिक और प्राकृतिक सौन्दर्य समेटे हुए है। चांद पहाड़ से लगभग 20 फीट की उंचाई पर पुरना पानी है। पहाड़ के उंचाई में स्थित पुरना पानी में सालोभर पानी रहता है। पुरना पानी के बगल में शिवलिंग की नक्काशी की गई है।
गांव के लोगों का कहना है यहां नागवंशीय राजा पूजा-अर्चना करते थे। यहां आज भी शिवलिंग में क्षेत्र के लोग पूजा-अर्चना करते है। शिवलिंग से 15 फीट नीचे इंजोरिया लता (सुरंग) है। जो पहाड़ के एक छोर से दूसरे छोर लगभग 200 मीटर की दूरी पर निकालती है।
इसी पहाड़ पर अंधेरिया लता(सुरंग) है, जहां रोशनी नहीं है और घुप्प अंधेरा रहता है। ये भी पहाड़ के एक छोर से दूसरे छोर को पार करता है।
श्रीनाथ साहू कहते हैं इस सुरंग से होकर जाने पर पहाड़ के बीच में एक गुफा है। जो चिकना और सपाट है और जिसमें एक साथ 50 आदमी बैठ सकते हैं। पहाड़ के पश्चिमी हिस्से में झखरा बुढ़िया गुफा है।
गांव के पाहन विश्वनाथ मुंडा कहते हैं कि गुफा में भगवान गणेश का निवास है। यहां गांव के लोग पूजा-अर्चना करते हैं। चांद पहाड़ के उत्तर पश्चिम हिस्से में डुगडुगिया गुफा है। डुगडुगिया गुफा के पश्चिम में नागवंशीय काल के कुछ शिलालेख हैं।
इस शिलालेख में नागवंशी राजाओं ने दूध और खून से कुछ लिखा है जो अब भी साफ नजर आता है। लेकिन इसे किस लिपि में लिखा गया है यह समझ में नहीं आता। इन अक्षरों को समझने से नागवंशी राजाओं और चांद पहाड़ के संबंध में और जानकारियां मिल सकती हैं।