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How to worship lord Shiva during Maha Shivaratri
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सावन मास की शिवरात्रि पर जलाभिषेक से मुराद होती है पूरी

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सावन मास की शिवरात्रि पर जलाभिषेक से मुराद होती है पूरी
How to worship lord Shiva during Maha Shivaratri in sawan month
How to worship lord Shiva during Maha Shivaratri
How to worship lord Shiva during Maha Shivaratri in sawan month

मेरठ। सावन मास की शिवरात्रि भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के संग हुआ था। यह रात्रि शिव व शक्ति के मिलन की ब्रह्माड की विशेष रात्रि है। यदि ज्योतिषीय सूक्ष्मताओं व नियमों का पालन करते हुए शिव उपासना की जाए तो यह शिवरात्रि जीवन के अनेक पहलुओं में परम शुभदायी हो सकती है।

शिव उपासना से बहुत से ज्योतिषीय कुयोगों का भी शमन होता है। देवादिदेव भगवान शिव की महिमा अपार है, वे सभी जीवों का कष्ट हरने वाले, जल्दी प्रसन्न होने वाले आशुतोष भगवान है। चाहे समस्या स्वास्थ्य संबंधी हो, चाहे आर्थिक, चाहे सामाजिक, चाहे चन्द्र, राहु, केतु, शनि आदि ग्रहों से संबंधित समस्या हो अथवा केमद्रूम योग, सकट योग, काल सर्प योग, पितृ दोष तथा चाहे सर्प श्राप के निवारण करने हो सभी श्रावण मास उस पर भी शिवरात्रि जैसा हर्षाेल्लास पूर्ण शिव शक्ति का पर्व हो अर्थात शिव शक्ति की वैवाहिक वर्षगांठ का उत्सव हो तो हमारे थोड़े से प्रयासों से भालेनाथ प्रसन्न हो जाते है।

ग्रीष्मकाल में विषपायी भगवान शिव रौद्र रूप धारण करते है तथा श्रावण मास के जल से शीतल शांत हो कल्याणकारी वरदायी शिव हो जाते हैं। भगवान शिव के रूद्रावतार बहुत ही शक्तिशाली होते है जिनमें से प्रमुख है, ग्यारहवें रूद्रावतार सतोगुणी हनुमान तथा तमोगुणी अवतार भैरव देव।

रूद्र के नेत्र ही कहलाते है रूद्राक्ष

ज्योतिष वैज्ञानिक भारत ज्ञान भूषण ने बताया कि रूद्र के नेत्र ही रूद्राक्ष कहलाते है। भगवान शंकर ने संसार को रूद्राक्ष के रूप में ऐसी सौगात प्रदान की है जो न सिर्फ प्राणियों के दुख, रोग, दरिद्रता हरती है, बल्कि धारक को रूद्र स्वरूप तक बना देती है। रूद्राक्ष के अंदर जितने बीज होते है उतने ही बाहर मुख रूद्राक्ष के प्रकट होते है।

इस प्रकार एकमुखी से लेकर चैदह मुखी तक रूद्राक्ष पाए जाते है तथा मुखों की गणना से ही अलग-अलग मनोकामनाओं की पूर्ति में हमारे मददगार होते है। इनके अतिरिक्त संतान प्रदाता गर्भगौरी रूद्राक्ष, दाम्पत्य सुख प्रदायक गौरीशंकर रूद्राक्ष तथा अध्यन मे सफलतादायक गणेश रूद्राक्ष श्रावण मास और उस पर भी विशेषतरू शिवरात्रि पर धारण करना अथवा पूजा स्थल पर पूजित करना शक्तिशाली रूप में जीवन में प्रभाव देते है।

पूजा के पांच प्रकार बताए गए हैं शास्त्रों में

ज्योतिष वैज्ञानिक ने बताया कि शास्त्रों मे पूजा के पांच प्रकार बताए गए है, जिनमें अभिगमन, उपादान, योग, स्वाध्याय और इज्या हैं। अर्थात देवाताओं के स्थान को साफ करना, लीपना, निर्माली हटाना यह सा कर्म अभिगमन के अंतर्गत है।

गंध पुष्प आदि पूजा सामग्री का संग्रह उपादान है, ईष्टदेव की अष्टमूप से भावना करना योग है, मन्त्रार्थ का अनुसंधान करते हुए जप करना का अनुसंधान करना, सूक्त, स्तोत्र आदि का पाठ करना, गुण नाम, लीला आदि का कीर्तन करना, वेदांतशास्त्र आदि का अभ्यास करना, यह सब स्वाध्याय है।

तरल पदार्थ से ऐसे करें भगवान का अभिषेक

शिवरात्रि को भगवान का अभिषेक किस तरल पदार्थ से किया जाए कि हम मनोवांछित फल पा सकें, इसके लिए निम्न अभिषेक द्रव्य प्रयोग करें-श्श्धन प्राप्ति के लिए गन्ने का रस। पशुधन प्राप्ति के लिए दही। रोग निवारण हेतूकुशा युक्त जल। स्थिर लक्ष्मी के लिए घी एवं शहद।

पुत्र प्राप्ति के लिए शर्करा मिश्रित दूध। संतान प्राप्ति के लिए गौ का दूध। वंश वृद्धि एवं आरोग्य हेतू घी। बुखार दूर करने के लिए जल। विरोधियों से मुक्ति के लिए सरसों का तेल। तपेदिक रोग से मुक्ति के लिए शहद का अभिषेक शुभ माना गया है।