15 अगस्त को हम आजादी की 70वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं। यह सुअवसर है उन महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के पुण्य स्मरण एवं उनके प्रति श्रद्धावनत होने का, जिनके महान् बलिदान की बदौलत देश को आजादी मिली।
साथ ही स्वतंत्रता दिवस पर हमें राष्ट्र के कायाकल्प में अपना उत्कृष्ट योगदान सुनिश्चित करने का भी संकल्प लेना होगा। क्योंकि देश को 15 अगस्त 1947 को मिली आजादी सही मायने में तभी सार्थक मानी जायेगी जब देशवासी राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के प्रति संमर्पित रहकर राष्ट्र के उत्थान में अपनी यथोचित भूमिका निभाने का संकल्प लेंगे।
देशवासियों के राष्ट्र प्रेम की भावना से ओतप्रोत रहने तथा उनके द्वारा राष्ट्रहित में सुनिश्चित किये जाने वाले अपने अग्रणी योगदान की बदौलत ही देश की आजादी के चिरस्थायी होने तथा भारतीय लोकतंत्र के पुष्पित एवं पल्लवित होने का मार्ग प्रशस्त होगा।
देश की आजादी में अपना सर्वस्व न्योछावर करके अपने प्राणों की बलिबेदी पर आजादी का इतिहास लिखने वाले महान् क्रांतिकारियों के पुरुषार्थ की बदौलत देश के स्वतंत्र होने के बाद इन 70 वर्षों में देश ने विभिन्न मोर्चों पर सफलता के नित नये सोपान तय किये हैं।
देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार तथा सामरिक सामथ्र्य बढऩे सहित समस्त क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलता मिलने के साथ ही देश में मानव जीवन के विकास संबंधी समस्त सकारात्मक संभावनाएं भी प्रबल हुई हैं।
देश का तीव्र औद्योगिक विकास जहां भारत को दुनिया के अग्रणी राष्ट्रों की पंक्ति में खड़ा करने में सहायक सिद्ध हुआ है वहीं देश की सामरिक क्षमताओं में हुई निरंतर बढ़ोत्तरी ने देश के लिये पैदा होने वाले वैश्विक खतरों को कम करने के साथ-साथ देश को आत्म विश्वास से परिपूर्ण व शक्ति संपन्न बनाने में भी सहायक सिद्ध हुआ है।
भारत में फलते-फूलते लोकतंत्र एवं देश में मजबूत होती विकास एवं कल्याण की संभावनाओं को देखकर तो कई बार विश्व बिरादरी के वह लोग भी आश्चर्यचकित हुए हैं, जिनके मन में भारत की आजादी के स्थायित्व एवं भारतीय लोकतंत्र के सफल होने को लेकर किसी तरह का संशय रहा है।
विश्व बिरादरी को भी यह लग रहा होगा कि विविधताओं एवं विडंबनाओं से भरे भारत देश में लोकतंत्र वटवृक्ष बनने की दिशा में निरंतर अग्रसर है तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। साथ ही विश्व बिरादरी कई मामलों में भारत का लोहा मानने के साथ ही कई मुद्दों पर भारत का अनुसरण करती हुई भी नजर आ रही है।
मसलन भारत की संघीय शासन व्यवस्था एवं देश का बहुदलीय लोकतंत्र दुनिया के विभिन्न देशों के लिये कई बार कौतूहल का विषय भी बना है कि जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरे सबसे बड़े भारत देश में लोकतंत्र की सफलता के लिये यहां की विशिष्ट चुनाव प्रणाली का भी योगदान है।
जो निर्धारित समय पर पूर्ण निष्पक्षता एवं प्रतिबद्धता के साथ संपन्न होती है तथा देश के निर्वाचन आयोग को यह पूरी प्रक्रिया निर्बाध रूप से संपन्न कराने में किसी तरह की झुंझलाहट नहीं होती। देश की निरंतर हो रही आर्थिक प्रगति से भी विश्व बिरादरी का खासा आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक है।
क्योंकि विश्व बिरादरी को लग रहा होगा कि स्वाभाविक तौर पर कृषि प्रधान देश भारत तीव्र औद्योगिक विकास के पथ पर भी निरंतर अग्रसर हो रहा है तथा कई बार विश्वभर में आर्थिक मंदी होने के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था के डांवाडोल होने की आशंका बिल्कुल भी प्रबल नहीं हुई, जो देश की बड़ी उपलब्धि व कामयाबी है।
देश की आजादी के बाद देश में सामाजिक न्याय का मार्ग प्रशस्त होने के साथ ही भारतीय समाज में समता एवं समरसता का ग्राफ भी काफी बढ़ा है, जो भारतीय लोकतंत्र की सफलता का एक महत्वपूर्ण पहलू होने के साथ-साथ इस बात का प्रमाण भी है कि भारतीय लोकतंत्र देश के सवा अरब लोगों की आस्था एवं विश्वास को प्रतिबिंबित करता है।
देश की आजादी के 7 दशक व्यतीत होने के बाद देश आज स्वर्णिम दौर में पहुंच गया है लेकिन इस लंबे कालखंड में देश में ऐसी तमाम समस्याएं व विसंगतियां भी पैदा हुई हैं, जिनका समाधान आज भी अनुत्तरित सवाल बना हुआ है।
देश में बढ़ती महंगाई, भ्रष्टाचार अशिक्षा, बेरोजगारी, आतंकवाद, नक्सलवाद, वर्ग संघर्ष तथा सामाजिक भेदभाव आदि ऐसे ज्वलंत मुद्दे आज भी हैं, जिनके समाधान के लिये दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ-साथ दूरदर्शिता का होना जरूरी है। वरना भविष्य में भारतीय लोकतंत्र के लिये पैदा होने वाले खतरे देश की साख एवं धाक पर गंभीर प्रशन चिन्ह लगा देंगे।
अखंड भारत की अवधारणा के अनुरूप कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तथा अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक पूरा भारत एक है। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय कुछ भारत विरोधी ताकतें भारत में मौजूद कुछ देश विरोधी तत्वों के साथ मिलकर भारत की एकता एवं अखंडता को छिन्न-भिन्न करने का षडय़ंत्र रच रही हैं।
चीन की जहां भारत के विभिन्न भूभागों पर गिद्धदृष्टि लगी हुई है वहीं पाकिस्तान कश्मीर की रट लगाए हुए है। इन दोनों देशों सहित अंतराष्ट्रीय स्तर के कुछ अन्य भारत विरोधियों के मिलेजुले षडय़ंत्र के रूप में देश पर आतंकवाद का खतरा निरंतर मंडरा रहा है।
ऐसे में पूरे देशवासियों को पूरी प्रतिबद्धता के साथ देश की एकता एवं अखंडता को मजबूत बनाने एवं आतंकवाद से मुकाबले में राष्ट्रहित में अपना योगदान सुनिश्चत करना होगा।
इसी प्रकार देश में निरंतर बढ़ता भ्रष्टाचार किसी नासूर से कम नहीं है। देश की राजनीति के अपराधीकरण व व्यवसायीकरण ने देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में बड़े कारक का काम किया है तो बेलगाम नौकरशाही भी इस दुरूह स्थिति के लिए कम जिम्मेदार नहीं है।
इन सभी विसंगतियों के बीच सबसे बड़ा नुकसान भारतीय लोकतंत्र के भाग्य विधाता उन जनता-जनार्दन का हो रहा है, जिन तक देश की आजादी का वास्तविक आलोक आज भी पहुंचना बाकी है। देश में आर्थिक असमानता की खाई निरंतर चौड़ी होती जा रही है।
सरकारी दावे-प्रतिदावों के बावजूद गरीब अति गरीब तथा अमीर अति अमीर होते जा रहे हैं। यह तो देश में बढ़ती आर्थिक असमानता का रौद्ररूप है। वहीं देश में सामाजिक असमानता एवं उससे निर्मित होने वाली अन्य विकट परिस्थितियां भी कम गंभीर नहीं हैं।
देश की शैक्षणिक व्यवस्था भी पूरी तरह व्यावसायिक सी हो गई है। शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने में जिंदगी में जल्द धनाढ्य बनने की संभावना तो प्रबल रहती है लेकिन इसमें राष्ट्रीय एवं सामाजिक सरोकारों का अभाव सा पाया जाता है।
जिसकी वजह से देश में नैतिक मूल्यों में गिरावट आ रही है। यह भी एक ऐसा कारण है जो देश की राष्ट्रीय एवं सामाजिक अवनति का कारण बन सकता है। देश में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या बन गई है।
युवाओं का शिक्षा-दीक्षा ग्रहण करने के बाद उन्हें रोजगार के अच्छे अवसर प्राप्त होने की उम्मीद रहती है, लेकिन उनकी यह उम्मीद देश में कई बार सरकारी एवं गैर सरकारी स्तर पर भी पूरी नहीं होती।
जो युवा वर्ग के अंतर्मन के कुंठित होने का सबसे बड़ा कारण है। कुल मिलाकर देश की आजादी के बाद से देश की उपलब्धियों की फेहरिस्त जितनी लंबी है, समस्याएं भी उतनी ही गंभीर व रौद्र हैं।
इन सब हालात के बीच स्थिति को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करना ही होगा। क्यों कि देश के लिये सिर्फ राजनीतिक आजादी ही पर्याप्त नहीं है। अपितु देशवासियों को भय, भूख, भ्रष्टाचार, अन्याय, अत्याचार तथा शोषण से भी आजादी मिलना जरूरी है।
वरना स्वतंत्रता दिवस का आयोजन देशवासियों के लिये सिर्फ रस्म अदायगी ही बनकर रह जायेगा तथा शहीदों की चिंताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा, की अवधारणा चरितार्थ होगी।
भारतीय लोकतंत्र के पुष्पित, पल्लवित तथा सर्वव्यापी, सर्वस्पर्शी व सर्वग्राही बनाने के लिए क्रांतिकारी प्रयासों को अमल में लाना होगा। देश के उत्थान तथा कायाकल्प का मार्ग प्रशस्त करने के लिए स्वतंत्रता दिवस पर सबको संकल्प लेना होगा।
: सुधांशु द्विवेदी