कानपुर। आजादी के नायकों की कर्मस्थली रही कानपुर झण्डारोहण में भी देश के अन्य शहरों से आगे रहा। दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू के साथ कंपूवासियों ने 14 अगस्त रात्रि 12 बजे मेस्टन रोड पर झण्डारोहण किया और पूरा शहर बिना सोये प्रभात फेरी में लग गया। जिसके बाद से कानपुर की यह परंपरा आज तक चली आ रही है।
आजादी से पूर्व कानपुर ही संयुक्त प्रान्त का ऐसा शहर था जहां पर क्रांतिकारी व नेता अपनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए रणनीति बनाते थे। आजादी के बाद भी कानपुर देश में अपनी अलग छाप छोड़ने में सफल रहा।
इतिहासकार के.के. द्विवेदी बताते हैं कि चूंकि 14 अगस्त को पाकिस्तान का स्वाधीनता दिवस होता है इसलिए तय यह हुआ था कि हिन्दुस्तान का स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाया जाएगा।
तब वर्तमान मे जो राष्ट्रपति भवन है तब उसे वायसराय पैलेस कहा जाता था, वहां रात बारह बजे नामित प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू झंडा फहराएंगे। इधर कानपुर में लोगों में जोश था। जबर्दस्त तैयारियां थी पर 14 अगस्त का दिन रोडा बन रहा था।
बाद में स्थानीय नेताओं ने तय किया कि वे भी नेहरू जी के साथ रात बारह बजे झंडा फहराएंगे। इस तरह कानपुर देश का पहला शहर बना जिसने सबसे पहले आजादी का जश्न मनाया। उन्होंने बताया कि आजादी का जश्न मनाने के लिए चांदी के तोरणद्वार बनाए गए थे और जेवरातों से उसकी लड़ियां बनाई गई थी।
बुजुर्ग कांग्रेसी नेता की जुबानी
बुजुर्ग कांग्रेसी नेता शंकर दत्त मिश्र ने बताया कि उस दिन का ध्यान करें तो सब कुछ एक सिनेमा के सीन की तरह आंखो के सांमने से गुजर जाता है। उस समय मैं बारह साल का था अपने पिताजी के साथ वह सारा मंजर देखा था। बताया कि मेस्टन रोड के बीच वाला मंदिर के गुम्बद के ऊपर उस दिन झंडा फहराया गया था।
अब तो नीचे चौराहे पर झंडा रोहण किया जाता है। तब के शहर अध्यक्ष बाबू शिवनारायण टंडन ने झंडा रोहण किया था। ठीक रात के बारह बजे गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच बेखौफ तिरंगा फहराया गया था। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता तब के चैक वार्ड अध्यक्ष काशीनाथ गुप्ता ने की थी।
यह थे मौजूद
कार्यक्रम में डॉ जवाहरलाल रोहतगी, हमीद खां, प्यारे लाल अग्रवाल, नारायण प्रसाद अरोडा, तारा अग्रवाल, देवीसहाय बाजपेयी समेत सैकडों की तादात में कनपुरिये एकत्र थे। नयागंज की पीपल वाली कोठी के पास और कोतवाली के पहले डफरिन अस्पताल के पास चांदी के तोरणद्वार सर्राफा वालों ने बनाए थे और सोने के जेवरातों से लडियां सजाई गयीं थी।
चार लाख की आबादी नहीं थी सोयी
शंकरदत्त मिश्र ने बताया कि झण्डारोहण के बाद रात भर मेस्टन रोड पर कवि सम्मेलन चला था। जिसके बाद प्रभात फेरियां निकलनी शुरू हो गई। उस रात कानपुर में कोई नहीं सोया था। उन्होंने बताया कि तब कानपुर की कुल आबादी चार लाख की थी।
मेस्टन रोड़ से शुरू होकर प्रभात फेरी पनचक्की चैराहा, हरबंश मोहाल, हालसी रोड, माल रोड, चौक सर्राफा, मूलगंज, सिविल लाइंस,जनरलगंज, नयागंज आदि मोहल्लों से गुजरी थी।