भावनात्मक संवेदना और नैतिकता को तार-तार कर देने वाली श्रंखला जो लम्बे समय से भारत में चल रही थी, उसे निययों में बांधने और व्यवस्था के साथ सुचारु रूप से चलाने के लिए जिस तरह से केंद्र सरकार ने सरोगेसी नियमन विधेयक-2016 को मंजूरी दे दी।
सरकार के इस निर्णय की जितनी सराहना की जाए, वह कम ही होगी। कम से कम इस निर्णय के बाद दूसरे देशों के लोग भारत के परिवारों, खासकर महिलाओं को धन का लालच और बड़े-बड़े सपने दिखाकर अब उनकी जान तो जोखिम में नहीं डाल पाएंगे।
पिछले कई सालों से देश में यही देखा जा रहा था कि सस्ती कोख के लालच में दुनिया के कई देशों के लोग भारत में आ रहे थे और फैक्ट्री की तरह यहां कोख का इस्तेमाल कर रहे थे। सरकार ने इस नियमन विधेयक के माध्यम से आगे बहुत कुछ गलत होने से रोक लिया है। विज्ञान वरदान है, लेकिन यदि उसका गलत इस्तेमाल होने लगे तो जरूर शीघ्र से शीघ्र उसे रोका जाना ही चाहिए ।
सरकार ने हाल में स्वीकार किया था कि वर्तमान में किराए की कोख संबंधी मामलों को नियंत्रित करने के लिए कोई वैधानिक तंत्र नहीं है। इस कारण ग्रामीण एवं आदिवासी इलाकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में किराए की कोख के जरिए गर्भधारण के कई मामले सामने आ रहे हैं। इनमें महिलाओं के संभावित शोषण की आशंका ज्यादा रहती है।
वहीं यह भी देखने में आ रहा था कि विदेशियों के लिए भारत सरोगेसी का हब बन गया है। देश में अनैतिक सरोगेसी की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इसलिए यह जरूरी था कि देश में इसे लेकर कोई कठोर कानून सामने आए।
केंद्र सरकार ने जिस सरोगेसी नियमन विधेयक-2016 को मंजूरी दी है, उसके अनुसार मां-बाप बनने के लिए किराए की कोख लेना संभव नहीं हो सकेगा। विधेयक में जरूरतमंद निःसंतान दंपतियों के लिए कमर्शियल सरोगेसी पर रोक और नीति परक सरोगेसी की अनुमति का प्रावधान किया गया है।
वाकई यह बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था। एक साल पहले किराये की कोख से पैदा होने वाले बच्चे की नागरिकता को लेकर भी कई समस्याएं ध्यान में आई थीं जिसमें कि आगे होकर इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम सवाल उठाया था। उस समय शीर्ष अदालत ने केंद्र से पूछा था कि सरोगेसी के जरिये देश में जन्म लेने वाले उन बच्चों की नागरिकता क्या होगी जिनके मां-बाप विदेशी हैं, लेकिन जन्म देने वाली मां भारतीय?
यहां तक कि कोर्ट ने यह भी प्रश्न उठाया था कि “संविधान के प्रावधानों के तहत भारतीय सरोगेट मां की कोख से देश में जन्म लेने वाला बच्चा भारतीय नागरिकता का हकदार है, लेकिन उन परिस्थितियों में क्या होगा जब बच्चे की जैविक मां विदेशी नागरिक है और बच्चा भारतीय नागरिकता के लिए आग्रह करता है?
इसके बाद जस्टिस गोगोई ने कहा कि किराये की कोख से पैदा बच्चों को कुछ विशेष परिस्थितियों में दोहरी नागरिकता देने पर विचार किया जा सकता है। दोहरी नागरिकता से ऐसे बच्चों को सीमित सुविधाएं ही मिल सकेंगी। स्वाभाविक है कि इसमें उन बच्चों का कोई दोष नहीं जो किराए की कोख के माध्यम से इस दुनिया में आए हैं।
जब इस तरह की बातें कोर्ट ने कहीं जब जाकर आगे सरकार ने इसे और गंभीरता से लिया था भारत में अब कोई भी महिला विदेशियों के लिए किराए का कोख न दे, इसके लिए केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर कर अपनी मंशा साफ कर दी थी।
उस समय ही सरकार की ओर से मीडिया के पूछे जाने पर कह दिया गया था कि वे व्यावसायिक तौर पर होनेवाले सरोगेसी को बैन करेगी। इसके साथ ही, भारत में आकर कोई भी विदेशी दंपती यहां से किराए की कोख पर बच्चा नहीं ले सकेगा।
सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने महिला आयोग की सिफारिश पर जिसमें कहा गया था कि भारत में विदेशी दंपति के लिए सरोगेसी के जरिए माता-पिता बनने पर रोक लगाई जानी चाहिए पर भी अपनी सहमति इससे पहले जताई दी थी। इससे भी पता लग चुका था कि सरोगेसी को लेकर केंद्र बहुत गंभीर है।
सरोगेसी के साथ जो सबसे ज्यादा दिक्कत सामने आई हैं, उनमें है कि भले ही कोई महिला मां बनने के लिए अपनी कोख किराए पर देने के लिए राजी होती हो, लेकिन उस महिला के एक बार गर्भ धारण करने के बाद उसके सभी निर्णय डॉक्टर और जिसके बच्चे से वह संबंधित है, वही करते थे, फिर इस बीच उसकी जान ही क्यों न चली जाए।
देश के इंफर्टिलिटी और आईवीएफ क्लीनिकों पर किए गए एक अध्ययन में भी यह बात सामने आ चुकी है कि संतान पाने के इच्छुक माता-पिता की मांग पूरी करने और अपने आर्थिक फायदे के लिए डॉक्टर किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। जिस सरोगेट मां के गर्भ में बच्चे का बेहतर विकास हो रहा होता है, उसे छोड़कर बाकियों का गर्भपात करा दिया जाता है।
ऐसी घटनाएं मानवता को शर्मसार करने वाली हैं। साथ ही इससे यह भी साबित होता है कि नैतिकता को ताक पर रखकर व्यावसायिक हित साधने के लिए कोख का इस्तेमाल फैक्ट्री के रूप में हो रहा है। डॉक्टर सरोगेसी के खतरों के बारे में किसी महिला को नहीं बताते हैं। वास्तव में इसलिए ही सरकार द्वारा लाया गया सरोगेसी नियमन विधेयक-2016 कहा जा सकता है कि आगे इस दिशा में नजीर का कार्य करेगा।
इस विधेयक की जो महत्वपूर्ण बातें हैं, वे आज सभी को जानना जरूरी हैं। अब नए नियमों में देश में सिर्फ भारतियों को ही सरोगेसी की सुविधा मिल सकेगी। पहले की तरह नहीं होगा कि कोई भी इसका गलत तरीके से फायदा उठा सके, कानूनी तौर पर मान्य दंपती ही फायदा उठा सकेंगे।
अविवाहित, समलैंगिक, लिव इन, सिंगल पैरेंट्स को सरोगेसी की कोई इजाजत नहीं दी गई है। शादी के बाद दंपति के लिए यह जरूरी है कि वह कम से कम पांच वर्षें तक इंतजार करे, उन्हें अनफिट मेडिकल सर्टिफिकेट देना होगा कि दोनों में से कोई एक संतान पैदा करने की स्थिति में नहीं है।
यानि यदि स्वयं से बच्चा नहीं हो सकता है तभी बाद में वे सरोगेसी की मदद ले सकते हैं। साथ ही जिनके पहले से एक बच्चा होग उन्हें सरोगेसी सुविधा नहीं दी जाएगी। जो सरकार बनाए नियमों का का उल्लंघन करता हुआ पाया जाएगा उसे 10 साल तक की सजा दी जाएगी।
इसके साथ ही सरकार ने मानवीय पक्ष को भी पूरी तरह ध्यान में रखा है जिसमें कि यदि बिना रुपयों के ही कोई महिला अपनी इच्छा से किराए की कोख देना चाहे तो वे ली जा सकती है। अनिवासी भारतीयों या ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया कार्डधारकों को इसकी अनुमति नहीं होगी।
जिन दंपतियों ने बच्चे को गोद लिया है, उन्हें सरोगेसी की अनुमति नहीं होगी। निश्चित ही इसे लेकर जो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा है, वह सही है कि यह विधेयक महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। इसका लंबे समय से इंतजार था।
डॉ. निवेदिता शर्मा
जरूरत के नाम पर शुरू की गई सेरोगेसी अब शौक बन गई : सुषमा