इलाहाबाद। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों द्वारा एनजीओ की मदद से सहारनपुर, महाराजगंज व कुशीनगर जिलों में लाखों बच्चों को पुष्टाहार आपूर्ति में बरती जा रही लापरवाही को गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने कहा है कि बच्चों को भोजन परोसने में लापरवाही बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ है। दूषित खाद्य पदार्थ की आपूर्ति से बच्चों की मौत हो सकती है। कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए कहा है कि ऐसे लोगों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलना चाहिए किन्तु इससे पहले बच्चों के स्वास्थ्य के साथ हो रहे खिलवाड़ की मुख्य सचिव की जांच रिपोर्ट प्राप्त करना जरूरी है।
कोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वह प्रमुख सचिव बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार के हलफनामे की सत्यता की जांच करे। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि मुख्य सचिव की रिपोर्ट पर आपत्ति की गयी तो कोर्ट कमिश्नर से जांच करायी जायेगी। कोर्ट ने मुख्य सचिव से कहा है कि वह स्वयं या प्रमुख सचिव को कुशीनगर के आंगनबाड़ी केन्द्रों का 20 दिसम्बर तक स्थलीय निरीक्षण कर 23 दिसम्बर को अपनी रिपोर्ट पेश करे। याचिका की सुनवाई 23 दिसम्बर को होगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति अरूण टंडन तथा न्यायमूर्ति ए.के.मिश्र की खण्डपीठ ने मेराज ग्रामीण विकास समिति सिंधवन व अन्य की याचिका पर दिया है। मालूम हो कि प्रमुख सचिव बाल विकास ने हलफनामा दाखिल कर बताया कि सहारनपुर में एक लाख बारह हजार 651 बच्चों के लिए 3410 आंगनबाड़ी केन्द्र व कुशीनगर के एक लाख 35 हजार 26 बच्चों को 4134 आंगनबाड़ी केंद्र में एनजीओ द्वारा तैयार भोजन दिया जाता है। जिसे पका कर टैम्पो व वैन से लाया जाता है। कोर्ट ने टिप्पणी की है कि 23 सहयोगी सहारनपुर में एक लाख 12 हजार 651 बच्चों की प्लेटें प्रतिदिन कैसे साफ कर सकते हैं। अखबारों में खबर आयी कि खाने में मरे चूहे पाए गए। जिससे लगता है कि राज्य को बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता नहीं है। केवल पैसा एक हाथ से दूसरे में पहुंच रहा है। कोर्ट ने कहा कि कुछ तो गलत है। प्रमुख सचिव स्थिति को सही ठहराने में लगे हैं जिससे कि बच्चों के स्वास्थ्य को खतरा है। इसलिए मुख्य सचिव जांचकर रिपोर्ट दे।