जगदलपुर। बस्तर संभाग के कोंडागांव जिले के आलोर क्षेत्र में स्थित देवी लिंगेश्वरी का द्वार जो केवल साल में एक बार ही खुलता है यह बुधवार को खुला रहा।
इस मंदिर में निसंतान दंपत्तियों एवं दर्शनार्थियों की भीड़ उमड़ी रही। फरसगांव के पश्चिम में 9 किमी दूर बड़े डोंगर मार्ग पर ग्राम आलोर में स्थित है। ग्राम से 2 किमी दूर उत्तर पश्चिम में एक पहाड़ी है, जिसे लिंगाई माता के नाम से जाना जाता है।
उल्लेखनीय है कि भाद्र पद माह में एक दिन ही यहां शिवलिंग की पूजा होती है, बाकी दिनों तक शिवलिंग गुफा में बंद रहती है। संतान की प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपती को खीरा चढ़ाना आवश्यक है।
दंपती को खीरा वहीं फाडक़र खाना पड़ता है, फिर गुफा से बाहर निकलते हैं। गुफा के अंदर प्राकृतिक शिवालय ग्रामीणों के आस्था और श्रद्धा का केंद्र है।
मान्यता है कि आने वाले अच्छे बुरे समय का भी यहां पूर्वाभ्यास हो जाता है। पूजा के बाद मंदिर में सतह पर रेत बिछाकर उसे बंद कर दिया जाता है।
लिंगाई माता के नाम से छोटी पहाड़ी के ऊपर एक विस्तृत फैला हुआ चट्टान है। अंदर से पत्थर की तरह सामान्य दिखने वाला यह पत्थर कटोरानुमा तराश कर चट्टान के ऊपर उलट दिया गया है।
मंदिर के दक्षिण दिशा में एक सुरंग है, जो इस गुफा का प्रवेश द्वार है। यह प्रवेश द्वार इतना छोटा है कि बैठकर या लेटकर ही अंदर प्रवेश कर सकते हैं। गुफा के अंदर चट्टानों के बीचों बीच दो या ढाई फुट लंबा शिवलिंग है। इसे शिव और शक्ति का समन्वित नाम दिया गया है।
लिंगाई माता प्रतिवर्ष भाद्र पद माह के शुक्ल पक्ष की नवमीं तिथि के बाद आने वाले बुधवार को खोल दिया जाता है तथा दिनभर श्रद्धालुओं द्वारा पूजा अर्चना एवं दर्शन के बाद पत्थर टिका कर दरवाजा बंद कर दिया जाता है। नि:संतान दंपती यहां संतान की कामना लेकर आते हैं।
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