प्रशान्त झा
अजमेर। भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान इसरो द्वारा गत माह अपने सबसे तेज रॉकेट इंजन स्क्रैमजेट का सफल परीक्षण किया गया है।
हवा से आक्सीजन लेने वाले इस इंजन की खासीयत है कि इसमें र्इंधन के साथ आक्सीजन अलग से ले जाने हेतु अतिरिक्त टैंक की आवश्यकता नहीं होती।
यह वायुमंडल से सीधे ही आक्सीजन खींचता है जिससे इसके वजन को हल्का रखे जाने में मद्द मिलती है और अधिक र्इंधन ले जाने या अधिक पे लोड ले जाने लायक जगह उपलब्ध हो पाती है। स्क्रैमजैट का अर्थ है — सुपरसोनिक कम्बस्टिंग रैमजैट।
भारत के इस पहले स्क्रैमजैट इ्ंजन ने मैक 6 की गति हासिल की। यह इंजन भविष्य के रॉकेट (लॉन्च व्हीकल) के द्वितीय चरण में इस्तेमाल किया जावेगा जो रॉकेट को वायूमण्डल के ऊपरी भाग तक ले जाएगा एवं इसके बाद के तृतीय चरण में क्रायोजनिक इ्ंजन का इस्तेमाल कर रॉकेट को वायूमण्डल के बाहर ले जाया जाएगा।
इस परीक्षण ने भारत को इस तकनीक को हासिल करने वाले चन्द देशों की विशेष कतार में ला खडा किया है। भारत स्क्रैमजैट इंजन का सफल परीक्षण करने वाला चौथा देश बन गया है।
कहा जा रहा है कि भारत ने इस परीक्षण के साथ भविष्य की इस विशिष्ठ तकनीक को हासिल कर लिया है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यह तकनीक भारत के लिए नई नहीं है भारत के ब्रहमोस मिसाईल में बरसों से रैमजैट इंजन का इस्तेमाल हो रहा है।
नई पीढी के ब्रहमोस ब्लाक द्वितीय व अत्यंत उन्नत संस्करण ब्रहमोस ब्लॉक तृतीय में लगने वाले हाईपरसोनिक स्क्रैमजैट अभी विकास के चरण में है जिनकी गति मैक 7 है और ये विश्व के सबसे तेज व परिष्कृत हाईपरसोनिक इ्ंजन हैं जो भारत और रूस के संयुक्त उपक्रम ब्रहमोस द्वारा विकसित किए जा रहे है।
अत: ये कहना सही नहीं होगा की भारत ने स्क्रैमजैट तकनीक गत माह ही हासिल की है बल्कि भारत तो वर्षों से इसका इस्तेमाल ब्रहमोस मिसाईल में करता आ रहा है। हां, भारत के अंतरिक्ष संगठन इसरो ने स्वदेशी तकनीक से विकसित अपने स्क्रैमजैट इंजन का अंतरिक्ष में पहला सफल परिक्षण गत माह ही किया है।
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