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sahara chief subrata Roy gets temporary relief from supreme Court
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सुप्रीम कोर्ट ने दी सुब्रत राय को फौरी राहत, कहा-हमारी भी सहने की क्षमता है

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सुप्रीम कोर्ट ने दी सुब्रत राय को फौरी राहत, कहा-हमारी भी सहने की क्षमता है
sahara chief subrata Roy gets temporary relief from supreme Court
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नई दिल्ली। सहारा प्रमुख सुब्रत राय को शुक्रवार को नाटकीय घटनाक्रम के बाद आखिरकार राहत मिल गई लेकिन ये राहत उन्हें अंतरिम तौर पर मिली है। उन्हें तुरंत जेल नहीं जाना पड़ा, क्योंकि सरेंडर करने के लिए कोर्ट ने उन्हें 30 सितंबर तक की मोहलत दे दी है।

इस राहत के अलावा कोर्ट ने सहारा प्रमुख की पैरोल रद्द नहीं करने की अर्जी पर सुनवाई के लिए अगली तारीख 28 सितंबर तय की है, जबकि मुख्य मामले की सुनवाई 3 अक्टूबर को होगी।

शुक्रवार सुबह सुप्रीम कोर्ट ने जब मामले की सुनवाई शुरु की तो सहारा की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि उन्हें भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा संपत्ति की बिक्री प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया है तो जज काफी नाराज़ हो गए।

सेबी के वकील ने बताया कि जिन 58 संपत्तियों को नीलामी के लिए रखा गया और उनमें से आठ को महज 137 करोड़ रुपए में बेचा गया और संपत्तियों में से पांच को आयकर विभाग ने अस्थायी रूप से कुर्क कर रखा है।

इस पर जजों ने राजीव धवन से कहा कि आपने उन संपत्तियों की सूची दी है, जो पहले से ही कुर्क हैं, आप सहयोग नहीं कर रहे हैं, इसलिए बेहतर है कि आप पहले जेल जाएं।

कोर्ट के सख्त रवैये के बाद धवन ने अनुरोध किया कि मामले पर आगे की सुनवाई के लिए तीस सितंबर को डेट दी जाए। लेकिन कोर्ट ने सुब्रत राय और दो अन्य निदेशकों अशोक राय चौधरी और रविशंकर दुबे को हिरासत में लेने का निर्देश दिया। तब धवन ने कहा कि आप गुस्से में आकर ये फैसला कर रहे हैं। इस पर कोर्ट धवन पर काफी नाराज हो गई।

इसकी खबर जैसे ही सहारा के अधिकारियों को लगी कपिल सिब्बल समेत सहारा के कई वकील सुप्रीम कोर्ट दौड़े आए और चीफ जस्टिस के समक्ष मामलों के निपटारे तक का इंतजार करने लगे। फिर कपिल सिब्बल ने ये मामला मेंशन किया और सहारा की तरफ से बिना शर्त माफी मांगी और पहले के आदेश में संशोधन करने का अनुरोध किया।

उन्होंने ये भी कहा कि राजीव धवन आगे से सहारा की ओर से पेश नहीं होंगे। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि कुछ लोग अदालत की मर्यादा के साथ खेलते हैं और कुछ वकील हैं, जो अदालत के प्रति सम्मान नहीं रखते।

उसके बाद शाम चार बजे मामले की सुनवाई हुई तो कोर्ट ने कहा कि हम भी दिन के ख़त्म होने पर सोचते हैं कि किसी को हमारे आदेश से तकलीफ तो नहीं हुई। कोई अगर बहुत अच्छा बोलता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह कोर्ट पर हावी हो जाए। हमारी भी सहने की एक क्षमता होती है। हालांकि कोर्ट ने अपने पहले के फैसले को बरकरार रखा लेकिन तीस सितंबर तक सरेंडर करने का आदेश देकर फौरी तौर पर राहत दे दी।