जगदलपुर। दुनिया में सबसे लंबी अवधि लगभग 75 दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरा पर्व विश्व के तमाम आकर्षणों में शामिल है, लकड़ी से बनाया गया दुमंजिले भवन का भव्य रथ।
पिछले 600 वर्षों से हर साल नये सिरे से बनाए जाने वाले इस रथ को बनाने वालों के पास भले ही किसी इंजीनियरिंग कालेज की डिग्री न हो, लेकिन जिस कुशलता और टाईम मैनेजमेंट से इसे तैयार किया जाता है, वह आश्चर्य का विषय साबित हो सकता है।
घरेलू औजारों का होता है उपयोग
रथ के चक्कों से लेकर धुरी (एक्सल)तथा रथ के चक्कों व मूल ढांचे के निर्माण में अपने सीमित घरेलू और कुल्हाड़ी व बसूले सहित खोर खुदनी का ही उपयोग करते हैं।
ये शिल्पी जिस कुशलता के साथ दो मंजिले रथ का निर्माण करते हैं, वह 40 फुट उंचा और 32 फुट लंबा होता है। इसकी चौड़ाई 20 फिट होती है तथा इसे बनाने में 50 घन मीटर लकड़ी का उपयोग होता है।
तराशा जाता है लकडिय़ों को
माचकोट व तिरिया से लाए गए साल वृक्ष के मोटे तनों को सीधे चीर कर 20 से 25 फुट फारों में बदला जाता है। दो दर्जन से अधिक शहतीरों को लंबाई के आधार पर अलग-अलग रख दिया जाता है। इसके बाद रथ के एक्सल के लिए दो मजबूत लकडिय़ों को तराशा जाता है। इसके दोनों छोर पर चक्का बिठाने के लिए आकार तय किया जाता है।
अदभुत होती है चक्कों की सरंचना
इन आयताकार आकारों के बाद चक्का बिठाने की बारी आती है। रथ परिचालन का सारा दारोमदार पहियों पर ही होता है। रथ का पहिया बनाने के लिए मजबूत लकडिय़ों के दो अर्धगोलाकार आकृतियों को आपस में बिठाकर पूर्ण गोलाकार चक्कों का रूप दिया जाता है।
इन चारों चक्कों का आकार, मोटाई व उनके बीच बने नार का निर्माण ऐसे होता है कि रथ को खींचने के लिए कम से कम बल लगाया जाता है। बस्तर दशहरा देखने के लिए विश्वभर से पर्यटक अपार उत्कंठा लिए बस्तर पहुंचते हैं। बस्तर दशहरा इनके आर्कषण और कौतूहल का विषय होता है।
अन्य खबरें :