नई दिल्ली। बलूच नेता और बुद्धिजीवियों ने शनिवार को यहां आंतरिक उपनिवेशवाद की वजह से बलूचिस्तान में मानवाधिकार के उल्लंघन का मसला उठाया और पाकिस्तानी फ़ौज की प्रताड़ना से मुक्ति और भारत की तरह पूरी तरह से खुले लोकतंत्र में सांस लेने की आज़ादी की मांग की।
‘बलूच नेशनलिटी- इंटरनल कॉलोनाइजेशन ऑफ बलूचिस्तान बाई पाकिस्तान’ विषय पर सेमिनार में बलूच नेता मज़दक दिलशाद बलोच ने कहा कि वह दुनिया को बताना चाहते हैं कि किस तरह बलूचिस्तान में मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।
‘हम बलूच की राष्ट्रीयता की बात करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि उनकी राष्ट्रीयता पाकिस्तान से मिलती ही नहीं और वहां पर उसका आंतरिक उपनिवेशवाद चल रहा है। बलूचिस्तान के लोगों की लोकतांत्रिक आवाज दबाई जाती रही है।
उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान का आंतरिक उपनिवेशवाद मोहम्मद अली जिन्ना का सोचा-समझा षड्यंत्र था। इसी आंतरिक उपनिवेशवाद की वजह से बलूचिस्तान की हालत बदतर है। वहां मातृ मृत्यु दर 785 है और महिला साक्षरता दर केवल दो फीसदी है।
उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान में विरोध के सुर तेज हो गए हैं। दुनियाभर में बलूच नेता वहां पर हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। यह प्रदेश प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है, लेकिन इसके बावजूद बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे गरीब प्रांत है। पाक सेना आम जनता का शोषण कर रही है और उन्हें उनके वाजिब हक नहीं दे रही।
इसके विरोध में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी और लश्कर-ए बलूचिस्तान जैसे अलगाववादी समूह लगातार आजादी के लिए जंग लड़ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि वहीं पाक सेना ने अलगावादियों के खिलाफ लड़ाई छेड़ रखी है और कई बड़े सैन्य अभियान चला रखे हैं। नतीजा ये है कि पाक सेना यहां अपहरण, उत्पीड़न और हत्याएं कर रही है और इसे लेकर पाकिस्तान के खिलाफ विरोध के सुर तेज हो रहे हैं।
बलूच नेता नायला कादरी ने पहले एक बार कहा था कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान रासायनिक हथियार का इस्तेमाल कर रहा है। यहां बच्चों तक को मारा जा रहा है। बलूचिस्तान में लोगों की नाराजगी कई दशकों से चली आ रही है। बलूचिस्तान में गरीबी और बेरोजगारी की तस्वीर और भी ज्यादा चौंकाने वाली है।
गौरतलब हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 15 अगस्त को लाल किले से अपनी भाषण में बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन का मसला उठाया था। बलूचिस्तान पर हुए सेमिनार में एक पुस्तिका रिलीज की गई जिसका नाम है- ‘बलूचिस्तान- व्हाट वर्ल्ड नीड टू नो’।
करीब 40 पेज की इस पुस्तिका में बलूचिस्तान की स्ट्रैटजिक अहमियत बताई गई है। इसी बुकलेट में एक जगह लिखा है कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान का आंतरिक उपनिवेशवाद मोहम्मद अली जिन्ना का सोचा-समझा षड्यंत्र था।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) संघ से जुड़े संगठन इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन (आईपीएफ) ने इस सेमिनार का आयोजन किया। सेमिनार में भारतीय सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल जी. डी. बक्शी ने कहा की पाकिस्तान ने लगभग 30 सालों से भारत के साथ छद्म युद्ध छेड़ा हुआ हैं और भारत के हज़ारों लोग इसमें अपनी जान गंवा चुके हैं।
उन्होंने कहा कि भारत को आज तक सिर्फ तीन प्रधानमंत्री मिले जिन्होंने फ़ौज को सीमा पारकर दुश्मन पर हमला बोलने की इजाज़त दी। आज भारत को नियंत्रण रेखा पार कर लक्षित हमले किए हुए दिन हो गए हैं और उन्हें अब भी पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई का इंतज़ार हैं।
बक्शी ने कहा कि पाकिस्तान ने परमाणु बम से पूरे विश्व को धमकाया हुआ हैं लेकिन वो देश युद्ध की स्थिति में किस हद तक जा सकता है, इसका उन्हें पूरा अनुमान है। पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक तारेक फतह ने कहा कि भारत के लोग मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले चाहते थे कि जो भी पीएम बने वह सूट बूट वाला हो, अंग्रेजी बोलता हो।
जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो लोगों ने सोचा कि यह चाय बेचने वाला भला क्या करेगा। और आज उसी व्यक्ति ने पड़ोसी देश को आखिरकार चाय पिला ही डाली। सेमिनार में कई बलूच कार्यकर्ता भी शामिल हुए। इनके साथ ही बलूच रिपब्लिक पार्टी और फ्री बलूच मूवमेंट के प्रतिनिधियों ने भी सेमिनार में शिरकत की।
2013 की रिपोर्ट के मुताबिक, बलूचिस्तान की 46.68 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी गुजार रही है। बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों के मामले में सबसे धनी है, लेकिन इसके बावजूद यह पाकिस्तान का सबसे गरीब प्रांत है।
पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ स्टैटेस्टिक्स के आंकड़ों के मुताबिक, प्रांत में रोजगार के मौके बमुश्किल 4 फीसदी हैं। बलूच राष्ट्रवादी नेताओं और दुनिया भर के बलूच कार्यकर्ताओं ने भारत द्वारा नियंत्रण रेखा पार कर कार्रवाई करने को सराहा। उन्होंने इस तरह के अभियानों को जारी रखने का अनुरोध किया।
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