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why political Questioning over India's surgical strikes
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राष्ट्रवाद के ज्वार में खून की दलाली का खलल

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राष्ट्रवाद के ज्वार में खून की दलाली का खलल

why political Questioning over India's surgical strikes

पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद देश विदेश में भारत और उसकी सेनाओं के प्रति जैसा वातावरण बना वैसा पूर्व में कभी कदाचित ही देखनें में आया होगा।

देश में जहां उत्साह का वातावरण बना वहीं विदेशों में इस स्ट्राइक के बाद वैश्विक स्थितियां भारत के पक्ष में बनती दिखाई दी और पाकिस्तान अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर अकेला और अलग थलग पड़ गया।

स्वयं पाकिस्तान इस अलग विलग करने वाले वैश्विक माहौल से घबराकर आतंकियों को समर्थन देनें से बचने की जुगाड़ में दिखा। नवाज शरीफ ने पाकिस्तानी फ़ौज और आईएसआई से कह दिया कि आतंकियों के विरुद्ध किसी भी कार्रवाई में कतई अड़ंगे न लगाएं।

पाकिस्तानी समाचारपत्र डान में समाचार प्रकाशित हुआ कि शरीफ ने पाकिस्तानी सुरक्षा सलाहकार और गुप्तचर विभाग को पाक के चारो प्रान्तों में आतंकियों के विरुद्ध कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं। नए घटना क्रम से पाकिस्तान अवाक व हैरान हो गया जब विश्व के सभी देश उससे अलग खड़े दिखाई देने लगे।

पाकिस्तान को तुरंत ही विश्व जनमत ने इस बात का अहसास करा दिया कि आतंकियों के ठिकानों को पाक की भूमि पर पनपाने का छदम खेल अब और अधिक नहीं चल पाएगा। इस प्रकार वैश्विक स्तर पर तो भारत ने एक सकारात्मक वातावरण बना लिया किन्तु घरेलू मोर्चे भारत की स्थिति इससे ठीक विपरीत दिखाई पडऩे लगी।

पहले तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने इस सर्जिकल स्ट्राइक हेतु मोदी सरकार की प्रशंसा की। तेजी से चले घटनाक्रम में इस प्रसंशा के ठीक बाद में सर्जिकल स्ट्राइक नरेंद्र मोदी की देश भर में हो रही भूरी-भूरी प्रसंशा से ये दोनों नेता बेतरह घबरा गए।

इन दोनों नेताओं को जैसे राजनीतिक मूर्छा आने लगी और राजनीतिक अचेतन में पहुंचे केजरीवाल ने सीधे नरेंद्र मोदी से पाकिस्तान में हुई सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत जारी करने की मांग कर दी और फिर धीरे से उनकी इस बेसुरी राग में कर्कश ध्वनि कांग्रेस के संजय निरुपम, दिग्विजय सिंग चिदंबरम जैसे नेताओं ने भी मिला दी।

इन चारों नेताओं को देश भर में नरेंद्र मोदी के पक्ष में उभरे वातावरण से व सम्पूर्ण देश में उभरे राष्ट्रवाद के ज्वार से टीस हुई की कि ये भारतीय सेना को भी राजनीति में घसीटने के और सेना द्वारा जारी बयान पर भी सवाल उठाने के निम्नतम स्तर पर आ गए।

यद्दपि कांग्रेस अपने इन तीनों नेताओं से किनारा करती दिखाई दी तथापि कांग्रेस के गोलमोल स्पष्टीकरण से वह हो गए नुकसान की भरपाई नहीं कर पाई। इन सब के बाद सारी हदें टूट गई जब कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी को जवानों के खून की दलाली करने वाला बताया।

राहुल गांधी के इस प्रकार के बयान से कई बड़े व बुजुर्ग कांग्रेसी नेता नजरें नीची कर बगले झांकते नजर आने लगे, किन्तु बयान चूंकि राहुल गांधी ने दिया था अत: इस बयान से असहमत व नाराज कांग्रेसी नेताओं की देश भक्ति पर तुरंत राहुल भक्ति हावी हुई और वे मजबूरन राहुल और उनके बयान के पक्ष में खड़े दिखाई देनें लगे।

अब देश भर में कांग्रेस के पूर्व के बयान भी स्मरण किए जाने लगे जिसमे कभी उसने नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर तो कभी जहर की खेती करने वाला बताया गया था। भाषा के इस निचले स्तर पर कांग्रेस के आ जाने से सभी हैरान रह गए।

ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी की भाषा से केवल भाजपा को नाराजी आई, उनकी अपनी पार्टी के लोग भी यह भाषा सुनकर हतप्रभ हो गए थे किन्तु मज़बूरी में उन्हें चुप ही रहना पड़ा और राहुल के समर्थन में उतरना पड़ा। जवाब में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि राहुल गांधी के मूल में ही खोट है।

उधर मोदी से सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगने वाले अरविन्द केजरीवाल ने भी राहुल गांधी की इस बात पर उनकी सार्वजनिक तौर पर कड़ी भर्त्सना कर दी। निश्चित तौर पर भारतीय राजनीति के इस दौर में जिस प्रकार भाषा व आचरण का ह्रास हुआ है वह गंभीर रूप से चिंतनीय है।

देश भर में एक आम राय बन गई कि सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो जारी करना देश हित में व सेना हित में नहीं है तो ऐसा नहीं किया जाना चाहिए, तब ऐसे वातावरण में केजरीवाल के सबूत मांगने और राहुल के खून की दलाली वाले कथनों ने जहां कांग्रेस की हालत पतली कर दी वहीं देश में नए सिरे से चल पड़े राष्ट्रवाद के राग के स्वर को और अधिक पुष्ट कर दिया।

देश की जनता ने स्पष्ट समझ लिया कि कांग्रेस और केजरीवाल भाजपा विरोध के अंधे चलन में किसी भी हद तक जा सकते हैं और इस बेसुरे बाजे को बजाने में वे में सेना को भी नहीं छोड़ेंगे।

हालात यह हो गए कि केजरीवाल और संजय निरुपम कुछ दिनों के लिए पाकिस्तान मीडिया के हीरो बन गए और पाक मीडिया को उन्हें बार बार दिखाकर और छापकर भारतीय सर्जिकल स्ट्राइक पर प्रश्न उठाने का एक प्रबल अवसर मिल गया।

ऐसा स्पष्ट लगने लगा कि एक लम्बे समय से सत्ता का सुख भोग रही कांग्रेस पार्टी सत्ताविहीन होनें से नीचता की किसी भी हद तक जा सकती है। इस स्ट्राइक से नरेंद्र मोदी को देश भर का जैसा समर्थन मिला वह उनके प्रधानमन्त्री बनने के बाद का पहला सुखद अनुभव था।

अचानक कांग्रेसियों को जैसे स्मृति लोप से वापसी का भान हुआ और वे कहने लगे कि सर्जिकल स्ट्राइक तो कई बार कांग्रेस के शासन काल में भी हुई है।

कुछ दिन पूर्व तक जो लोग नरेंद्र मोदी के गत लोकसभा चुनाव दौरान के भाषणों को बार बार यह कहकर स्मरण करा रहे थे कि मोदी कहने के कुछ और थे और करने के कुछ और, या वे लोग जो मोदी के छप्पन इंच वाले भाषणों को बार बार याद दिला रहे थे, वे अब बगले झाकते नजर आने लगे।

मोदी विरोधी दल के नेता केजरीवाल व राहुल गांधी प्रारम्भ में मजबूरीवश सर्जिकल स्ट्राइक व मोदी प्रसंशा कर तो बैठे किन्तु तुरंत ही अपने असली रूप में लौट आए किन्तु तब तक वे मोदी को देश भर से मिल रही प्रसंशा और समर्थन इतने अवसादग्रस्त हो गए कि कुछ भी अनर्गल बोलने व प्रलाप करने लग गए।

तथाकथित मोदी व सेना विरोधी बयानों के बाद मोदी विरोधी नेताओं को जैसे ही अपना नुकसान नजर आया वे तुरंत आनन फानन में फायर कंट्रोल में जुट गए और अन्य बयानों के माध्यम से स्थिति को साधने का प्रयास करने लगे किन्तु तब तक बड़ी देर हो चुकी थी और वे बड़ी राजनीतिक हानि झेलने को मजबूर हो चुके थे।

इस बीच जो सबसे लाभकारी पक्ष रहा वह यह कि देश ने राष्ट्रवाद का एक नया ज्वार देखा जो लम्बे समय तक टिकने वाला प्रतीत होता है। अब देखना यह है कि देश में उभरे इस राष्ट्रवाद के नए ज्वार को नरेंद्र मोदी और उनकी टीम अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर चीन पाकिस्तान सीमा पर कितना स्वर दे पाती है। हां, यह स्पष्ट भी हुआ कि देश की जनता ऐसे सर्जिकल स्ट्राइक्स की श्रृंखला चाहती है तब तक, जब तक कि पाकिस्तान बार बार चुनौती देना बंद न कर दे।

प्रवीण गुगनानी

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