नागपुर/मुंबई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को संघ मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में शिक्षा को संस्कृति और संस्कार से जोड़ने पर बल दिया साथ ही शिक्षा के व्यवसायीकरण से बचने को कहा।
भागवत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्थापना दिवस पर दशहरा रैली में स्वयंसेवकों को सम्बोधित कर रहे थे। अपने भाषण में उन्होंने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को भी स्पर्श किया। इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, सत्यप्रकाश राय सहित बड़ी संख्या में स्वयं सेवक उपस्थित थे।
संघ प्रमुख ने अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ की और नसीहत भी दी। एक तरफ जहां सर्जिकल स्ट्राइक को सराहा वहीं दूसरी तरफ गोरक्षकों पर बयान को नकारा भी। उन्होंने तकनीक और मनुष्य के समन्वय की बात पर ज़ोर दिया। साथ ही मीडिया के बाजारू होते चरित्र पर भी टिप्पणी की।
अपने भाषण में उन्होंने दार्शनिक तत्वों की व्याख्या करते हुए संघ और समाज के एकरास्ता पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य लेना नहीं, देना है। हम अपने आचरण और सेवा से समाज को कुछ दे सकें, यही संघ का उद्देश्य है।
संघ प्रमुख ने कहा कि इस साल विजयादशमी कुछ खास है। भारतीय संस्कृति इतनी विशाल है कि इसमें दुनिया के सभी संप्रदाय-पंथ समन्वित हो जाते हैं, इस पर गर्व करना सीखिए। जिनकी दुकान कट्टरता पर चलती है वे ताकतें भारत को आगे नहीं बढ़ने देना चाहतीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए उन्होंने केंद्र सरकार को ‘यशस्वी’ बताया और कहा कि देश में इस समय जो सरकार चल रही है, वह काम करने वाली है। सर्जिकल स्ट्राइक से गदगद संघ प्रमुख ने मोदी सरकार की जमकर तारीफ की।
उन्होंने सेना और केंद्र सरकार की तारीफ करते हुए पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान पर भी निशाना साधा। उन्होंने केंद्र की आलोचना करने वाली विपक्षी पार्टियों को भी निशाने पर लिया। भागवत ने अपने भाषण में गोरक्षा, शिक्षा, कश्मीर, कश्मीरी पंडितों जैसे मुद्दों पर भी बात की।
उन्होंने मुजफ्फराबाद, गिलगित, बलूचिस्तान को भारत का अविभाज्य अंग बताया और कश्मीर में हो रही हिंसा पर चिंता जताई। कश्मीर मुद्दे पर सरकार के रुख की तारीफ करते हुए भागवत ने कहा कि जो बातें कहीं जा रही हैं, उसे धरातल पर भी उतारा जाना चाहिए।
उन्होंने मोदी के भाषण के उस अंश का भी जिक्र किया, जिसमें प्रधानमंत्री ने कहा था कि कश्मीर में विजय के साथ विश्वास की जरूरत है। भागवत ने कहा कि पूरा जम्मू-कश्मीर नहीं बल्कि कुछ ही हिस्सा हिंसा की चपेट में है। केंद्र और राज्य को कश्मीर पर एकमत होकर नीति बनानी चाहिए।
कश्मीरी पंडितों के विस्थापन पर अपनी राय जाहिर करते हुए कहा कि कश्मीरी पंडितों को वापस उनकी जमीन पर बसाना होगा। भागवत के मुताबिक जब ये सारी चीजें होंगी, तब जनता को लगेगा कि कश्मीर की चिंता भी देश के अन्य प्रांतों की तरह की जा रही है।
संघ प्रमुख ने गोरक्षकों का समर्थन करते हुए कहा कि गोरक्षक अच्छा काम कर रहे हैं। गोरक्षकों को उपद्रवियों के साथ नहीं जोड़ा जा सकता लेकिन गोरक्षकों को भी कानून के दायरे में रहकर काम करना जरूरी है।
उन्होंने कहा कि भारत विश्व का प्राचीन देश है। भारत को सभी के सपनों का देश बनाने के लिए केंद्र सरकार जिस तरह से काम कर रही है, उसके परिणाम आने में कुछ तो समय लगेगा ही। इसके लिए हम सभी को इंतजार करना ही होगा। संघ प्रमुख ने मध्य एशिया में हो रहे संघर्ष के लिए बिना किसी देश का नाम लिए उनकी गलत नीतियों को जिम्मेदार ठहराया।
उन्होंने कहा कि शासन और प्रशासन की नीतियां ऐसी होनी चाहिए जिससे समाज में आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति का जीवन सुखी, सुंदर, सुरक्षित और उन्नत हो सके। इसके साथ-साथ समाज भी एकरस, संगठित व सजग होकर इन दोनों का सहयोग करे। जरूरत पड़ने पर नियमन भी करे।
यह राष्ट्रजीवन की उन्नति के लिए आवश्यक है। इन तीनों के एक दिशा में सुसूत्र व परस्पर संवेदनशील होकर समन्वित चलने से ही, आसुरी शक्तियों के छल-कपट व्यूहों के भ्रमजाल को भेदकर, समस्याओं व प्रतिकूलताओं की बाधाओं को चीरकर परम विजय की प्राप्ति में हम समर्थ हो सकेंगे।
संघ प्रमुख ने अपने भाषण का समापन – “देह सिवा बरु मोहे ईहै, सुभ करमन ते कबहूं न टरों…” के साथ किया।