सबगुरु न्यूज-सिरोही। सिरोही पुलिस विधानसभा को भ्रमित तो नहीं कर रही है; यदि कर रही है तो निस्संदेह सबसे बडे सदन में दिए गए उसके जवाब को एक हिमाकत ही कहा जाएगा। सिरोही में जनवरी 2016 से जुलाई 2016 के बीच रास्ता रोकने के दर्ज प्रकरणों की जो सूचना सिरोही पुलिस ने विधानसभा को दी है वह देखने में ही अस्पष्ट और पुलिस कार्रवाई पर शक पैदा करने वाली लग रही है।
सिरोही पुलिस ने विधानसभा में गृहमंत्री के माध्यम से जो जवाब भिजवाया है वह जवाब ही सिरोही पुलिस को कठघरे में खडा कर दे रहा है। इतना ही नहीं जवाब में आए नाम प्रथम दृष्टया तो यही दर्शा रहे हैं कि किस तरह पुलिस राजनीतिक प्रभाव वाली जाति के व्यक्तियों को बचाने की कोशिश करते हुए राजनीतिक रूप से कमजोर जातियों के युवकों पर ही अपना शिकंजा कसने का प्रयास कर रही है। इसके बाद भी वह यह जवाब दे रही है कि सिरोही पुलिस ने इस मामले में किसी को बचाने की कोशिश नहीं की।
-यह जवाब नदारद
विधायक राजेन्द्र सिंह यादव की ओर से विधानसभा में सिरोही रास्ता रोकने के मामले की जानकारी चाही थी। गृहमंत्री ने सिरोही पुलिस से मिली जानकारी के आधार पर बताया कि 16 जुलाई 2016 को सिरोही कोतवाली में रास्ता रोकने की एक रिपोर्ट पुलिस ने दर्ज की थी। यादव ने एक सवाल यह भी पूछा था कि इस प्रकरण में किस-किस को पकडा गया और पुलिस उन्हें पकडने कब-कब गई।
इस सवाल के जवाब में गृहमंत्री ने बताया कि उक्त प्रकरण में घटनास्थल का निरीक्षण कर गवाहों से अनुसंधान किया गया एवं घटनास्थल की फोटोग्राफी व विडियोग्राफी की सीडी बनवाई। इसके बाद रास्ता रोकने की घटना में शामिल सारणेश्वर निवासी चन्दु रावल पुत्र ओटाराम, भवानीशंकर पुत्र लुम्बाराम रावल, भूराराम उर्फ मगन पुत्र नथाजी रावल, गोपाल कंसारा, टांकरिया निवासी विकास कंसारा, कालंन्द्री निवासी करताराम देवासी, मांडवा निवासी प्रकाश पुत्र रामाराम देवासी व मुकेश देवासी को प्रकरण में अनुसंधान के लिए बार-बार तलब किया, लेकिन वह नहीं आए।
इस पर जांच अधिकारी ने इन सभी की दस्तयाबी के लिए 17 जुलाई, 22 जुलाई, 26 जुलाई, 11 अगस्त व 25 अगस्त को संभावित स्थानों पर तलाश की, किन्तु याह नहीं मिले और अग्रिम अनुसंधान नहीं हो सका।
-जवाब पर उठ रहे हैं कई सवाल
गृहमंत्री ने सिरोही पुलिस के माध्यम से मिले जवाब में जिन आरोपियों के नाम गिनाए हैं, आम तौर पर वह सिरोही और उनके संभावित ठिकानों पर सुलभ हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पुलिस ने मूल एफआईआर में दर्ज कई आरोपियों के नामों का तो जिक्र तक नहीं किया, जबकि यह लोग कई बार आम तौर पर प्रभारी मंत्री ओटाराम देवासी के साथ इन प्रकरण के बाद नजर भी आए हैं और मीडिया में इनके फोटो भी प्रकाशित हुए हैं।
जिन लोगों के नाम पुलिस ने गिनाए हैं उनमें से अधिकांश उन जातियों के हैं जिनके प्रभावशाली राजनीतिक रहनुमा सिरोही में नहीं हैं। ऐसे में जवाब से यही प्रतीत हो रहा है कि सिरोही पुलिस इन लोगों को बलि बकरा बनाकर राजनीतिक पहुंच वाले लोगों के नामों को उजागर करने से बचती हुई नजर आ रही है।
-इन आधा दर्जन लोगों के यहां क्या कार्रवाई का जवाब नदारद
सिरोही के माध्यम से गृहमंत्री ने जो जवाब विधानसभा में दिया है वह जवाब ही सिरोही पुलिस की कार्यप्रणाली को कठघरे में खडा कर दे रहा है। इसमें बताए अनुसार जवाब के विधानसभा में पहुंचने तक तो सिरोही पुलिस ने सात लोगों को न तो पकडने का प्रयास किया और न ही उनके घरों पर दस्तियाब करने का प्रयास किया।
इनमें से कुछ लोग सिरोही के विधायक और वसुंधरा राजे सरकार के गोपालन और देवस्थान राज्यमंत्री के साथ ही पुलिस को कई बार दिखे हैं और खुद मुख्यमंत्री के दौरे के दौरान कुछ प्रतिनिधि मंडलों में भी नजर आए हैं। जवाब के अनुसार तो यही तकाजा लगाया जा रहा है कि एफआईआर में नामजद सिरोही के भाटकडा निवासी नारायण देवासी, सुमेरपुर निवासी जीवाराम नवाराम देवासी, वेराविलपुर निवासी जीवाराम रेबारी, हार्दिक पुत्र अचलाराम देवासी, नया जोयला निवासी हकमाराम पुत्र अचलाराम देवासी, शिवगंज निवासी कालूराम पुत्र बाबराराम देवासी और सारणेश्वर निवासी हरिशंकर रावल को पकडने के पुलिस ने कोई प्रयास नहीं किए। या फिर पुलिस इन्हें ही बचाने का प्रयास कर रही है।
पुलिस ने विधानसभा में मूल एफआईआर भेजी है, लेकिन सवाल का जो जवाब लिखकर भेजा है उसमें इन लोगों के नाम नहीं है। विधानसभा में दिए गए जवाब के अनुसार जिन लोगों को सिरोही पुलिस ने दस्तियाब करने की कोशिश नहीं की उनमें से इत्तेफाकन प्रभारी मंत्री ओटाराम देवासी के समाज से जुडे हैं और कुछ उनके इर्द-गिर्द रहने वाले हैं।
-एक सवाल यह भी
सिरोही के सारणेश्वर मोड की यह घटना है, जिसमें 16 जुलाई को बनासकांठ से अपने गांव की ओर लौट रहे देवासी समाज के एक काफिले को वाहन ने चपेट में ले लिया था। इस घटना में किशोरी राधा समेत कुछ जानवरों की मौत हुई थी। इसके बाद रास्ता जाम किया गया था।
जिन लोगों के यहां पर पुलिस ने विधानसभा में दिए गए जवाब के अनुसार दस्तियाबी की वह न तो इस बच्ची के जाति के थे और न ही उनके रिश्तेदार। तो इस दुखद हादसे में जान गवा बैठी बच्ची के परिवार के लिए बीस लाख रुपये की मांग करने के लिए हाइवे जाम करने का नेतृत्व करने तथा एडीएम और एएसपी से बहसबाजी करने वाले लोगों के यहां पुलिस ने दबिश तक नहीं दी।
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