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indian railways waiting ticket rules
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भारतीय रेलवे को वेटिंग टिकट से अमीर बनाते सुरेश प्रभु

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भारतीय रेलवे को वेटिंग टिकट से अमीर बनाते सुरेश प्रभु
indian railways waiting ticket rules
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विकास का यह भारतीय रेलवे का गजब का जुनून है, फिर इसके लिए किसी की जेब पर डाका डालना पड़े तो क्‍या हर्ज है।

यह अजीब नहीं लगता कि आपने रेलवे की वेटिंग टिकट ली हो, इस प्रत्‍याशा में कि यह कंफर्म हो जाएगी और हम अपनी यात्रा सुखद तरीके से पूर्ण कर सकेंगे लेकिन इंटरनेट के इस युग में फार्म पर अपना मोबाइल नम्‍बर दर्ज करने के बाद आपको रेलवे इस बात की भी जानकारी देना उचित न समझे कि आपका टिकट कंफर्म नहीं हुआ है?

यदि आप किसी कारण से कहीं फंस गए हैं और आपकी ट्रेन एक मिनट पहले स्‍टेशन छोड़ दे और जब टिकिट विन्‍डो पर आपकी बारी आए तो आपको बताया जाए कि आपकी टिकट कैंसिल नहीं हो सकती, क्‍यों कि आप एक मिनट देरी से आए हैं। हमारा कम्‍प्‍यूटर इसे नहीं एक्‍सेप्‍ट कर रहा।

वाह, सुरेश प्रभू जी, यह अच्‍छा तरीका है किसी की गाढ़ी कमाई को हड़पने का? सुरेश प्रभु किसी जरूरतमंद को चलती ट्रेन में दूध पहुंचाते हैं, निश्‍चित तौर पर उन्‍हें वाहवाही मिलती है। वे स्‍लीपर क्‍लास में सस्‍ती दर पर कंबल-तकिए भिजवाते हैं, उनकी तारीफ होती है और वे जनता भोजन स्‍टेशनों पर बिकवाते हैं तब भी आम जनता उनकी तारीफ के पुल में कसीदे गढ़ती है कि कई साल बाद ऐसा रेलमंत्री देश को मिला है जिसे एक ट्वीट पर हम अपनी बात आसानी से बता सकते हैं।

लेकिन जब उनका रेलवे नियमों में बांधकर आम जनता की गाढ़ी कमाई को किसी न किसी बहाने हड़पने की कोशिश करता है, तब यह जनता चुप रहे कैसे हो सकती है? कम से कम नियम बनाने से पहले रेलवे के अधिकारी और ज्ञानवान यह तो सोचते कि नियम भारत देश के नागरिकों के लिए बनाए जा रहे हैं, यह वह भारत है जो विकासशील है, विकसित नहीं हुआ है, बल्कि जहां विकसित होने की प्रक्रिया सतत है, इसलिए जो नियम बनाएं वे व्‍यावहारिक हों।

अब क्‍या यह माना जाए कि रेलवे जनता के लिए नहीं है, वह कमाई का जरिया बन गई है, येन केन प्रकारेण धन आना चाहिए, फिर वे किसी भी तरीके से आए ? एक तरफ प्रधानमंत्री देश से भ्रष्‍टाचार की दीमक समाप्‍त करने के लिए 500-1000 के नोट बंद करते हैं और दूसरी ओर रेल मंत्रालय एवं उसके नियम हैं जो सीधे-सीधे जनता के धन को लूट रहे हैं। क्‍या यह एक तरह का भ्रष्‍टाचार नहीं है?

जनता को रेलवे जब कन्‍फर्म यात्रा टिकट देती है और यह जनता अपने निजी कारण से उस पर यात्रा नहीं कर पाती, तब जनता से टिकट पर लिए गए पूरे धन को रेलवे रख लेता है, उस पर यह जनता कुछ नहीं कहती, क्‍योंकि वह यह मानती है कि यात्रा न करने पर गलती उसकी है।

ऐसे में रेलवे को पूरा हक है कि वह उसके पूरे रुपए रख ले, क्‍यों कि टिकट कन्‍फर्म करने के बाद हो सकता है कि रास्‍ते भर ट्रेन में वह सीट खाली जाए। जब टिकट को निरस्‍त कराया जाता है, उस समय रेलवे टिकिट के कागज से लेकर अपनी मेहनत के नाम पर मूल धन न वापस कर उसमें से एक निश्‍चित राशि काटकर वापस देती है, तब भी यह जनता चुप रहती है।

किंतु यह सभी सोचें कि इसे रेलवे का कहां से सही कदम माना जाए? आप का वेटिंग टिकट है, आप उस पर यात्रा नहीं कर सकते हैं। यदि आप रेल के स्‍टेशन से गुजर जाने के बाद कुछ समय देरी से जाएं तो आपको यह कहकर बैरंग लौटा दिया जाए कि आपके पैसे वापस नहीं करेगा रेलवे, क्‍योंकि आपकी ट्रेन स्‍टेशन छोड़ चुकी है।

जब टिकट कन्‍फर्म हुआ ही नहीं तो स्‍वभाविक है कि जिसका टिकट है, वह अपने अन्‍य कार्यों में उलझ गया होगा या ऐसा होने की संभावना है, वह किसी ओर से अपने टिकट को निरस्‍त कराने के लिए भेजे। जिसे भेजा वह कुछ देरी से भी स्‍टेशन पर जा सकता है और समय पर भी, इसलिए कि उसे मालूम है कि फलां को अब यात्रा करनी नहीं।

लेकिन यह क्‍या बात हुई कि वह स्‍टेशन पहुंचे कतार में लगे विंडो पर अपना नम्‍बर आने में देरी हो जाए और उसे कह दिया जाए कि आपका धन अब आपको वापस नहीं किया जाएगा? वह रेलवे की संपत्‍त‍ि हो गया है।

कम से कम सरकार और उसके उपक्रमों से तो देश की जनता यह उम्‍मीद बिल्‍कुल नहीं करती कि वह इस तरह जनता के पैसे लूटे, रेलवे से तो बिल्‍कुल भी नहीं….. काश, यह बात सुरेश प्रभु समझें कि ईमानदारी का एक पैसा भी बहुत कीमत रखता है, भारत में हो सकता है कुछ लोग बेईमान हों, उनके रुपए इस तरह जाने से उन्‍हें कोई फर्क न पड़ता हो लेकिन तमाम लोग हैं जिनका हर एक पैसा तप और ज्ञान की भट्टी में तपने के बाद हाथ में आता है, इसलिए आप उसके धन पर इस तरह डाका नहीं डाल सकते हैं।

फिर भले ही ट्रेन गंतव्‍य स्‍थान से छूट जाए वेटिंग टिकट के रुपए वापिस लेना हर भारतीय नागरिक का अधिकार है, क्‍यों कि वह उस पर यात्रा नहीं करता और वह उसकी मेहनत की कमाई है।

इन दिनों रेलवे जिस तरह दादागीरी करते हुए, जनता पर अपने मनमाने नियम लादकर और ट्रेन में उसकी चलने की मजबूरी का फायदा उठाकर आम आदमी के पैसों पर जो अपना अधि‍कार जमा रहा है, कम से कम भारत जैसे देश में यह आज सफल लोकतंत्र की निशानी तो नहीं कही जा सकती है? भारत के रेलमंत्री सुरेश प्रभु गंभीरता से इस पर विचार करें।

डॉ. मयंक चतुर्वेदी