मुंबई। रेटिंग 2.5 मुख्य कलाकार- विद्या बालन, अर्जुन रामपाल, अंबा सान्याल, जुगल हंसराज, खराज मुखर्जी, टोटाराय चौधरी, ट्यनिशा शर्मा, मानिनी चड्ढा और नाईशा सिंह।
बैनर- बाउंड स्क्रिप्ट, पैन मूवीज प्रस्तुतकर्ता- जयंतीलाल गाढ़ा निर्माता- कौशल गाढ़ा, अक्षय गाढ़ा, सुजाय घोष निर्देशक- सुजाय घोष कहानी- सुजाय घोष, सुरेश नायर पटकथा- सुजाय घोष संवाद- रितेश शाह, सुजाय घोष कैमरामैन- तापन बसु एक्शन मास्टर- शाम कौशल एडीटर-नम्रता राव गीतकार- अभिजीत भट्टाचार्य संगीतकार क्लिंटन कोरिजो सुजाय घोष की कहानी-2 का उनकी पहली वाली कहानी से सिर्फ इतना रिश्ता है कि ये भी महिला केंद्रीत फिल्म है।
इसमें भी विद्या बालन का किरदार हीरो है और कहानी की कहानी में-2 जोड़ दिया गया है। ये सिक्वल नहीं, बल्कि सीरिज कही जा सकती है, जिसमें सुजाय घोष ने इस बार एक एेसे सामाजिक मुद्दे को आधार बनाया है, जो हमारे देश और समाज की बड़ी समस्या बनती जा रही है।
इसकी शुरुआत होती है एक मां (विद्या बालन) से, जो अपनी 12 साल की अपाहिज बेटी के साथ रहती है। मां को इस बात का इंतजार है कि अमेरिका में बेटी का आप्रेशन हो जाए, तो बेटी के फिर से अपने पैरो पर चलने की उम्मीदें बढ़ जाए।
मां एक दफ्तर में काम करती है और उसे अपनी डायरी लिखने का शौक है। मां एक दिन दफ्तर जाती है और घर से उसकी बेटी गायब हो जाती है। मां परेशान हो जाती है। उसे सूचना मिलती है कि बेटी का किसी ने किडनैप कर लिया है और उसे जान से मारने की धमकी दी जाती है।
बेटी को बचाने के लिए अपहरणकर्ता मां को एक जगह पंहुचने के लिए वहां बुलाया गया है। मां अपनी बेटी के लिए बदहवासी में दौड़ती है। रास्ते में उसका एक्सीडेंट हो जाता है और वो कोमा में पंहुच जाती है।
इलाके के पुलिस इंस्पेक्टर इंद्रजीत (अर्जुन रामपाल) को उस महिला का नाम विद्या सिन्हा बताया जाता है, जबकि इंद्रजीत को उसका नाम दुर्गा रानी सिंह याद आता है। उस महिला के घर से तलाशी के दौरान इंद्रजीत को एक डायरी हाथ लगती है, जिसमें उस महिला की बीती जिंदगी के पन्ने पलटते चले जाते हैं।
उसे पता चलता है कि कैसे एक स्कूल में कार्यरत दुर्गा रानी सिंह को एक बच्ची मिनी (नाइशा सिंह) के यौन शोषण का शिकार होने का पता चलता है, जो अपने ही घर में इस शोषण का शिकार होती रहती है। उस बच्ची का चाचा (जुगल हंसराज) उसे यौन शोषण का शिकार बनाता है और उसकी दादी (अंबा सान्याल) को ये सब पता होने के बाद भी ये शोषण बंद नहीं होता।
दुर्गा खुद अपने बचपन के दिनों में इसी तरह से अपने परिवार में यौन शोषण का शिकार हो चुकी थी, इसलिए वो मिनी के साथ हो रहे शोषण को रोकने के लिए आवाज बुलंद करती है, तो उसकी नौकरी चली जाती है और मिनी का परिवार दुर्गा पर चोरी करने जैसे आरोप लगाते हैं, लेकिन दुर्गा हार नहीं मानती और मिनी को वहां से अपने साथ ले जाने में कामयाब हो जाती है।
एक नई जगह, नई पहचान के साथ वो जिंदगी को आगे बढ़ाती है। अब दुर्गा का एकमात्र मकसद अपनी बेटी का अमेरिका में इलाज कराना है, ताकि वो ठीक हो जाए। वहीं इसके साथ कई सवाल अधूरे हैं। चूंकि ये थ्रिलर फारमेट की कहानी है, इसलिए इन सवालों के जवाब फिल्म देखने के दौरान, खास तौर पर सेकेंड हाफ में मिलने शुरु हो जाते हैं।
कहानी 2 की कहानी की अगर बात करें, तो इसका सबसे बड़ा प्वाइंट इसका सोशल मुद्दा है, जो इस दौर में बहुत अहम होता जा रहा है। सुजाय ने स्क्रिप्ट में इसे धारदार, असरदार बनाने की पुरजोर कोशिश की है कि कैसे घरेलू शोषण की शिकार हो चुकी 6 साल की बच्ची एक तरह से इसकी आदी हो जाती है और उसे कुछ अजीब सा नहीं लगता।
बच्ची का किरदार इसलिेए ज्यादा मासूम बन जाता है कि उसके मां-बाप नहीं है और वो अपनी दादी और चाचा के साथ रहती है। गुमसुम उदास रहने वाली बच्ची को सिर्फ इतना पता है कि चाचू उसे रात को सोने नहीं देते, जिसकी वजह से वो गणित की क्लास में सो जाती है और टीचर उससे गुस्सा रहती है।
दुर्गा सिंह के साथ उस बच्ची की कैमिस्ट्री धीरे धीरे जमती है, लेकिन परदे को जकड़ने में कामयाब हो जाती है। कहानी की तरह कहानी 2 में भी विद्या बालन ही एक तरह से हीरो हैं। उनके किरदार में कई सारे शेड्स हैं, जिनको उन्होंने बखूबी अंजाम दिया है।
उन्होंने एक सिंगल मदर के किरदार से लेकर एक औरत के तमाम रंगों को इसमें समाहित किया है। अदाकारी के लिहाज से विद्या ने एक बार फिर अपना लोहा मनवाया है। अर्जुन रामपाल ने भी कम कोशिश नहीं की, लेकिन उनकी अपनी लिमिट है, जिसके आगे वे कुछ नहीं कर पाते। उनके नाम थोड़ा सा एक्शन भी है।
इंस्पेक्ट होने के नाते वे एक पति और बेटी के पिता भी हैं। उनके लिए यही बहुत है कि वे सहज रहे और ओवर होने से बचे रहे। मिनी के किरदार में नाईशा सिंह मनमोह लेती हैं। छह साल की बेटी के किरदार में उनकी मासूमियत दर्शकों के साथ सीधा रिश्ता जोड़ लेती हैं।
मिनी की दादी के किरदार में अंबा सान्याल प्रभावशाली हैं, तो चाचा के किरदार में जुगल हंसराज सालों बाद परदे पर लौटे हैं, लेकिन एक्टिंग के मामले में बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर पाते। सुजाय घोष के लिए कई सालों पहले विद्या बालन को लेकर कहानी बनाना एक प्रयोग था, जो सफल रहा।
कहानी से कहानी 2 की तुलना करें, तो सुजाय का निर्देशन इस बार कमजोर रहा। वे सस्पेंस-थ्रिलर को बहुत संतुलित नहीं रख पाए। जल्दी ही अलग-अलग ट्रैक खोल देना उनको भारी पड़ा। पहले ही हाफ में कहानी का धीमा हो जाना भी अखरता है, तो दूसरे हाफ में जब कहानी की परते खुलती हैं, तो कमजोरियां साफ तौर पर नजर आने लगती हैं।
इसके मुकाबले पहली वाली कहानी में वे निर्देशक के तौर पर ज्यादा बेहतर थे। पहली कहानी में कोलकाता की खूबसूरती सबसे बड़ी खूबी थी, इस बार कोलकाता के अलावा बंगाल के कई और हिस्से हैं, लेकिन खूबसूरती कहीं नहीं है। थ्रिलर फिल्मों में सिनेमाटोग्राफी और बैकग्राउंड म्यूजिक सबसे अहम होता है।
इन दोनों मामलों में फिल्म बेहतर है। फिल्म की एडीटिंग कमजोर है। एक्शन साधारण है। गीत-संगीत भी साधारण ही है। इस फिल्म का बजट लगभग 10 करोड़ है। इस लिहाज से फिल्म को बहुत ज्यादा चुनौती नहीं होनी चाहिए, लेकिन नोटबंदी को नहीं भूला जा सकता।
नोटबंदी का असर इस फिल्म के रास्ते की रुकावट जरुर बन सकता है। कहानी 2 में पहली वाली कहानी जैसा दम-खम नहीं है। ये तुलना दर्शकों को निराश करेगी, लेकिन थ्रिलर-एक्शन और विद्या की अदायगी फिल्म को बचा सकती है। एक बार देखने लायक है।