मुख्य कलाकार– रणबीर सिंह, वाणी कपूर बैनर- यशराज फिल्म्स निर्माता– आदित्य चोपड़ा निर्देशक- आदित्य चोपड़ा कहानी– आदित्य चोपड़ा पटकथा- आदित्य चोपड़ा संवाद– शरत कटारिया, आदित्य चोपड़ा कैमरामैन– कनामे ओनोयामा एडीटर-नम्रता राव डांस-डायरेक्टर वैभवी मर्चेंट, गीतकार– जावेद अख्तर, जयदीप सेन संगीतकार– विशाल-शेखर आदित्य चोपड़ा आठ साल के बाद निर्देशन में लौटे हैं।
फिल्म का कटेंट पूरी तरह से उस नौजवान पीढ़ी को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है, जो प्यार के नाम पर किसी हद में विश्वास नहीं रखते। फिल्म की कहानी को पेरिस में रखा गया है, जहां प्यार के नाम पर ज्यादा खुलापन होता है और बेफिक्रे में इस खुलेपन का खूब इस्तेमाल किया गया है।
दिल्ली का रहने वाला धरम (रणबीर सिंह) एडवेंचर का शौकीन है और यही शौक उसे पेरिस पंहुचा देता है। वहां धरम की मुलाकात शोख हसीना शाय़रा गिल (वाणी कपूर) से होती है।
पहले दोनों की सतही मुलाकातें होती हैं, जो बाद में दोस्ती में बदल जाती हैं और देखते ही देखते दोनों प्यार की अठखेलियों में लग जाते हैं। पहले दोनों चाहते हैं कि उनका रिश्ता दोस्ती तक रहे और प्यार में न बदले, लेकिन ऐसा होता नहीं।
आगे की कहानी उनके बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव पर फोकस करती है। आदित्य चोपड़ा ने खुद इसकी कहानी लिखी है। पटकथा भी उनकी ही लिखी हुई है और इन दोनों मामलों में वे कमजोर साबित हुए हैं।
कहानी को मजबूत करने से ज्यादा इस बार आदित्य का फोकस सिर्फ इस बात पर रहा कि कैसे फिल्म को हॉट बनाया जाए, इसके लिए अंतरंग पलों से भर दिया गया है। इसकी कमजोरी ये है कि कहानी कहीं से भी लोगों के साथ कनेक्ट नहीं होती।
युवा दर्शकों का ध्यान भी सिर्फ फिल्म की जोड़ी के रोमांस और उनके हाट सीनों पर ही रहेगा। आदित्य ने इनसे हटकर कुछ और करने की जरुरत ही नहीं समझी। कहा जा सकता है कि कहानी और पटकथा के मामले में इस बार आदित्य ने ज्यादा निराश किया है।
फिल्म के संवादों में अंग्रेजी ज्यादा हावी है और जो हिंदी में संवाद हैं, उनमें भी ज्यादा असरदार नहीं रहे हैं। लेखन के मामले में फिल्म कमजोर है। जिस फॉरमेट में बेफिक्रे बनाई गई है, उसमें परफारमेंस के नाम पर एक्टिंग का ज्यादा मौका नहीं होता।
इसके लिए न तो रणबीर ने कोशिश की और न वाणी ने। न ही दोनों को कुछ करने का मौका दिया। दोनों को प्यार और रोमांस के अलावा ज्यादा कुछ करने की जरुरत ही नहीं रही।
2008 में आदित्य की रब ने बना दी जोड़ी में प्यार की परंपराओं के हर रंग को खूबसूरती से संजोया गया था, लेकिन उनकी इन पिछली फिल्मों से बेफिक्रे की तुलना की जाए, तो बेफिक्रे में ऐसा कुछ नहीं है।
निर्देशक के तौर पर आदित्य ने इस बार संवेदनाओं से ज्यादा प्यार के आधुनिक रुप को ही सामने रखा, जिसकी वजह से फिल्म का स्तर नीचे गया। आदित्य के निर्देशन की इससे बड़ी कमजोरी और क्या होगी कि ये फिल्म परिवार के साथ देखने लायक नहीं है।
आदित्य चोपड़ा की अब तक की फिल्मों में संगीत-गीतों का अहम योगदान रहा। बेफिक्रे में विशाल-शेखर की जोड़ी ने संगीत दिया है। जावेद अख्तर और जयदीप सेन ने गीत लिखे हैं। फिल्म में 5 गाने हैं। इन गानों पर पंजाबी धुनें हावी रही हैं।
सभी गानों में भावुकता से ज्यादा मौज-मस्ती का ख्याल रखा गया है। यहां भी आदित्य की पिछली फिल्मों को देखा जाए, तो मामला कमजोर रहा है। पांचों गानों में नशे सी चढ़ गई… और लबों का कारोबार…बाकी गीतों से बेहतर हैं।
गानों का फिल्मांकन मस्ती भरे अंदाज में किया गया है। तकनीकी पहलू- फिल्म की सिनेमाटोग्राफी अच्छी रही, पेरिस और आसपास की तमाम लोकेशनों की खूबसूरती का एहसास होता है। एक्शन की जरुरत न के बराबर रही।
एडीटिंग सामान्य कही जा सकती है। दूसरे हाफ में एडीटिंग में सुधार का ज्यादा मौका रहा है। फिल्म की सबसे बड़ी खूबी- रणबीर सिंह का बिंदासपन, वाणी का ग्लैमर फिल्म की कमजोरी- कमजोर लेखन और कमजोर निर्देशन बॉक्स ऑफिस- इस फिल्म का बजट लगभग 70 करोड़ के आसपास बताया गया है।
फिल्म महानगरों के मल्टीप्लेक्स में आने वाले युवा दर्शकों को लिए ही डिजाइन की गई है, तो बिजनेस भी वहीं तक रहेगा। इस वक्त नोटबंदी की गंभीर समस्या है। ऐसे में देखना होगा कि इस फिल्म को एंज्वाय करने के लिए युवा दर्शक मल्टीप्लेक्स तक आएगा या नहीं। बाक्स आफिस पर इसके औसत कारोबार करने की उम्मीद है।
मतलब कि अपनी लागत वसूल कर ले, तो यही फिल्म की कामयाबी होगी। ये युवा दर्शकों के लिए बनी हुई फिल्म है। उस वर्ग को पसंद भी आ सकती है, लेकिन आदित्य चोपड़ा ने अब तक जिस तरह की फिल्में बनाई हैं, उनको ध्यान में रखकर जो इसे देखने जाएगा, वो बेफिक्रे को लेकर बेचैन हो जाएगा।