नई दिल्ली। देशवासियों के दिलो-दिमाग पर उस मंजर की याद आज भी तरोताजा हो जाती है, जब 15 वर्ष पूर्व संसद पर हुए आतंकी हमले में 5 पुलिसकर्मी, संसद का एक सुरक्षा गार्ड और एक माली शहीद हो गए थे तथा 22 अन्य घायल हुए थे।
13 दिसम्बर 2001 को हुए इस आतंकी हमले को लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के पांच सशस्त्र आतंकवादियों ने अंजाम दिया था और लगभग एक घंटे तक चली गोलीबारी को देशवासियों ने टीवी चैनलों पर लाइव देखा था।
रोंगटे खड़े करने वाली इस घटना के समय संसद की कार्यवाही 40 मिनट पूर्व स्थगित हो गई थी तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी घर लौट चुके थे पर तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकांत, तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और तत्कालीन रक्षा राज्य मंत्री हरिन पाठक सहित लगभग 100 सांसद संसद भवन में ही मौजूद थे।
गृह मंत्रालय और संसद की पार्किंग का स्टीकर लगाए कार में बैठकर संसद परिसर में आए ये आतंकवादी हड़बड़ी में रास्ता भटक गए। उनकी कार तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकांत के मोटर काफिले से टकरा गई जिसने वहां तैनात महाराणा सुरक्षा कर्मियों का ध्यान खींचा।
पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं से निर्देश ले रहे इन पांचों आतंकियों को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा था और वे एके 47 राइफल, पिस्तौलों, हथगोलों और ग्रेनेड से लैस होकर हमला करने आए थे।
उन्होंने गोलीबारी शुरू कर दी तो उपराष्ट्रपति के सुरक्षा गार्डों और संसद भवन के सुरक्षाकर्मियों ने भी जवाब में गोलियां चलाईं। अन्य सुरक्षा गार्डों ने से अफरा-तफरी के उस माहौल में लोगों के अंदर करते हुए संसद भवन के दरवाजे बंद कर दिए।
पत्रकार और टीवी चैनलों के फोटोग्राफर भी भागकर छिप गए। पर उनके कैमरे चालू रहे। आतंकवादियों को सबसे पहले देखने वाली कांस्टेबल कमलेश कुमारी शोर मचाकर लोगों को जब सचेत करने लगी तो हमलावरों ने उसे गोली मार दी जिससे उसकी घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई।
हमारे बहादुर जवानों ने पांचों आतंकवादियों को मार गिराया तथा किसी भी मंत्री या सांसद को खरोंच तक नहीं आई। इस हमले में कुल 14 लोगों की मृत्यु हुई तथा 22 लोग घायल हुए, जिनमें हमलावर भी शामिल थे।
दिल्ली पुलिस के अनुसार हमजा, हैदर ऊर्फ तुफैल, राणा, रणविजय और मोहम्मद नामक पांच आतंकवादी हमला करने आए थे जो सुरक्षा जवानों द्वारा मौत के घाट उतार दिए गए। इस आतंकी हमले के पीछे सीमा पार पाकिस्तान में बैठे मौलाना मसूद अजहर, गाजी बाबा ऊर्फ अबू जिहादी और तारिक अहमद थे।
संसद पर हमले के पीछे स्थानीय स्तर पर लोगों के शामिल होने की संभावना को देखते हुए गहन जांच पड़ताल की गई तथा मोहम्मद अफजल गुरु उसके भाई शौकत हुसैन गुरु सैयद अब्दुल रहमान गिलानी और शौकत की पत्नी अफसान गुरु पर मुकदमा चलाया गया।
न्यायाधीश एसएन ढींगरा की विशेष अदालत ने अभियुक्तों के मुकदमों की सुनवाई लगभग 6 महीने में पूरी की। 90 गवाहियां हुई तथा 300 दस्तावेज रखे गए। अफजल गुरु, शौकत हुसैन और गिलानी को मौत की सजा सुनाई गई जबकि अफसान को केवल एक मामले में 5 वर्ष का कठोर कारावास और जुर्माने की सजा दी गई।
तीनों को अन्य मामलों में आजीवन कारावास और दंड भी दिया गया। अफजल और शौकत के पास से बरामद दस लाख रुपये भी जब्त कर लिए गए। बाद में उच्च न्यायालय ने गिलानी और अवसान को बरी कर दिया पर शौकत अफजल की मौत की सजा बरकरार रखी।
बाद में शौकत को भी उसकी रिहाई की तिथि से 9 महीने पूर्व अच्छे आचरण की वजह से रिहा कर दिया गया। सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने श्रीनगर के नूर बाग में गाजी बाबा को एक मुठभेड़ में मार गिराया। कई अन्य संदिग्धों को भी गिरफ्तार किया गया।
अफजल गुरु के परिवारजन में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के समक्ष दया याचिका प्रस्तुत की पर शहीद राशिफल कमलेश के परिवारजन ने उसका कड़ा विरोध करते हुए पदक तक लौटा दिए। बाद में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उसकी दया याचिका खारिज कर दी तथा 9 फरवरी 2013 की सुबह 8:00 बजे तिहार जेल में अफजल गुरु को फांसी दे दी गई।
उसे जेल में ही पूरे धार्मिक रीति रिवाज के अनुसार दफना दिया गया। भारत ने पाकिस्तान से इस हमले को लेकर कड़ा विरोध व्यक्त किया। अनेक देशों ने इस हमले की निंदा की थी।
संसद भवन परिसर में सुरक्षा बलों के शहीद जवानों की स्मृति में घटनास्थल पर हर वर्ष कार्यक्रम आयोजित कर श्रद्धांजलि दी जाती है। उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व सांसद पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हे याद करते हैं। संसद के दोनों सदनों में भी इन बहादुर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है।