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allahabad high court judgement 2016
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अपराध से बरी होने के बावजूद पुलिस फोर्स में नौकरी मिले जरूरी नहीं : हाईकोर्ट

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अपराध से बरी होने के बावजूद पुलिस फोर्स में नौकरी मिले जरूरी नहीं : हाईकोर्ट

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इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया है कि भले ही कोई अभ्यर्थी आपराधिक मामले में कोर्ट से बरी हो गया हो फिर भी नियुक्ति प्राधिकारी उसके आपराधिक इतिहास व आचरण पर विचार कर उसके नियुक्ति को लेकर निर्णय ले सकता है।

कोर्ट ने हत्या के प्रयास के अपराध में न्यायालय से बरी दरोगा भर्ती में चयनित अभ्यर्थी को प्रशिक्षण पर भेजने के एकल जज के आदेश को रद्द कर दिया।

सरकार की विशेष अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के दो जजों की खण्डपीठ ने आदेश दिया कि पुलिस भर्ती बोर्ड जिलाधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर नये सिरे से याची को प्रशिक्षण पर भेजने को लेकर निर्णय ले।

यह आदेश न्यायाधीश वी.के.शुक्ला तथा न्यायाधीश एम.सी.त्रिपाठी की खण्डपीठ ने राज्य सरकार की विशेष अपील को स्वीकार करते हुए दिया है।

अपील में एकल जज के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसके द्वारा 2011 दरोगा की दरोगा भर्ती में चयनित औरंगाबाद बुलंदशहर के विनय कुमार को प्रशिक्षण पर भेजने का अन्तरिम आदेश देते हुए जवाब मांगा गया था।

याची हत्या के प्रयास के केस में गवाहों के पक्षद्रोही होने के कारण कोर्ट से बरी हो गया है। इस कारण एकल जज ने याची की याचिका पर उसे दरोगा भर्ती में चयनित होने के बाद प्रशिक्षण पर भेजने का आदेश दिया था।

विशेष अपील पर बहस करते हुए स्थायी अधिवक्ता रामानंद पाण्डेय का तर्क था कि एकल पीठ ने याची को प्रशिक्षण में भेजने का निर्देश जारी कर 2011 की दरोगा भर्ती नियमावली के प्राविधानों का उल्लंघन किया है।

बहस थी कि इस नियमावली के तहत जिलाधिकारी द्वारा अभ्यर्थी के चरित्र. सत्यापन रिपोर्ट पर विचार कर करने के बाद ही नियुक्ति प्राधिकारी उसे प्रशिक्षण पर भेजने का निर्णय लेता है।

कहा गया था कि एकल जज ने इस नियमावली को दरकिनार कर सीधे प्रशिक्षण पर भेजने का आदेश जारी कर विधिक भूल की है।

याची के अधिवक्ता अजय भनोट का तर्क था कि याची के पक्ष में पारित एकल जज का आदेश अन्तरिम प्रकृति का है इस कारण सरकार की याचिका इस आदेश के खिलाफ पोषणीय नहीं है।

न्यायालय ने एकल जज के आदेश को रद्द कर निर्देश दिया है कि नियुक्ति प्राधिकारी चरित्र सत्यापन रिपोर्ट पर विचार कर नये सिरे से आदेश पारित करे।