सबगुरु न्यूज-वृंदावन। सुनने में अजब लग रहा होगा। लेकिन यह सच है कि वृंदावन की कुंज गलियां कभी भगवान श्री कृष्ण की माखन चोरी की घटनाएं मशहूर हुआ करती थी, वहीं कुंज गलियां पिछले एक दशक से आंखों पर चश्मा लगाकर जाने वालों की आंखों से चश्मे गायब होने के लिए भी मशहूर हो गई हैं। बांकेबिहारी के दर्शन की लालसा के लिए आने वाले दर्शनार्थियों की आंखों पर लगे चश्मे इतनी फुर्ति से गायब होते हैं कि लोग समझ भी नहीं पाते और उनकी आंखों के आगे के नजारे धुंधला जाते हैं।
चश्मा ले जाने वाले कोई सोना चांदी नहीं बस एक फ्रूटी का पाउच लेकर चश्मा लौटा भी देते हैं। यह काम करते है वहां की संकडी गलियों में चलती भीड पर किसी छत, खम्भे या मुंडेर से नजर गढाकर बैठे लाल मुंह वाले बंदर।
-रिश्वत में देनी होती है फ्रूटी
वृंदावन में यू तो हर कहीं यह हरकतें बंदर करते हैं, लेकिन बांकेबिहारी मंदिर जाने वाले मार्ग पर तो बंदरों की यह बदमाशी कुछ ज्यादा ही परवान पर होती है। इसी कारण इस मार्ग पर जाते ही बाहर से आने वाले दर्शनार्थियों को स्थानीय दुकानदार या लोग आगाह कर देते हैं कि चश्मा उतार देवें।
यदि नजर वाकई इतनी कमजोर है कि चश्मा उतारा नहीं जा सकता तो फिर बंदरों के हाथों में इस चश्मे का पहुंचना निष्चित है। चश्मा लेकर बंदर आसपास की किसी मुंडेर या खम्भे पर चढ जाते हैं, फिर पास की किसी दुकान से फ्रूटी का पाउच खरीदकर उनकी ओर उछालने पर वह चश्मे को छोडकर फ्रटी को पकडते हैं। फ्रूटी मिलने में जितनी देरी होगी चश्मे के टूटने की उतनी ज्यादा संभावना होगी।
-ऐसा भी होता है
आंखों से चश्मा छीनकर किसी खम्भे, छत या बालकनी पर अकेले जाकर बैठा तब तो एक ही फ्रूटी से काम चल जाता है, लेकिन बदकिस्मती से उसके पास चार-पांच बंदर है तो बंदर की ओर फ्रूटी उछालने पर वह बडी ही शातीराई से चष्मा पास बैठे बंदर को थमाकर फ्रूटी को झपट लेता है।
अब चश्मा लेने के लिए दूसरे बंदर के लिए भी फ्रूटी की व्यवस्था करनी जरूरी होती है। जितने बंदर पास होते हैं चश्मा उतने ही हाथों में जाता है और जब तक सबके लिए फ्रूटी की व्यवस्था नहीं हो जाती चश्मा उसके मालिक तक नहीं पहुंचता।
-डंडा लेकर चलते हैं स्थानीय लोग
बंकेबिहारी मंदरि के मार्ग पर स्थित दुकानदारों ने बताया कि पिछले एक दषक से तो वह यह हरकतें देख रहे हैं। अब चूंकि ऐनक और गोगल्स लगाने वालों की संख्या बढ गई है तो बंदरों की भी चांदी हो गई है।
उन्होंने बताया कि स्थानीय लोग इनकी हरकत से वाकिफ हैं, ऐसे में हाथ में डंडा लेकर चलते हैं। वैसे चश्मा के अलावा कोई अन्य चीज भी इन्हें मिल जाए तो यह उसे उठाने में कोई गुरेज नहीं करते, लेकिन बाकी चीजें दर्शनार्थियों के हाथों में पकडी हुई होती हैं, ऐसे में उसे छीनने से खींचतान होने से छीनैती में विफल होने की पूरी संभावना रहती है, ऐसे में चश्मा सबसे आसान वस्तु होती है, छीनने के लिए।