नई दिल्ली। घरेलू वाहन उद्योग 2016 के उतार-चढ़ाव भरे सफर के बाद नए नियमन से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद आने वाले साल की तरफ नई उम्मीदों के साथ देख रहा है। साल 2016 की शुरूआत उद्योग के लिये अच्छी रही और फरवरी में दो साल पर होने वाली वाहन प्रदर्शनी में 108 नये उत्पाद पेश किये गये। लेकिन वृद्धि के लिहाज से लगातार तीसरा साल बेहतर रहने की उसकी इच्छा पूरी नहीं हो पायी।
कुल मिलाकर उद्योग के लिये 2016 की शुरआत तो अच्छी रही लेकिन बाद के महीनों में उसके सामने बड़े-बड़े ‘स्पीड ब्रेकर’ आते रहे। प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में वाहन उद्योग ही मुख्य निशाना बनता रहा। कभी ‘सम-विषम’ का नियम बना तो कभी डीजल वाहनों को निशाना बनाया गया।
इस कड़ी में उद्योग को दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 2,000 सीसी और उससे अधिक क्षमता की कारों तथा एसयूवी पर आठ महीने के लिये प्रतिबंध झेलना पड़ा और सियाम के अनुसार इससे उद्योग को 4,000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। इसके अलावा उद्योग को निर्धारित समय से तीन साल पहले ही मौजूदा बीएस 4 से बीएस 6 उत्सर्जन मानकों को 2020 से अपनाना होगा। यह काम तय समय से तीन साल पहले करना होगा।
इतना ही नहीं, अक्तूबर 2017 से सभी नई कारों के मॉडलों को अनिवार्य रूप से टक्कर परीक्षण से गुजरना होगा क्योंकि सरकार ने कड़े सुरक्षा नियमों को पेश करने का फैसला किया है। मौजूदा मॉडलों को उन्नत बनाने के लिये समयसीमा अक्तूबर 2018 है।
सोसाइटी ऑफ इंडियन आटोमोबाइल मैनुफैक्चर्स के अध्यक्ष विनोद के दसारी ने कहा, ‘नियामकीय मोर्चे तथा जीएसटी के क्रियान्वयन के साथ 2017 में काफी कुछ होने की संभावना है। पूरे साल नीतिगत स्तर पर कई गतिविधियों की उम्मीद है, ऐसे में वाहन उद्योग को निश्चित रूप से चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। कुल मिलाकर दिलचस्प वर्ष रहेगा।’
विनोद के दसारी ने 2017 के परिदृश्य के बारे में कुछ भी कहने से मना करते हुए कहा, ‘संभावना जताने के लिये मौजूदा स्थिति थोड़ी मुश्किल है।’ दसारी ने कहा, ‘..नोटबंदी के कारण अर्थव्यवस्था फिलहाल मांग में कमी से अस्थायी रूप से प्रभावित है। स्थिति मार्च 2017 तक बने रहने की संभावना है। उसके बाद अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट सकती है।’ वर्ष 2016 में वाहन उद्योग का बिक्री के मोर्चे पर प्रदर्शन अच्छा रहा लेकिन नवंबर में नोटबंदी की घोषणा के बाद इस पर तगड़ा ब्रेक लग गया।
पिछले महीने आठ नवंबर को 500 और 1,000 रपये के नोटों पर पाबंदी के मद्देनजर वाहनों की बिक्री प्रभावित हुई और कंपनियों के शोरूम खाली नजर आयें। दसारी ने कहा, ‘नवंबर 2016 में सीधे कंपनी स्तर पर होने वाली थोक बिक्री में 5.5 प्रतिशत की गिरावट आयी। खुदरा बिक्री की स्थिति और भी खराब रही। शोरूम में आने वाले लोगों की संख्या में उल्लेखनीय रूप से कमी आयी।’ उन्होंने कहा कि नोटबंदी के कारण पूरी अर्थव्यवस्था और वाहन उद्योग के लिये नवंबर 2016 कठिन माह रहा।
उन्होंने इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि जनवरी से नवंबर में घरेलू बिक्री में 11.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि जनवरी-अक्तूबर 2016 के दौरान उद्योग की वृद्धि पिछले वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले 13.1 प्रतिशत रही। हालांकि, दसारी ने कहा, ‘बेहतर मानसून तथा तीन साल बाद ग्रामीण बाजार के पटरी पर आने की संभावना की पृष्ठभूमि में स्थिति को देखा जाना चाहिए। वित्त मंत्री द्वारा केंद्रीय बजट में यात्री वाहनों पर बुनियादी ढांचा उपकर के बावजूद उम्मीद बनी रही।’
उन्होंने वर्ष 2016 को घटना प्रधान बताया। इस साल सरकार ने पुराने वाहनों को सडकों से हटाने और उन्हें तोड़ने की नीति पर विचार-विमर्श को आगे बढ़ाया। वहीं दिल्ली सरकार ने दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 15 साल पुराने वाहनों को हटाने का आदेश दिया।