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Allahabad High Court reserves verdict on Badrikashram Jyotishpeeth shankaracharya case
Home UP Allahabad ज्योतिष्पीठ-बद्रिकाश्रम का शंकराचार्य कौन? इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला सुरक्षित

ज्योतिष्पीठ-बद्रिकाश्रम का शंकराचार्य कौन? इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला सुरक्षित

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ज्योतिष्पीठ-बद्रिकाश्रम का शंकराचार्य कौन? इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला सुरक्षित
Allahabad High Court reserves verdict on Badrikashram Jyotishpeeth shankaracharya case
Allahabad High Court reserves verdict on Badrikashram Jyotishpeeth shankaracharya case
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इलाहाबाद। ज्योतिष्पीठ बद्रिकाश्रम का वैध शंकराचार्य कौन होगा, इस मुद्दे पर मंगलवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने महीनों की लम्बी बहस के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया।

इस बीच कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों से कहा कि वे चाहें तो लिखित में अपनी बातें कह सकते हैं। न्यायाधीश सुधीर अग्रवाल व न्यायाधीश के.जे.ठाकर की खण्डपीठ ने स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की अपील पर निर्णय सुरक्षित किया है।

स्वामी वासुदेवानंद ने अपील दायर कर लोवर कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसके द्वारा उन्हें शंकराचार्य पद के अयोग्य मानते हुए क्षत्र, चंवर, दण्ड, सिंहासन आदि को धारण करने पर भी रोक लगा दी थी।

हाईकोर्ट तथा बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वामी वासुदेवानंद को लोवर कोर्ट के आदेश के खिलाफ अंतरिम राहत देने से मना कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ज्योतिष्पीठ बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य विवाद को तय करने के लिए हाईकोर्ट के दो जजों की खण्डपीठ ने दिन-प्रतिदिन इस केस की सुनवाई की।

अपील पर बहस करते हुए स्वामी वासुदेवानंद के वकील मनीष गोयल की बहस थी कि वासुदेवानंद ही वैध शंकराचार्य हैं। इनकी नियुक्ति मनीषियों द्वारा की गई। यह ब्राहमण है और दण्डी स्वामी है तथा शंकराचार्य पद की सभी योग्यता रखते हैं। इस कारण गुरू शिष्य परम्परा से योग्य शिष्य होने के नाते इन्हें शंकराचार्य द्वारा लिखित पुस्तक मठाम्नाय महानुशासनम के अनुसार वर्णित सभी योग्यताएं वह धारण करते हैं।

जबकि अपील के खिलाफ शंकराचार्य स्वरूपानंद की तरफ से उनके अधिवक्ता शशिनंदन व अनूप त्रिवेदी का तर्क था कि शंकराचार्य द्वारा लिखित पुस्तक महाम्नाय महानुशासनम के अनुसार स्वामी वासुदेवानंद शंकराचार्य पद की योग्यता नहीं रखते।

कहा गया कि इस पुस्तक के अनुसार शंकराचार्य पद के लिए शर्त है कि वही शंकराचार्य पद पर पदास्थापित हो सकता है जो ब्राहमण हो तथा ब्रहमचारी हो। कहा गया कि शंकराचार्य पद पर निरोगी ही हो सकता है। वासुदेवानंद की अयोग्यता को बताते हुए कहा गया कि वह चर्मरोगी हैं। उनकी इस पद पर स्थापना मनीषियों ने कभी नहीं की।

कहा गया कि वासुदेवानंद संन्यासी बनने के बाद टीचर के रूप में काम करते रहे तथा बकायदा वेतन भी आहरित की। इस पर कोर्ट की टिप्पणी थी कि एक संन्यासी टीचर कैसे हो सकता है और अगर ऐसा था तो वह शंकराचार्य कैसे बन सकते थे। इस पर वासुदेवानंद के वकील ने कोई जवाब नहीं दिया।

कोर्ट का यह भी कहना था कि संन्यासी बनने के बाद वह व्यक्ति त्यागी हो जाता है तो वासुदेवानंद का कैसा त्याग था कि वह संन्यासी के बाद भी टीचर बने रहे। बहरहाल कोर्ट ने वकीलों की लंबी बहस सुनने के बाद इस मुद्दे पर फैसला सुरक्षित कर ली है।