लखनऊ। समाजवादी पार्टी में तख्तापलट की लड़ाई का अन्त होने के बाद भी सब कुछ ठीक नहीं दिख रहा है। मुख्यमंत्री एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भले ही ‘काम बोलता है’ जैसी बातें कर रहे हैं, लेकिन यह काम उनके पिता और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को ही नजर नहीं आ रहा है।
शायद यही वजह है कि वह अपनी पार्टी के चुनावी घोषणापत्र जारी होने के मौके पर मौजूद नहीं रहे। सपा प्रदेश मुख्यालय में रविवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय, किरणमय नंदा, नरेश उत्तम, अरविंद सिंह गोप, डिम्पल यादव, अभिषेक मिश्रा, बलवंत सिंह रामूवालिया, अहमद हसन और राम गोविंद चौधरी सहित कई मंत्री, वरिठ नेता, पदाधिकारी और कार्यकर्ता मौजूद थे, इंतजार था तो केवल मुलायम का, उनके लिए कुर्सी भी लगाई गई थी।
उम्मीद लगाई जा रही थी कि जिस पार्टी की नींव मुलायम ने रखी, उसके घोषणा पत्र जारी होने के मौके पर वह पहुंचेंगे। कार्यक्रम के दौरान अखिलेश ने मुलायम से फोन पर आने की गुजारिश भी की। इसके बाद आज़म खां मुलायम के आवास पहुंचे और दोनों के बीच करीब बीस मिनट तक चर्चा हुई।
आज़म ने मुलायम को मनाने की काफी कोशिश भी की, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसके बाद आज़म बैरंग लौट आए। इसके साथ ही पूर्व प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव भी समारोह में नहीं पहुंचे। कार्यक्रम के दौरान अखिलेश ने मुलायम को तो याद किया और कहा कि नेताजी ने उन्हें सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्रदान किया, लेकिन शिवपाल का जिक्र कहीं नहीं हुआ।
घोषणा पत्र के कार्यक्रम के लिए लगे बैक ड्राप तथा पोस्टर व होर्डिंग से भी शिवपाल का नाम और फोटो नदारद रहे। वहीं घोषणा पत्र जारी होने के बाद मुलायम अपने आवास से निकलकर पार्टी दफ्तर पहुंचे। जहां सीएम अखिलेश, डिम्पल यादव, आज़म खां के साथ उन्होंने बैठक की। बताया जा रहा है मुलायम ने घोषणा पत्र पढ़ा। इसके अलावा कांग्रेस से गठबन्धन के मामले पर भी चर्चा की।
पार्टी की ओर से इसे पूरे मुद्दे को बेहद सामान्य बताने की कोशिश भी हुई। हालांकि अगर सब कुछ सुलझ गया होता तो मुलायम घोषणा पत्र जारी करते समय जरूर मौजूद होते। वहीं शिवपाल यादव की भी मौजूदगी होती, लेकिन जिस तरह से मुलायम ने शनिवार को सपा प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार नहीं करने की बात कही और रविवार को वह समारोह में नहीं पहुंचे, उससे एक बार फिर असमंजस की स्थिति है।
मुलायम का रूख लगातार अखिलेश के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है। भले ही वह अब राष्ट्रीय अध्यक्ष हों, लेकिन जनता के बीच मुलायम का नहीं जाना और बड़े आयोजनों से दूरी बनाना पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। कुछ सियासी विश्लेषकों के मुताबिक मुलायम जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं, जिससे वह यह दिखा सकें कि शिवपाल की अनेदखी के साथ अन्य वरिष्ठ नेताओं को टिकट नहीं देने पर वह खफा हैं।
अम्बिका चौधरी के मुद्दे पर वह इस तरह का बयान भी दे चुके हैं। वहीं अन्दरूनी तौर पर वह अखिलेश के हर कदम की जानकारी कर रहे हैं, और चर्चा भी। रविवार को भी इसी तर्ज पर उन्होंने बैठक की। हालांकि अगर ऐसा है भी तो जरूरी नहीं है कि मुलायम का यह दांव सफल ही हो।
खास बात है कि सपा के घोषणा पत्र जारी करने के मौके पर प्रो. रामगोपाल यादव भी मौजूद नहीं रहे। मुलायम रामगोपाल यादव को ही असली विवाद की जड़ मानते हैं। इसलिए माना जा रहा है कि रामगोपाल ने स्वयं इस कार्यक्रम से किनारा किया कि अगर मुलायम आने का मन बना रहे हों, तो उनकी वजह से असहज नहीं हों। हालांकि आखिरकार दोनों नेताओं के बिना ही घोषणा पत्र जारी किया गया।