लखनऊ। राजनीति और जंग में सब जायज होता है। ‘देर आयद-दुरुस्त आयद’ की कहावत को चरितार्थ करते हुए भाजपा ने प्रत्याशियों की दूसरी सूची भी जारी कर दी और इसी के साथ जारी कर दिया अपना राजनीतिक स्टैंड।
बीजेपी ने एक बार फिर मुसलमानों से किनारा किया है। कांग्रेस, सपा, बसपा, रालोद समेत समूचा विपक्ष इस सूची के आधार पर भाजपा का जितना विरोध करेगा और उसे जितना ही मुस्लिम विरोधी ठहराने की कोशिश करेगा, उससे भाजपा को उतनी ही मजबूती होगी। अपनी हिंदूवादी छवि का उसे लाभ तो मिलेगा ही।
मुस्लिम जितने ही संगठित होंगे, हिंदू समाज के सभी तबके के लोग उतने ही उत्साह से भाजपा का साथ देंगे, इस अवधारणा को भी नकारा नहीं जा सकता। इस सूची में मौजूदा विधायकों को तो महत्व मिला ही है, कार्यकर्ताओं को भी उनकी सेवाओं का मूल्य देने में भाजपा ने कोई कोताही नहीं की।
उत्तर प्रदेश की जंग फतह करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने आज 155 उम्मीदवारों की जो दूसरी सूची जारी की है, उसमें चेहरे नहीं, काबिलियत को महत्व दिया गया है। ब्राह्मणों पर भाजपा ने सर्वाधिक विश्वास किया है।
पहली सूची में केवल 12 ब्राह्मण देखकर इस बौद्धिक तबके में जो निराशा झलक रही थी, उसके संकेत भाजपा आलाकमान को मिल गए थे। यही वजह है कि दूसरी सूची में भाजपा ने उसकी क्षतिपूर्ति करने की पूरी कोशिश की है। 25 ब्राह्मणों को टिकट देकर उसने उनका विश्वास जीतने की पुरजोर कोशिश की है।
दूसरी सूची में भाजपा ने 19 राजपूतों पर भी अपना विश्वास जताया है। दूसरे दल से आए नेताओं में भले ही अभी स्वामी प्रसाद मौर्य को टिकट न मिला हो लेकिन उन्हें अपना स्टार प्रचारक घोषित कर और उनके बेटे उत्कर्ष मौर्य को ऊंचाहार से टिकट देकर भाजपा ने यह संकेत जरूर दिया है कि वह उनको किसी भी लिहाज से उपेक्षित नहीं रहने देगी। बांह गहे की लाज जरूर रखेगी।
बसपा से आए ब्रजेश पाठक, कांग्रेस से आई रीता बहुगुणा जोशी और नंद कुमार गुप्ता नंदी को टिकट देकर भाजपा ने साफ कर दिया है कि उसके लिए पार्टी में नया-नया प्रवेश बहुत मायने नहीं रखता। सीट जीतने की योग्यता-दक्षता हो तो क्या नया, क्या पुराना।
अब तक जारी कुल 304 सीटों में भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग साफ झलकी है। अपनी दूसरी सूची में भी भाजपा ने किसी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया है। यह जानते हुए भी कि सपा और बसपा दोनों ही का सर्वाधिक जोर मुस्लिम प्रत्याशियों पर ही है।
कई विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं की बहुतायत भी है। इसके बाद भी हिंदू प्रत्याशियों पर दांव खेलने का जोखिम मोल लेकर भाजपा ने एकबारगी यह स्पष्ट कर दिया है कि वह मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति नहीं करेगी। दूसरी सूची की खासियत यह है कि इसमें कुछ बड़े नेताओं के परिजनों को भी तरजीह दी गई है।
इससे विपक्ष को परिवारवाद पर उसकी धार को कुंद करने का कुछ हद तक मौका भी मिलेगा लेकिन सबको साथ लेकर चलने की अपनी चुनौतियां तो होती है। भाजपा इसका अपवाद नहीं हो सकती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत दिनों अपील की थी कि भाजपा नेता अपने पुत्रों और रिश्तेदारों के लिए टिकट न मांगें लेकिन उनकी अपील के बाद भी नेताओं पर कोई खास असर पड़ता नजर नहीं आया।
केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह को नोएडा से टिकट देने के लिए मौजूदा विधायक विमला बाथम का टिकट काट दिया गया। उन्हें टिकट मिलना तो तय था कि वे चुनाव तो लड़ेंगे लेकिन कहां से लड़ेंगे, नोएडा से या साहिबाबाद से। राजनाथ सिंह अपने बेटे को नोएडा से ही लड़ाने के पक्ष में थे।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह को भाजपा पहले ही टिकट देकर उपकृत कर चुकी थी लेकिन दूसरी सूची में कल्याण सिंह की बहू को भी उसने टिकट से नवाज दिया है। केंद्रीय मंत्री हुकुम सिंह भी अपनी बेटी मृगांका सिंह को कैराना से टिकट दिलाने में सफल रहे।
मुरादाबाद से भाजपा सांसद सर्वेश सिंह के बेटे सुशांत सिंह को बढ़ापुर सीट से प्रत्याशी बनाया गया है। स्वामी प्रसाद मौर्य को अभी तक टिकट न मिलने से उनके समर्थक निराश हो सकते हैं लेकिन अगले चरण की घोषणा में उनके नाम को शामिल किए जाने की संभावना तो है ही।
भाजपा ने प्रत्याशियों के चयन में हिंदू जनमानस के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व दिया है। दो यादवों को दूसरी सूची में स्थान देकर भाजपा ने समन्वय बनाए रखने की कोशिश की है। सपा और कांग्रेस के बीच हुए चुनावी गठबंधन के बाद भाजपा ने जिस दमदारी के साथ अपने प्रत्याशी उतारे हैं और एक बार फिर दलितों और अति पिछड़ों को उसने तरजीह दी है, उसे बहुत हल्के में नहीं लिया जा सकता।
कैराना से हुकुम सिंह की बेटी को बतौर प्रत्याशी उतारकर भाजपा ने उसने प्रखर हिंदुत्व को हवा दे दी है। अमेठी से महारानी गरिमा सिंह को टिकट देकर उन्होंने कांग्रेस-सपा गठबंधन और बसपा की राह कंटकाकीर्ण कर दी है। गोंडा में ब्रजभूषण सिंह के बेटे प्रतीक भूषण पर दांव खेलकर भाजपा ने कदाचित पहले दिन से ही अपनी जीत सुनिश्चित कर ली है।
कुंडा, सिराथू, चायल, फाफामऊ, फूलपुर, इलाहाबाद में प्रत्याशियों का दमदार चयन उसे पहले ही दिन से मजबूती दे रहा है। ब्राह्मण बहुल भगवंतनगर सीट से हृदयनारायण दीक्षित का चयन भी एक सकारात्मक कदम है। लखनऊ की सभी सीटों पर उसके एक भी प्रत्याशी काटने-बराने लायक नहीं है।
चुनाव वैसे अनिश्चितता का खेल है लेकिन जिस सधे अंदाज में भाजपा ने अपने महारथी उतारे हैं, उससे उसके विजयरथ के स्तंभित होने का खतरा तो नजर नहीं आता।