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goa assembly election 2017 : Opinion
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गोवा विधानसभा चुनाव : रक्षामंत्री पर्रिकर की प्रतिष्ठा दांव पर

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गोवा विधानसभा चुनाव : रक्षामंत्री पर्रिकर की प्रतिष्ठा दांव पर

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मुंबई। गोवामुक्ति आंदोलन के बाद आजाद हुए गोवा के राजनीतिक इतिहास में इस बार गोवा में हो रहा विधानसभा चुनाव अपने आप में महत्वपूर्ण हो गया है। इस चुनाव के अनेक पहलू हैं।

मात्र दो सांसद व 40 विधायक चुनकर देने वाला राज्य और केवल दो जिला क्षेत्रफल वाले गोवा का विधानसभा चुनाव पर समूचे देश की निगाहें लगी हुई हैं। वह भी उत्तरप्रदेश व पंजाब जैसे राज्यों में चुनाव होने के बावजूद।

गोवा विधानसभा का चुनाव महत्वपूर्ण होने के पीछे कई कारण हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से पूर्व गोवा विभागप्रमुख सुभाष वेलिंगकर की कथित बगावत भी कारणों में है। इस बगावत के लिए कारण बना भारतीय भाषा सुरक्षा मंच का स्वदेशी भाषा में शिक्षण के लिए आंदोलन, उससे संघ परिवार में अलगाव का बना वातावरण।

गोवा भारतीय जनता पार्टी के मुख्य चेहरा बन चुके मनोहर पर्रिकर, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री बनाया है। रक्षामंत्री पद पर होने के बाद गोवा की राजनीति में बदलाव आया है और इससे गोवा का चुनाव महत्वपूर्ण बन गया है।

इसके साथ ही सुभाष वेलिंगकर का भारतीय भाषा सुरक्षा मंच की गोवा सुरक्षा पक्ष स्थापित कर चुनाव में उतरना, महाराष्ट्र की शिवसेना का गोवा की राजनीति में उतरना, भाजपा का सहयोगी पक्ष महाराष्टवादी्र गोमंतकपक्ष का भाजपा से अलग होकर लडऩा जैसे कार्य से चुनाव आकर्षक सा बन गया है।

यहां गोवा सुरक्षा मंच, शिवसेना तथा मगोप तीनों दल भाजपा के विरुद्ध आघाड़ी कर चुनाव लड़ रहे हैं। इतना ही नहीं अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी यहां चुनाव में सहभागी है , जिससे यहां जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, इसकी रोमांचकता बढ़ती जा रही है।

गोवा विधानसभा के वर्ष 2012 में हुए चुनाव में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला था। गोवा की कुल 40 सीटों में से भाजपा को 21 सीटें मिली थी और कांग्रेस को 9 सीटें मिली थी। भाजपा के साथ चुनावी गठबंधन करने के बाद मगोप को मात्र 3 सीटें मिल सकी थी।

इसी तरह गोवा विकास पार्टी को 2 सीटें व 5 निर्दलीय चुनाव जीतने में सफल रहे थे। उस समय केंद्र में आसीन यूपीए सरकार विरोधी मतदान का असर गोवा में भाजपा की सफलता के पीछे बताया जा रहा था। इसी तरह 2014 में मोदी लहर में लोकसभा की दोनों सीटों पर भाजपा का कब्जा हो गया था।

गोवा में भाजपा को मिली इस सफलता का श्रेय मनोहर पर्रिकर को ही जाता है। गोवा में 1980 के भाजपा ने संघ के सहयोग से कार्यकर्ताओं की फौज तैयार की है। उन्हीं में से मनोहर पर्रिकर का नेतृत्व भी सामने आया है। पिछले दो दशकों से गोवा में भाजपा को हर स्तर पर बढ़ाने वाले पर्रिकर 2000 में पहली बार मुख्यमंत्री बने।

इससे पहले गोवा की अस्थिर राजनीति को स्थिरता देते हुए पर्रिकर ने अपनी अलग पहचान बनाई। हालांकि इसके बाद 2005 से लेकर 2012 तक गोवा में कांग्रेस की ही सरकार थी। इसके बाद 2012 में गोवा में हुए विधानसभा चुनाव में पर्रिकर ही भाजपा का चेहरा बनकर उभरे और उनके नेतृत्व में भाजपा की ओर से लड़े गए चुनाव में 28 में से 21 सीटों पर पार्टी को सफलता मिली।

इस चुनाव में भले ही भाजपा को 34.68 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन लड़ी गई सीटों के हिसाब से यह 50.17 फीसदी थी। उस समय सत्ताधारी कांग्रेस पक्ष की ओर से लड़ी गई 33 सीटों में से मात्र 9 सीटों पर उसकी जीत हुई थी। कांग्रेस को 30.78 फीसदी वोट मिल सके थे, जबकि लड़ी गई सीटों के हिसाब से भाजपा का मतप्रतिशत सिर्फ 37 फीसदी तक ही पहुंच सका था।

उस समय भाजपा को क्रिस्चियन समाज का वोट मिलना भाजपा की सफलता का प्रमुख कारण माना जा रहा था। गोवा की जनसंख्या का अगर विश्लेषण किया जाए तो कुल जनसंख्या में क्रिस्चियन समाज की जनसंख्या 30 फीसदी के आसपास है। मतदाताओं के हिसाब से यह संख्या 29 फीसदी के करीब है।

उत्तर गोवा में क्रिस्चियन मतदाता 19 फीसदी, दक्षिण गोवा में 37 फीसदी तो उर्वरित गोवा में क्रिस्चियन मतदाता 9 फीसदी हैं। इसी तरह 9 विधानसभा में क्रिस्चियन मतदाताओं की संख्या हिंदुओं से ज्यादा है। इतना ही नहीं गोवा की 18 विधानसभा में क्रिस्चियन मतदाताओं की संख्या निर्णायक है।

इसके बावजूद 2012 में भाजपा के निर्वाचित 21 विधायकों में 6 क्रिस्चियन विधायकों का समावेश होना किसी भी हिंदूवादी पार्टी की छाप वाली भाजपा के लिए खास मायने ही रखता है। भाजपा को मिली इस अभूतपूर्व सफलता के लिए मनोहर पर्रिकर व अन्य भाजपा नेताओं का गोवा में जनसंपर्क कारणीभूत माना जा रहा है।

इसके बाद पर्रिकर के राज्य के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हुए और उसके बाद 2014 में राज्य में पर्रिकर को केंद्र सरकार में रक्षामंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सौपी गई। इससे गोवावासियों को विशेष आनंद मिला। इस तरह ढाई दशक तक गोवा की राजनीति का केंद्र विंदू रहे पर्रिकर अचानक केंद्र की राजनीति में चमकने लगे।

पर्रिकर के केंद्र में जाने के बाद राज्य में उनके इतना बड़ा नेतृत्व उभर नहीं सका या यों कहा जाए कि साल डेढ़ साल में इतना बड़ा नेतृत्व उभर पाना संभव भी नहीं है। इसी कालखंड में गोवा में घटी एक घटना ने गोवा भाजपा को झकझोर कर रख दिया।

गोवा में 2012 से पहले तत्कालीन सरकार ने अग्रेजी मीडियम स्कूलों को सरकारी अनुदान दिए जाने का निर्णय जल्दबाजी में लिया था। इस निर्णय के विरोध में गोवा के विभाग संघचालक सुभाष वेलिंगकर ने आंदोलन शुरू कर दिया था, इतना ही नहीं वर्तमान भाजपा सरकार व पर्रिकर के विरुद्ध आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया।

वेलिंगकर ने इसी मुद्दे पर राजनीतिक दल बनाना शुरु कर दिया था, जिससे उन्हें संघचालक पद से हटा दिया गया। इसके बाद वेलिंगकर ने संघ के समानानंतर प्रति संघ की स्थापना करना शुरू कर दिया, जिससे इस साल होने वाला गोवा विधानसभा चुनाव महत्वपूर्ण हो गया है।

वर्तमान गोवा विधानसभा चुनाव में प्रा. वेलिंगकर द्वारा स्थापित दल शिवसेना व मगोप के साथ चुनावी गठबंधन कर मैदान में डटा हुआ है। दूसरी ओर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल झाड़ू चुनाव चिन्ह लेकर इस चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे है। इस चुनाव में आप की सफलता व असफलता को लेकर तरह-तरह की शंका व्यक्त की जा रही हैं।

इतना ही नहीं पर्रिकर के केंद्र में जाने के बाद राज्य में उनका स्थान कोई अन्य नेता भर नहीं सका, जिससे उन्हें फिर से गोवा में वापस आना पड़ा है और गोवा में हो रहे विधानसभा चुनाव में पर्रिकर विशेष ध्यान दे रहे हैं। इसलिए यहां पर्रिकर वर्सेस आल कुछ इस तरह की स्थिति यहां उत्पन्न हो गई है।

गोवा के मैदान पर होने वाली इस लड़ाई में सभी गोवावासी जुट गए हैं और यह लड़ाई कौन जीतता है, इसे लेकर राजनीतिक भविष्यवाणी भी होने लगी है, कुछ ही दिनों में यहां कौन जीतेगा स्पष्ट हो जाएगा।

आगामी विधानसभा चुनाव के लिए गोवा सुरक्षा मंच, शिवसेना व मगोप गठबंधन कर मैदान में हैं। इसकी जानकारी सभी प्रमुख पदाधिकारियों को देते हुए सभी चालीस सीटों पर उम्मीदवार उतारने का निर्णय युति ने लिया है। गोवा सुरक्षा मंच ने इससे पहले ही शिवसेना व गोवा प्रजा पक्ष से भी युति किया है।

मातृभाषा की रक्षा के लिए स्थापित भारतीय भाषा सुरक्षा मंच की प्रमुख मांग को मगोप का पहले से ही समर्थन है और आगे भी समर्थन जारी रहने वाला है। इसलिए युति की भूमिका पूरी तरह स्पष्ट है। पिछले विधानसभा चुनाव में अवैध खनन कार्य, भ्रष्ट्राचार, शिक्षण व्यवस्था में घोटाला आदि मुद्दे प्रभावी थे। इस बार भाजपा को वेलिंगकर के रुप में बड़ी चुनौती मिल रही है।

गोवा में 65 फीसदी हिंदू, 30 फीसदी क्रिस्चियन, 2.81 फीसदी मुसलिम व 2.19 फीसदी अन्य जाति के लोग विधानसभा में किसे चुनते हैं, इसका पता मतगणना के बाद ही हो सकेगा। गोवा विधानसभा में कांग्रेस की हालत फ़िलहाल दयनीय ही नजर आ रही है।