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Padmavati KI ASLIYAT KYA HAI | असलियत में कोई पद्मावती थी ही नहीं
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असलियत में कोई पद्मावती थी ही नहीं : इतिहासकार इरफान हबीब

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असलियत में कोई पद्मावती थी ही नहीं : इतिहासकार इरफान हबीब
In reality there was no Padmavati : historian Irfan Habib on film Padmavati row
In reality there was no Padmavati : historian Irfan Habib on film Padmavati row
In reality there was no Padmavati : historian Irfan Habib on film Padmavati row

नई दिल्ली। फिल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती के सेट पर जयपुर में करणी सेना के हमले के बाद इतिहासकार इरफान हबीब ने पद्मावती के पात्र को काल्पनिक बताया है।

हबीब भारत के प्रख्यात इतिहासकार हैं। इन्हें भारत सरकार की तरफ से 2005 में पद्म भूषण पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है। वरिष्ठ इतिहासकार इरफान हबीब ने दावा किया है कि जिस पद्मावती के अपमान को मुद्दा बनाकर करणी सेना और दूसरे संगठन हंगामा मचा रहे हैं, वैसा कोई पात्र असलियत में था ही नहीं, क्योंकि पद्मावती पूरी तरह से एक काल्पनिक चरित्र है।

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इरफान हबीब ने कहा कि मशहूर लेखक मलिक मोहम्मद जायसी ने पद्मावती का किरदार रचा था। पद्मावती का इतिहास में 1540 से पहले कोई रिकॉर्ड नहीं मिलता। इस किरदार को 1540 में रचा गया। किसी भी इतिहासकार ने 1540 से पहले इसका उल्लेख नहीं किया। ये चीजें पूरी तरह से काल्पनिक हैं।

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जायसी ने सिर्फ राजस्थान को आधार बनाकर एक रोमांटिक महाकाव्य लिखा क्योंकि राजस्थान एक रोमांटिक जगह थी। इसकी रचना सन् 947 हिजरी. (संवत् 1597) में हुई थी। इसकी कुछ प्रतियों में रचना तिथि 927 हिजरी मिलती है, किंतु वह असंभव है।

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अन्य कारणों के अतिरिक्त इस असंभावना का सबसे बड़ा कारण यह है कि मलिक साहब का जन्म ही 900 या 906 हिजरी में हुआ था। ग्रंथ के प्रारंभ में शाहेवक्त के रूप में शेरशाह की प्रशंसा है, यह तथ्य भी 947 हिजरी को ही रचनातिथि प्रमाणित करता है।

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927 हिजरी में शेरशाह का इतिहास में कोई स्थान नहीं था। इस तरह की कई एेसी वजहें हैं जो पद्मावत के रचना काल से लेकर उसके पात्रों विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती है। ऐसी स्थिति में पद्मावती का विरोध भी राजनीति से प्रेरित लगता है।

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