कोलंबो। पोप फ्रांसिस ने 17वीं शताब्दी में श्रीलंका में ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार करने वाले पादरी जोसफ वाज को बुधवार को संत की उपाधि प्रदान की। पोप ने करीब पांच लाख लोगों को संबोंधित करते हुए कहा कि श्रीलंका में वर्तमान परिपेक्ष्य में वाज धर्मिक सहिष्णुता के एक बेहतरीन उदाहरण है।
अंग्रेजी में दिए अपने भाषण में पोप ने कहा कि ईसाइयों को शांति, न्याय और सामंज्य के लिए वाज का अनुसरण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि दो करोड़ की आबादी वाले श्रीलंका में करीब 7 प्रतिशत आबादी कै थोलिक समुदाय की है और इस लिहाज से यहां बड़ी संख्या में ईसाई है।
गौरतलब है कि जोसफ वाज का जन्म 1651 में भारत के गोवा में हुआ था। कैथोलिक ईसाइयों पर जुल्म की दास्ता सुन कर वह 36 साल की उम्र में श्रीलंका आ गए और एक जासूस होने के संदेह में उन्हें कैद कर लिया गया था, बाद में बौद्ध शासक के संरक्षण में उन्होंने कई साल तक ईसाई धर्म के लिए कार्य किया। श्रीलंका की एक बेवसाइट के मुताबिक वाज की मौत सन 1711 में हुई और तब तक उनकी पहल पर 30 हजार लोग ईसाई धर्म ग्रहण कर चुके थे।