लखनऊ। सूबे में विधानसभा चुनाव को लेकर जहां नेता जनता के बीच जाकर वोट मांग रहे हैं, वहीं अपने नफा-नुकसान का आकलन करके विभिन्न संगठन और धार्मिक नेता भी सियासी दलों को समर्थन देने का ऐलान कर रहे हैं।
इसी कड़ी में दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी ने इस बार मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को समर्थन देने का एलान किया है। बुखारी ने अखिलेश यादव के शासन में प्रदेश की बदहाली होने का आरोप लगाया है और अपने समर्थकों से समाजवादी पार्टी के खिलाफ वोट करने की अपील की है।
बुखारी ने अखिलेश सरकार से पूछा है कि उन्होंने पांच साल में मुसलमानों का क्या दिया? उन्होंने सपा सरकार पर वादाखिलाफी के भी आरोप लगाए हैं। गौरतलब है कि बुखारी का सपा के वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री आज़म खां से छत्तीस का आंकड़ा रहा है। इसके साथ ही वह हर विधानसभा और लोकसभा चुनाव अपना पाला बदलते हुए विभिन्न दलों को वोट करने की अपील करते रहते हैं।
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बुखारी ने मुलायम सिंह यादव के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सपा को समर्थन देने का एलान किया था। बाद में सरकार बनने पर बुखारी के दामाद को विधान परिषद का अध्यक्ष भी बनाया था। हालांकि बुखारी की अपील का कोई खास असर नहीं देखा गया है और जिस पार्टी का वह विरोध करते हैं, कई बार उसे ही मुसलमानों के ज्यादा वोट मिले हैं।
वहीं बुखारी से पहले उलेमा काउंसिल भी मायावती के समर्थन का ऐलान कर चुकी है। काउंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना आमिर ने बुधवार को बसपा महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दीकी के साथ संयुक्त पत्रकार वार्ता में बसपा को समर्थन देने का ऐलान किया था। काउंसिल ने कहा था कि सपा ने अपने 5 साल के कार्यकाल में मुसलमानों के लिए बेहतर कोई काम नहीं किया है।
वहीं यूपी के एक दर्जन मौलाना समाजवादी पार्टी को समर्थन देने का ऐलान कर चुके हैं। इनका कहना है कि सपा सरकार ने ही यूपी का विकास किया है, बाकी तो अपने विकास में मशगूल रहे। इसलिए फिरकापरस्त ताकतों को रोकने के लिए सपा-कांग्रेस गठबंधन को मजबूत किया जाएगा। समर्थन का ऐलान बुधवार को यहां ‘मुस्लिम कन्वेंशन’ के बैनर तले किया जा चुका है।
दरअसल यूपी में मुसलमानों की आबादी 19 फीसदी के करीब है। लगभग 140 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी 10 से 20 फीसदी तक है। 70 सीटों पर 20 से 30 फीसदी और 73 सीटों पर 30 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी है। जाहिर है मुस्लिम मतदाता 140 सीटों पर सीधा असर डालते हैं।
यही वजह है कि सियासी दलों में चुनाव के समय मुस्लिम वोटरों को अपनी ओर खींचने की स्पर्धा होती है। हालांकि कांग्रेस, सपा, बसपा के अपनी सरकारों में मुसलमानों की तमाम बेहतरी के दावों के बावजूद आज भी मुसलमान मुख्य धारा से दूर हैं और उन्हें वोट बैंक बनने के बजाए विकास की दरकार है।