कई बार ऐसा होता है कि किसी को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ उच्चस्थ आसन पर बैठाकर आस्था का चवंर ढुलाते हैं। जब हकीकत से पाला पड़ता है और उसके कार्यकलाप की ओर देखते है और उससे बडे चमत्कार की उम्मीद करते हैं तो वह अपनी असफलता के लिए दूसरों को गुनाहगार बता गुमराह करने की कोशिश करते हैं।
अपनी सच्चाई पर पर्दा डालने के लिए दूसरों को निर्वस्त्र कर देते हैं। स्वयं बैदागी बन दूसरों को दागदार बनाने के लिए वह किसी भी हद को पार करने का जिगर रखते हैं।
श्रद्धा से जुडा व्यक्ति जब उसकी हकीकत से रूबरू होता है तो जिस सम्मान के साथ उसको आसन पर बैठाया था उस को उतने ही असम्मान के साथ ठुकरा देता हैं।
पौराणिक, प्राचीन तथा आधुनिक युग मे ऐसे सैकड़ों उदाहरण देखे जाते हैं। द्वापर के युग मे श्री कृष्ण ने अपने कुनबे को सुरक्षित रखने के लिए नवीन द्वारका नगरी का निर्माण कराया था तथा सभी को उसमें बसाकर हर सुख प्रदान किए थे।
कुछ नए बसे लोगों ने उन पर आरोप लगा दिए ओर चिल्ला चिल्ला कर उन्हें गुनहगार बताने की कोशिश की ओर साथ ही उनकी सल्तनत पर बैठ ऐश करने लगे।
द्वारका में परसेन नामक व्यक्ति के पास एक मणि थी वो बहुत चमकती थी तथा जिससे स्वर्ण धातु उत्पन्न होती थी। एक बार मणि सहित वह जंगल में चला गया वहा एक शेर ने परसेन को मार डाला तथा मणी वही रह गई।
पूरी द्वारका नगरी में शोर मच गया कि कृष्ण ने ही उस मणि को लेने के लिए परसेन को मरवा दिया और कृष्ण का पिछला इतिहास बताते हुए उसे हर तरह से सर्वत्र बदनाम कर दिया जबकि बदनाम करने वाले उसकी बनाई गई आधार शिला पर ही बैठे थे।
श्री कृष्ण से यह बर्दाश्त नहीं हुआ ओर वे वन मे जाकर जामवनत जी से सत्ताईस दिन युद्ध कर मणि ले आए तथा द्वारका मे परसेन के घर वालों को दी तथा अपने ऊपर लगे बदनामी के कलंक को मिटाया।
वह चमकने वाली अनमोल समयनतक मणि थी जो प्रतिदिन दो भार सोने को उत्पन्न करती थी। इस मणि के समान ही दुनिया मे सज्जनता की चादर ओढ़कर कई व्यक्ति मसीहा बन आंखों में जहरीली मुस्कान लिए तथा वाणी से अंगारे उछालते हुए, मन में बैर विरोध रख समस्या को समाप्त करने के झूठे दावे करते हैं।
यह सब उसी साधु की तरह है जो साधु नहीं हैं केवल साधु होने का सफल नाटक कर रहा हैं। सज्जन व्यक्ति होने के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह साधुओं के वस्त्र धारण करे वरन उसकी वाणी मन व आंखों में शैतानी न हो, कई बार ज्यादा दहाडने वाला भी धूर्त निकल जाता है।