नीमच। रामचरित्र मानस हमें जीवन जीने की कला सिखाती है, जिसने रामचरित्र मानस का आश्रय कर लिया, उसके जीवन का उद्धार हो जाता है। जीवन को सुखमय बनाने का मार्ग प्रशस्त करती है रामचरित्र मानस।
सत्संग प्यास नहीं बुझाता है। सत्संग तो परमात्मा के लिए प्यास पैदा करता है। जब मन वचन एक हो जाते हैं। तब जीवन में सुचिता आ जाती है। देव दर्शन, गुरू दर्शन और मन दर्शन से काया शुध्द हो जाती है।
यह अमृतमयी विचार स्थानीय वात्सल्य धाम दशहरा मैदान पर आयोजित रामकथा के पांचवे दिन साध्वी दीदी माँ ऋतम्भरा ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि साधु का काम सत्ता बदलना नहीं है। साधु तो व्यक्ति की सोच को बदलते हैं। धर्म हमें जो देता है। वह ऐसी सुरभी है, जो संसार नहीं दे सकता है।
दीदी मां ने कहा कि प्रभु उपासना में उपवास जरूरी नहीं है, लेकिन शरीर की शुद्धि के लिए उपवास करना चाहिए। उपवास करने से काया निरोगी रहती है।
दीदी मां ने कहा कि जिस तरह से गंगा की शुद्धि के लिए प्रक्षालन जरूरी है, उसी तरह परिवार में बहने वाल संस्कारों की गंगा का प्रक्षालन भी जरूरी है। ताकि परिवार में संस्कार लंबे समय तक बने रहे। उन्होंने कहा कि सनातन जीवन को जीने की पद्धती है।
साध्वी दीदी मां ने कहा कि राम तुम्हें भी बनना होगा, राम के पद चिन्हों पर चलना होगा। इतिहास को बदलना होगा। जो समाज के शोषक है, उन्हें हमें कुचलना होगा। उन्होंने कहा कि जीवन में बुराईयों को आने नहीं देना चाहिए।