जहां पर सत्य की संगत ओर असत्य का त्याग होता है वही सत्संग है। जहां अपना सम्पूर्ण समर्पण परमात्मा के लिए होता है और कुछ समय के लिए व्यक्ति अपने आप को भी भूल जाता है और एक असीम आनंद मे खो जाता है।
इसी असीम आनंद मे अपनी आत्मा को परमात्मा के दर्शन की एक झलक मिल जाती है। व्यक्ति को जीवन मे व्यवहार करने ओर उनके प्रति दायित्व निभाने की कोशिश सत्संग के भजन, कीर्तन, उपदेश नाम आदि के द्वारा की जाती है।
मन के अन्धकार ओर आत्मा के प्रकाश का उत्सव है सत्संग। जगत मे उपजे जीव के प्रति दया भाव अपना कर उनका कल्याण करने के हर सम्भव प्रयास करने की सीख है सत्संग।
भक्ति रूपी चूदंडी ओढ़कर संतों की सत्संग मे व्यक्ति जब बैठता है तब ना जाने कौनसे शब्द से उसके ज्ञान का द्वार खुल जाता है और उसकी भक्ति रूपी चूदंडी को गहरे रंग मे परमात्मा भिगो देता है। सत्संग की यह चूदंडी भौतिक जगत ओर माया से व्यक्ति को दूर कर देती है।सत्संग से जीवन के हर मार्ग सरल बन जाते हैं।
इस बात को यूं समझ सकते हैं कि एक गांव मेें सेठ जी रहते थे उनका नियम था कि जो भी वस्तु बेचने वाला उसके घर पर आए तो उससे वह वस्तु खरीद लेता थे। एक बार सेठ जी को गांव के बाहर जाना था तब वो अपने नौकर को कह गए थे कि यदि कोई व्यक्ति जो कुछ भी सामान बेचने आए तो उससे खरीद लेना।
उस दिन एक व्यक्ति भूत बेचने आया। नौकर ने भूत खरीद लिया। खरीदते ही भूत बोला कि भाई बताओ तुम्हारा क्या काम करूं, क्योंकि नहीं बताओगे तो मैं तुम्हे मार दुंगा। नौकर ने अपने घर के समस्त कार्य उससे करवा लिए।
दूसरे दिन सेठ जी आए तथा भूत से काम लेते लेते परेशान हो गए। कई दिनों तक यह कार्यक्रम चलता रहा ओर सेठ जी की चिन्ता बढ गई। सेठ जी को कोई भी उपाय नहीं मिला। एक दिन गांव मे सत्संग थी, सेठ जी ने सोचा सत्संग में बैठ कर परमात्मा से अरदास करेंगे।
सत्संग में संत जी के भजन से सभी मस्त हो गए लेकिन सेठ जी टेन्शन मे ही थे। संत जी ने सेठ जी की परेशानी सुन कर कहा कि हे सेठ तेरे घर के आगंणे मे एक लम्बा बांस खड़ा कर देना ओर भूत को कहना कि तुम लगातार इस बांस पर चढते रहो और उतरते रहो। यह बात सुनकर सेठ जी बहुत प्रसन्न हुए और संत के चरण पकड लिए।
सेठ जी ने पहली बार भजन की चूदंडी ओढी ओर परमात्मा के गहरे रंग मे रंग गए। जो भी व्यक्ति संत की संगत करता है परमात्मा उसे भव से पार लगा देते हैं।