नई दिल्ली। ट्रिपल तलाक के मामले पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को निर्देश दिया कि वे अटार्नी जनरल को अपने मसले लिखित रूप से तीस मार्च तक दे दें। कोर्ट ने गुरुवार को इस बात के संकेत दिए कि इस मसले को पांच जजों की संविधान बेंच के समक्ष रेफर किया जा सकता है।
गुरुवार को केंद्र सरकार ने कोर्ट से वे चार मसले सौंपे जिन पर सुनवाई होनी चाहिए। केंद्र ने जो सवाल सुप्रीम कोर्ट को सौंपे वो हैं क्या तलाक, निकाह और बहु-विवाह संविधान की धारा 25(1) के तहत सुरक्षित है। क्या संविधान की धारा 25(1) संविधान के खंड तीन खासकर धारा 14 और 21 का विषय है। क्या संविधान की धारा 13 के तहत पर्सनल लॉ वैध है। क्या तलाक, निकाह और बहु विवाह अंतर्राष्ट्रीय संधि का पालन करता है जिसका एक हस्ताक्षरकर्ता भारत भी है।
चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच ने 14 फरवरी को सुनवाई के दौरान कहा था कि 11 मई से इस मामले में नियमित सुनवाई की जाएगी। वहीं सभी पक्षकारों से कहा था कि वे पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से बहस के लिए तीन तीन वकीलों या पक्षकारों का चयन कर लें। वे क़ानून के व्यापक मुद्दे पर विचार करेंगे।
कोर्ट ने कहा था कि इसमें मानवाधिकार का पहलू भी शामिल हो सकता है और उसका लंबित मामलों पर भी असर हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले मे वह कामन सिविल कोड पर विचार नहीं कर रहे हैं। पिछली सुनवाई के दौरान ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में एक और हलफनामा दाखिल कर केंद्र की दलीलों का विरोध किया था।
बोर्ड ने कहा था कि ट्रिपल तलाक को महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन बताने वाले केंद्र सरकार का रुख गलत है। पर्सनल लॉ को मौलिक अधिकार के रूप में चुनौती नहीं दी जा सकती है। उनके मुताबिक ट्रिपल तलाक, निकाह जैसे मुद्दे पर कोर्ट अगर सुनवाई करता है तो ये जूडिशियल लेजिस्लेशन की तरह होगा।
केंद्र सरकार ने इस मामले में जो स्टैंड लिया है कि इन मामलों को दोबारा देखा जाना चाहिए ये बेकार का स्टैंड है। पर्सनल लॉ बोर्ड का स्टैंड है कि मामले में दाखिल याचिका खारिज किया जाना चाहिए क्योंकि याचिका में जो सवाल उठाए गए हैं वो जूडिशियल रिव्यू के दायरे में नहीं आते। हलफनामे में पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि पर्सनल लॉ को चुनौती नहीं दी जा सकती।