मुंबई। प्रकाश झा के प्रोडक्शन में डायरेक्टर अलंकृिता श्रीवास्तव की फिल्म लिप्सिटक अंडर माई बुरका को लेकर सेंसर बोर्ड फिर से निशाने पर आ गया है। सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म को पास करने से मना कर दिया है।
रिवाइजल कमेटी में भी ये फैसला बना रहा। अब मामला एपीलेट ट्रिब्यूनल में तय होगा, जिसके लिए फिल्म की टीम ने अप्रोच किया है। प्रकाश झा इसे सेंसर की तानाशाही बताते हैं और कहते हैं कि जरुरत पड़ी, तो वे कोर्ट तक जाएंगे।
उधर, सेंसर बोर्ड के चेयरमैन पहलाज निहलानी का कहना है कि सेंसर बोर्ड अपनी गाइड लाइंस के मुताबिक काम रहा है। उन्होंने फिल्म को पास न किए जाने के फैसले की पैरवी करते हुए कहा कि ये फैसला दिशा-निर्देशों के मुताबिक हुआ है।
‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ को नहीं मिली हरी झंडी
उधर, बॉलीवुड से लेकर सोशल मीडिया तक हर जगह इस फैसले के लिए सेंसर बोर्ड को आड़े हाथों लिया गया है। बालीवुड में राकेश ओमप्रकाश मेहरा से फरहान अख्तर, कबीर खान, मधुर भंडारकर, महेश भट्ट, विशाल भारद्वाज, सुजाय घोष जैसे फिल्मकारों ने इस फैसले को बेहूदा बताते हुए कहा है कि फिल्म के संघर्ष में वे एकजुट हैं।
फरहान अख्तर का मानना है कि सेंसर बोर्ड के फैसले फिल्मकारों का मनोबल तोड़ रहे हैं। राकेश मेहरा ने कहा कि वे हैरान हैं कि कैसे एक फिल्म के साथ ऐसा किया जा सकता है। महेश भट्ट ने कहा कि ये फैसले बताते हैं कि हमारा सेंसर बोर्ड किस सदी में जी रहा है।
कबीर खान ने कहा कि ऐसे सेंसर बोर्ड की कोई जरुरत नहीं है। ये फिल्म समाज के अलग अलग चार वर्ग की महिलाओं की कहानी है, जो अपनी अपनी जिंदगी से ढर्रे से परेशान हैं और चेंज चाहती हैं। इन महिलाओं में दो मुस्लिम और दो हिंदू परिवारों से हैं।
माना जा रहा है कि फिल्म के टाइटल में बुरका शब्द को लेकर भी सेंसर बोर्ड सहज नहीं था। फिल्म की प्रमुख भूमिकाओं में कोंकणा सेन शर्मा, रत्ना पाठक शाह, पल्बिता बोरथकर और आहना कुमारा हैं। फिल्म इन चारों महिलाओं के जिंदगी के सफर की कहानी है।
सेंसर बोर्ड ने फिल्म के कुछ सीन और संवादों पर आपत्ति जताई और फिल्म को सार्टिफिकेट देने से मना कर दिया। प्रकाश झा की इससे पहले बनी फिल्म जय गंगाजल में भी सेंसर ने आपत्ति की थी और फिल्म को एपीलेट ट्रिब्यूनल से क्लीयर कराना पड़ा था।
इससे पहले सेंसर बोर्ड पर हाल ही में उस वक्त भी सवाल उठे थे, जब रामगोपाल वर्मा की आने वाली फिल्म सरकार 3 को लेकर भी इसके ट्रेलर पर डिसक्लेमर लगाने को कहा था। ये अपनी तरह का पहला मामला था, जब फिल्म के ट्रेलर पर भी फिल्म के फिक्शन होने का डिसक्लेमर लगाने को कहा गया।