फाल्गुन मास को साधना का पर्व माना जाता है। फाल्गुन मास में महाशिवरात्रि व होलिका दहन इन दोनों ही महापर्वो पर विशेष साधना के माध्यम से शरीर की ऊर्जा को बढा कर योग क्रिया के माध्यम से साधक विशेष उद्देश्य की पूर्ति करते हैं। जब साधना में साधक अपने इष्ट में विलीन हो जाए तब ही यह साधनाएं फलीभूत होगी अन्यथा यह पुस्तकों तक ही शोभनीय बनी रहेंगी।
फ्री आज का राशिफल पढने के लिए यहां क्लीक करें
भगवान् शिव ने शक्ति की आराधना की ओर वे महामाया के ध्यान में इतना समा गए कि ऊनका आधा अंग स्त्री का हो गया ओर तभी से शिव अर्ध नारीशवर कहलाए।
तंत्रों के स्वामी शिव श्मशान मे धूनी जमाते हैं तथा अपने गले में मुण्डो की माला को धारण करते तथा श्मशान की भस्म अपने शरीर पर लगाते हैं। शिव का यही स्वरूप अधोर है। उनकी अधोर साधना भोग और मोक्ष को देने वाली होती है।
शिव सात करोड़ गणों के अधिपति है तथा संसार के सभी भूत, प्रेत, जिदं, आत्मा तथा सभी जादू टोने-टोटके के स्वामी हैं। अपने आगम तंत्र का निर्माण शिव ने आदि कृष्ण के कहने पर ही किया था। तंत्रों का पहला ज्ञान शिव ने अपने शिष्य रावण को दिया बाद मे महसती पार्वती की प्रार्थना पर उन्हें दिया।
भगवान् शिव के मुख से निकला तथा पार्वती ने श्रवण किया तथा भगवान् विष्णु ने जिसे स्वीकृति प्रदान की। भगवान् शिव का यही ज्ञान “आगम शास्त्र ” कहलाया।
शंकर भगवान् की जब पार्वती से शादी हुई तो होली मास में वह पीहर चली जाती है। इस बीच शंकर जी को पार्वती की बहुत याद आती है। वे मनन करते हैं कि काश! पार्वती होती तो खूब जमकर होली खेलते। शिव की यह आवाज जब पार्वती के कानों में पडी, वे वास्तव मे योगमाया थीं।
शिव की इच्छापूर्ति के लिए पार्वती ने काली का रूप बनाया ओर शंकर जी को रंगने के लिए श्मशान से कैलाश पर्वत पर जा रही है। शंकर को रंगने काली निकली श्मशान से। हाथों में खपपर लेकर श्मशान की भस्मी भरकर ओर हुंकार करती कैलाश पर्वत पर शिव के सामने खडी हो कर होली के गीत गाते हुए नाचने लगी।
शंकर जी घबरा गए और आंखे बंद करके ध्यान मे बैठ गए। पार्वती जी को हंसी आ गई और शिव को पकड कर हिलाने लगी तो शंकर जी ने जैसे ही आंखे खोली तो वहा काली की जगह पार्वती रंग, गुलाल लेकर खडी थी।
पार्वती जी को देख शंकर जी को भी आनन्द आ गया। शिव और शक्ति दोनों ने खूब एक दूसरे को रंगा ओर इन्द्र ने भी दोनों पर जल की बरसात कर दी।इस पर आनन्दित हो शिव शक्ति एक दूसरे मे विलीन हो गए। फाल्गुन मास मे प्राणी उमंग, उत्साह ओर आनन्द से रहता है वो सदा के लिए काम व क्रोध को भस्म कर देता है।
सौजन्य : भंवरलाल