उसका हुनर आकाश की ऊंचाईयों से भी ऊंचा ओर पाताल की गहराईयों से भी नीचा था। बेमिसाल हुनर का वो बादशाह था। काल के हर पल पल में, प्रकृति के हर जर्रे जर्रे में, मिट्टी के हर कण में उसकी महक चन्दन की तरह फैली हुई थी। कष्टो को काटने में वो प्रवीण था।शरणागत को जिसमें दासय भाव देने की क्षमता थी। ये सारे हुनर आखिर कैसे सीखे है उसने।
रास मण्डल का वो रसिया, रास खेलते समय हर गोपियो के साथ वो ही वो नजर आता था। कभी वो राधा बन जाता तो कभी वो कृष्ण बन जाता था। राधा उसकी आत्मा थी और वो राधा की आत्मा मे बसा था। प्रेम लीला का दीवाना वो प्रेम मे कामेश्वर बन जाता था।
राधाजी इनका बहुत ध्यान रखती थी फिर भी वो नजरे चुराकर किसी दिलकश गोपियों के प्रेम जाल में फंस जाते थे। एक बार स्वर्ग से गंगा भी रास मण्डल में आ गई तथा कृष्ण को रिझाने लगी। इतने में राधा भी वहा पहुंच गई तथा कृष्ण को डांटने लगी और बोली मनमोहन मैंने हर बार तुम्हें कई गोपियों के विषय में समझाया है तुझे रंगे हाथ पकड़ा है फिर भी कृष्णा तुम कामेश्वर बन इन गोपियों के प्रेम जाल मे फंस जाते हो। गोपियों को रिझाने का हुनर क्या है।
मुझे याद है कृष्ण की एक बार मैने तुम्हें क्षमा नामक गोपी के साथ प्रेम करते समय पकडा था। तुम दोनों निद्रा मग्न हो गए थे और मैने आवाज देकर तुम्हें जगाया। तुम्हारी कोसतुभमणी, पीताम्बर तथा मुरली छीन ली थी लेकिन मेरी सखियों के समझाने के कारण मैंने तुम्हें वापसे दे दी थी। शर्म के कारण तुम्हारा चेहरा काले रंग का हो गया था। इतना कहने के बाद भी समझ नहीं आई।
राधा बोली – हे प्राणेश! आपके मुस्कान युक्त मुखमणडल को मुस्कराकर तिरछी दृष्टि से देखती हुई ये कामना युक्त कौन है। हे कामी व्रजेशवर! अपनी इस अभीष्ट प्रेयसी को लेकर आप अभी गोलोक चले जाइए, अन्यथा आपका कल्याण नहीं है।
आपने पूर्व मे भी चनदनवन में विरजा के साथ देखा। सखियों का वचन मान मैंने उसे क्षमा कर दिया था। उसने शरीर त्याग नदी का रूप धारण कर लिया था। उसी प्रकार शोभा नामक गोपी के साथ चम्पक वन मे देखा था। मेरी आवाज सुन आप छिप गए ओर वो शरीर छोड चन्द्र मण्डल में चली गई।
वृन्दावन में मैने आपको प्रभा गोपी के साथ देखा वो भी देह त्याग सूर्य मण्डल मे चली गई। एक बार मैंने आपको शान्ति के साथ देखा रास मण्डल में वो भी मेरे डर से देह त्याग कर आप में समाविष्ट हो गई। उसी तरह क्षमा गोपी के साथ देखा उस निद्रा ग्रस्त सुन्दरी के साथ आप सुखपूर्वक क्रीड़ा मे संसकत थे। उसी समय आप दोनों को मैंने जगाया इस बात को याद करे तब लज्जा के कारण वो शरीर त्याग कर पृथ्वी में समा गई।
आप को ओर क्या बताऊ, क्या सुनना चाहते हैं आप। राधा जी ने ऐसा कह गंगा की ओर देखा तब गंगा तुरत भाग गई लेकिन राधा ने अंजलि से उठा कर मुंह में पान करने लग गई। गंगा तुरत अपने योगबल से श्रीकृष्ण के चरणकमल में प्रवेश कर गई।
इतना होने के बाद भी कृष्ण कुछ भी राधा के सामने नहीं बोलते और छिप जाते थे। कृष्ण की यह हालत देखकर राधा को हंसी आ जाती थी और कृष्ण फिर राधा के हो जाते।
सौजन्य : भंवरलाल