सुलतानपुर। भगवान कृष्ण की साथी राधा के जन्म स्थान बरसाना की लट्ठमार होली के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन सुलतानपुर में बाजारशुकुल के पास गुलमाबाद गांव में होली अजीबो-गरीब ढ़ंग से मनाई जाती है।
मान्यता है कि यहां होलिका तापने के बाद पान खाने से मिर्गी की बीमारी से मुक्ति मिलती है। इसके लिए यहां होलिका दहन के पहले से मेले सा माहौल हो जाता है। मरीजों को लेकर आसपास के कई जिलों से सैकड़ों लोग आते हैं।
मान्यता के अनुसार इसी गांव के बरईभीटा का पान भी खाना जरूरी है। यह सिलसिला कई वर्ष से चला आ रहा है। इस साल भी मरीज यहां पहुंचने लगे हैं। दुनिया में नित नए आविष्कार हो रहे हैं। असाध्य रोगों का इलाज भी संभव हो गया है।
वहीं आज भी पारंपरिक मान्यताएं हावी हैं और गंभीर बीमारियों से निजात पाने के लिए टोटका अपनाया जा रहा है। छत्रपति शाहूजी महाराजनगर में बाजारशुकुल के पास स्थित गुलमाबाद गांव मे आज भी होलिका के ताप व बरईभीटे के पान से मिर्गी का दौरा दूर करने के लिए मेला लगता है।
यह मान्यता परंपरा के रूप में वर्षों से चली आ रही है। यहां वैज्ञानिक तर्क तो नहीं मान्यता और विश्वास से इलाज होता है। यही कारण है कि गोंडा, हरदोई, सीतापुर, बहराइच, बाराबंकी, अंबेडकरगनर, बस्ती आदि पड़ोसी जिलों से लोग प्रतिवर्ष यहां आते रहते हैं। होली के एक दिन पहले से बरईभीटे के पास जहां होलिका दहन होता है मेला सा लग जाता है।
लोग जलती होलिका की परिक्रमा करते हैं और यहीं के पुश्तैनी बरई से पान का बीड़ा लेकर खाते हैं। यह दोनों प्रक्रिया एक दूसरे की पूरक हैं। मान्यता के अनुसार मिर्गी से पीड़ित लोगों को लगातार तीन साल तक यहां की होलिका का ताप लेना व पान खाना जरूरी होता है।
गुलामाबाद के सरेश के मुताबिक, गांव को बसाने वाले संत गुलामदास एवं उनके शिष्य दुरगू बाबा द्वारा इसकी शुरुआत की गई थी। मृत्यु से पूर्व बाबा द्वारा होली जलवाने व दवा के रूप में लोगों को पान रूपी प्रसाद देने की जिम्मेदारी गुलामाबाद गांव में निवास करने वाले कुम्हार परिवार को पीढ़ी दर पीढ़ी सौंपी गई थी।
बाबा द्वारा सौंपी गई जिम्मेदारियों का निर्वाहन कुम्हार परिवार द्वारा आज भी बखूबी किया जा रहा है। रंजन का कहना है कि मिर्गी के रोगी को प्रसाद रूपी दवा के लिए एक पान, एवं एक भेली गुड़ लाना अनिवार्य होता है। गांव में अभी से भारी संख्या में मिर्गी के रोगियों का आना शुरू हो गया है।