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एक घर जो बना 'गौशाला' - Sabguru News
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एक घर जो बना ‘गौशाला’

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एक घर जो बना ‘गौशाला’

गौ सेवा के नाम पर बहुत सी संस्थाए हर शहर हर गली में खुली है, लेकिन गाय का हाल वो का वो ही है। ऐसे में आज हम आपको मिलवा रहें है, ऐसे व्यक्ति से जिसने अपने घर को ही गौशाला बना लिया है।

अपने घर का नाम दिया है- जागृति गौ-तीर्थ। सुनकर हैरानी जरूर होती है, लेकिन रायपुर के अभिनव अपने ही घर में गाय और बैलों को बिलकुल अपने बच्चों की भांती पालते है। खुद एक कोने में सोते है और बेडरूम में बैल, तो किचन में गाय खड़ी आराम करती है। इतना ही नहीं इन गायों और बैलों का पूरा इलाज करवाया जाता है।

2011 से अब तक 350

रायपुर, में एलएलबी फाइनल ईयर के अभिनव ने अपने घर का नाम दिया है- जागृति गौ-तीर्थ। हालांकि आसपास के लोग उससे घृणा करते हैं, संवाद न करते, लेकिन वह अपने इस फैसले पर अडिग है। अभिनव ने 2011 से अब तक 350 से अधिक ऐसे गाय, बैल को अपने घर में लेकर आया, जो हादसों के शिकार हुए या किन्हीं कारण बस चोटिल हुए। अभिनव उनका इलाज करता है और भरण-पोषण भी। बहुत सी गाय ठीक होकर जा चुकी हैं, जिनकी इलाज के दौरान मृत्यु हो गई, जिसे गौ-लोक गमन नाम दिया गया है। उनका पूरे हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार भी किया है। गायत्री मंत्र के साथ अंतिम विदाई देकर दफनाया जाता है। यह सिलसिला बदस्तूर जारी है।

ऐसे मिली प्रेरणा

अभिनव ने बताया कि 2011 में उन्हें एक गाय सड़क पर जख्मी हालत में पड़ी मिली, उन्होंने उसका उपचार कर एक निजी गौ-शाला में छोड़ दिया, लेकिन कुछ दिनों बाद जब उनके परिवार के सदस्य वहां पहुंचे तो वह गाय नहीं दिखी। उसका बछड़ा भी नहीं था। पूछने पर जानकारी भी नहीं दी गई। इसके बाद अभिनव ने फैसला लिया कि अपने घर को गौशाला बनाएगा। हालांकि उसे गौशाला नाम से चिढ़ है, इसलिए उसने गौ-तीर्थ नाम दिया है। यहां घर के बाहर 15 से अधिक बैल थे, जिन्होंने कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। अंदर गलियारे में 5-7 गाय थीं, इसके बाद बेडरूम में एक बैल, जिसे चोट लगी थी और कम दिखाई देता है। गाय, बैल को गर्मी न लगे तो पंखा, तकिए और चादर भी ढंकी गई थी।

दिया जाता है पोष्टिक आहार

गौवंश के लिए छत पर नेपियर घास की खेती- गाय,बैल के खाने में कोई कोताही नहीं बरती जाती। पैरा, खली तो देते ही हैं उनके लिए पौष्टिक मानी जाने वाली नेपियर घास की खेती भी अभिनव ने छत में करनी शुरू कर दी है। घायल गाय के लिए एलोपैथी दवाओं का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं किया जाता, इनके गोबर, मूत्र से बनी दवाओं का ही इस्तेमाल करते हैं। ड्रिप, इंजेक्शन और टांके लगाने के लिए सर्जिकल किट का इस्तेमाल किया जाता है।