नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर आधार कार्ड की अनिवार्यता के खिलाफ दाखिल याचिका पर जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया है।
सोमवार को इस मामले को चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष मेंशन किया गया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कोई राहत देने से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि संवैधानिक पीठ पर लंबित याचिका पर जल्द सुनवाई की जाए।
चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कहा कि आधार कार्ड पर सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है क्योंकि ये समाज कल्याण की योजनाओं के लिए अनिवार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि आधार योजना को गैर लाभ वाली योजनाओं के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे आयकर रिटर्न भरना आदि।
सुप्रीम कोर्ट ने 5 जनवरी को भी जल्द सुनवाई की मांग ठुकरा दी थी। याचिका में कहा गया था कि आधार कार्ड के जरिए सरकार लोगों की गतिविधियों पर नजर रख रही है, जो निजता यानि राइट टू प्राइवेसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
इससे पहले अक्टूबर 2015 में आधार कार्ड के मामले में सुप्रीम कोर्ट से केंद्र को बड़ी राहत मिली थी। संवैधानिक पीठ ने आधार कार्ड को स्वैच्छिक रूप से मनरेगा, पीएफ, पेंशन और जनधन योजना के साथ लिंक करने की इजाजत दे दी थी, लेकिन पीठ ने साफ किया था कि इसे अनिवार्य नहीं किया जाएगा।
दरअसल, 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में आधार की अनिवार्यता प्रतिबंधित करने से हो रही परेशानी को लेकर आरबीआई, सेबी और गुजरात सरकार ने गुहार लगाई थी, लेकिन तीन जजों की बेंच ने राहत न देते हुए मामले को संवैधानिक पीठ के समक्ष भेज दिया था।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने आदेश में कहा था कि केवल एलपीजी, केरोसिन और पीडीएस के लिए ही आधारकार्ड का इस्तेमाल हो सकता है। सरकार ने कोर्ट में कहा था कि आधार के जरिये सरकार देश के छह लाख गांवों में घर-घर पहुंची है।
सरकार ने कहा कि लोगों को मनरेगा के लिए घर तक बैंक पैसा पहुंचा रहे हैं। खास कर तब जब उसके पास आधार के अलावा कोई और दूसरा पहचान पत्र न हो।