नई दिल्ली। वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि निजता का अधिकार पहले से ही मौजूद प्राकृतिक अधिकार है, जो संविधान में निहित है, हालांकि इसे स्पष्ट रूप से उल्लेखित नहीं किया गया है।
सुब्रमण्यम उन याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दे रहे थे, जिन्होंने आधार योजना को निजता के अधिकार का उल्लंघन बता कर चुनौती दी है।
सुब्रमण्यम ने कहा कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त है। निजता की अवधारणा किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ ही उसके सम्मान में अंतर्निहित है।
उन्होंने ये तर्क सर्वोच्च न्यायालय में बुधवार को इस प्रश्न पर हो रही सुनवाई के दौरान रखे कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं।
प्रधान न्यायाधीशजे.एस. केहर की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ 1954 और 1962 के दो फैसलों के संदर्भ में निजता के अधिकार की प्रकृति की समीक्षा कर रही है, जिसमें कहा गया था कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है।
न्यायाधीश केहर के अलावा नौ सदस्यीय पीठ में न्यायाधीश चेलमेश्वर, न्यायाधीश एस.ए. बोबडे, न्यायाधीश आर.के. अग्रवाल, न्यायाधीश रोहिंटन फली नरीमन, न्यायाधीश अभय मनोहर सप्रे, न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़, न्यायाधीश संजय किशन कौल और न्यायाधीश एस. अब्दुल नजीर हैं।
इस तर्क को आगे बढ़ाते हुए कि निजता एक मौलिक अधिकार है, वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने पीठ को बताया कि यहां तक कि केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी राज्यसभा में आधार विधेयक पर बहस के दौरान कहा था कि निजता एक मौलिक अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ा है।
जेटली ने 16 मार्च, 2016 को राज्यसभा में एक प्रश्न के जवाब में कहा था कि ‘वर्तमान विधेयक (आधार विधेयक) पहले से ही मानता है और इस आधार पर आधारित है कि यह नहीं कहा जा सकता कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है। इसलिए मैं इसे स्वीकार करता हूं कि संभवत: निजता एक मौलिक अधिकार है।’
उन्होंने कहा था कि अब यह स्पष्ट है कि निजता व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है। उन्होंने साथ ही अनुच्छेद 21 का जिक्र करते हुए कहा था कि हम मान लेते हैं कि निजता स्वतंत्रता का हिस्सा है और उचित कानूनी प्रक्रिया के बिना किसी भी व्यक्ति को निजता से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
दीवान ने अपने इस तर्क के समर्थन में केंद्रीय वित्त मंत्री का उद्धरण देते हुए कि निजता एक मौलिक अधिकार है, कहा कि 1970 के दशक के मध्य से पिछले 40 वर्षो में शीर्ष न्यायालय की विभिन्न पीठों ने लगातार कहा है कि निजता एक मौलिक अधिकार है। दीवान ने पीठ से इस अधिकार की फिर से पुष्टि करने का आग्रह किया।