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aap face trouble due to some party leaders and ministers
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कम नहीं हो रहीं आप की मुश्किलें

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कम नहीं हो रहीं आप की मुश्किलें
aap face trouble due to some party leaders and ministers
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की मुश्किलें कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही हैं।

देश के महत्वपूर्ण राज्य पंजाब में कुछ माह बाद ही विधानसभा चुनाव होने हैं तथा अरविंद केजरीवाल व उनकी आम आदमी पार्टी को राज्य विधानसभा चुनाव में अपने लिए काफी उम्मीदें हैं लेकिन मौजूदा परिस्थतियों में आप के एक के बाद एक प्रकरण में बैकफुट पर आने का दौर जारी हैं, ऐसे में पार्टी की राजनीतिक संभावनाओं पर सवाल उठ रहे हैं।

एक तरफ दिल्ली के पूर्व मंत्री संदीप कुमार ने आम आदमी पार्टी की काफी किरकिरी कराई है वहीं आम आदमी पार्टी के एक बड़े नेता संजय सिंह व एक अन्य पर आरोप लगा है कि वह लोगों को अपनी पार्टी में बड़ा नेता बनाने के लिए उनसे पैसे मांगते हैं।

आम आदमी पार्टी के एक विधायक ने अभी लेटर बम का विस्फोट किया है, जिसमें विधायक ने चुनाव में पार्टी का टिकट दिये जाने के संदर्भ में पार्टी के नेताओं द्वारा महिलाओं के प्रति अपनाए जाने वाले रवैये को लेकर सनसनीखेज बातें कही हैं।

यहां पर उन बातों को सनसनीखेज लिखने के पीछे का कारण यह है कि इस तरह के आरोप उन अरविंद केजरीवाल की पार्टी के नेताओं पर लग रहे हैं, जिन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में तमाम राजनीतिक मूल्यों एवं आदर्शों की स्थापना करने की बात कही थी तथा लोगों के मन में यह उम्मीद भी बंधी थी कि केजरीवाल राजनीत के उच्च कोटि के मूल्यों की स्थापना करेंगे।

बाकी वैसे इस तरह की सनसनीखेज बातें तो अन्य राजनीतिक दलों के संदर्भ में भी सुनने को मिलती रहती हैं। क्यों कि विकृत मानसिकता के लोग तो अन्य राजनीतिक दलों में भी हैं। जिन्होंने अपना चरित्र खूंटी पर टांग दिया है और ईमान गिरवी रख दिया है।

प्रवृत्ति ऐसी है कि संस्कारों एवं मूल्यों से दूर-दूर तक का कोई वास्ता नहीं और दावे ऐसे कि उनसे आदर्श व्यक्ति पूरे संसार में पैदा ही न हुए हों। ऐसी विदूषक प्रवृत्ति के लोगों के चलते ही समाज में विश्वास का संकट बढ़ रहा है तथा नैतिक पतन का दौर जारी है।

टिकट देने या टिकट पाने के लिए आर्थिक समझौता कम लेकिन चारित्रिक समझौता बड़ा गुनाह है। लेकिन कतिपय लोगों की महत्वाकांक्षा हिलोरेंं मार रही है, जिसे पूरा करने के लिये वह कुछ भी करने को बेताब हैं। यह अवनति के प्रमाण हैं, जो किसी व्यक्ति की प्रामाणिकता व प्रतिबद्धता को तार-तार करने के लिए काफी हैं।

हम यहां बात आम आदमी पार्टी की मुश्किलों की कर रहे हैं तो अभी कुछ दिन पूर्व ही पार्टी के पंजाब प्रदेश के संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर को उनके पद से हटाकर इस पद पर नए व्यक्ति की नियुक्ति की गई है। बताया जा रहा है कि छोटेपुर के प्रकरण की जांच-पड़ताल चल रही है।

छोटेपुर पार्टी के बुजुर्ग नेता हैं। उनने पंजाब में पार्टी को मजबूत बनाने के लिए खूब मेहनत की है। ऐसे में छोटेपुर पर चाहे जो भी आरोप रहे हों लेकिन उन्हें इस तरह से पद से हटाने का निर्णय ठीक नहीं था।

पहले उनके प्रकरण की जांच-पड़ताल होती तथा बाद में उन्हें पद से हटाया जाता तो इस निर्णय को तो सराहनीय माना जाता लेकिन पहले उनको पद से हटा दिया और अब जांच-पड़ताल कराने की बात की जा रही है। कोई भी निर्णय लेने से पहले जरा छोटेपुर की उम्र व आम आदमी पार्टी के लिये उनके द्वारा दिए गए योगदान कपा भी लिहाज तो कर लिया जाता।

जहां तक आरोपों का सवाल है तो आरोप तो अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया पर भी लगभग हर रोज लगते रहते हैं, तो फिर वह अपने पद से इस्तीफा क्यों नहीं देते? क्या पार्टी के प्रावधान व मापदंड सिर्फ दूसरे नेताओं और वालेंटियर्स के लिए ही हैं?

केजरीवाल जब देखो तब खुद के ईमानदार होने की रट लगाते हैं। बात-बात पर मर जाने-मिट जाने पर भी गलत काम न करने की बात कहते हैं। लेकिन सिर्फ बातें कहने से क्या होता है। बातों का असर व्यवहार पर भी तो दिखना चाहिए। वैसे भी दूसरों पर कीचड़ उछालना आसान है लेकिन अपन दामन बेदाग रखना काफी चुनौतीपूर्ण है।

डींगें हांकने और सब को नीचा दिखाने से फिर नरेन्द्र मोदी जैसी फजीहत होने लगती है। खुद की ईमानदारी व श्रेष्ठता की किंचित चर्चा करना वर्जित नहीं है लेकिन दूसरों को हमेशा नीचा ही दिखाते रहना तो अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मारने जैसा है।

2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेन्द्र मोदी ने अपने राजनीतिक लाभ के चक्कर में राजनीतिक संस्कारों को खूब तहस नहस किया। राजनीति के संत पुरुषों का भी जमकर बेवजह मजाक उड़ाया। राजनीतिक वैमनस्य का ऐसा बीजारोपण किया कि अब मोदी पर चौतरफा हमले हो रहे हैं और तो और जेएनयू के छात्र कन्हैया कुमार के द्वारा भी यह कहा जा रहा है कि मोदी ने कभी चाय बेची हो या न बेची हो लेकिन देश जरूर बेच डालेंगे।

यहां पर इस तरह के उदाहरण देने का तात्पर्य यह है कि मोदी ने अगर लोकसभा चुनाव से पहले जरा राजनीतिक संस्कारों का ध्यान रखा होता तथा विरोधियों के अनावश्यक मान-मर्दन पर अपनी ऊर्जा खपाने के बजाय उनका लिहाज किया होता तो आज लोग मोदी का भी लिहाज करते।

केजरीवाल को भी इन संदर्भों का ध्यान रखना जरूरी है। राजनीति, पद, प्रतिष्ठा मानवीय मूल्यों एवं सरोकारों से बढक़र नहीं हैं। केजरीवाल अगर राजनीति के शिखर पर पहुंचना चाहते हैं तो उनका व्यक्तित्व व कृतित्व भी उच्च कोटि का होना चाहिए। आम आदमी पार्टी की फजीहत का जो दौर जारी है, उसे रोकने की दिशा में केजरीवाल प्रभावी पहल करें वरना बड़े राजनीतिक नुकसान के लिये उन्हें तैयार रहना होगा।

: सुधांशु द्विवेदी

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