अजमेर। अजमेर विकास प्राधिकरण के बहुचर्चित फर्जी पट्टा आवंटन प्रकरण की आंच भूसे के ढेर की भांति भीतर ही भीतर सुलगती जा रही है। दो बेशकीमती प्लॉट की लीज डीड जारी करने के मामले की जांच कर रहे अधिकारी एडीए के उपायुक्त सुखराम खोखर ने अपनी ओर से जांच पूर्ण कर रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है। अब एडीए आयुक्त एवं कलेक्टर गौरव गोयल जांच के आधार पर आगामी कार्रवाई तय करेंगे।
सूत्रों की माने तो प्रारंभिक जांच में बाबू करण सिंह के साथ ही योजना शाखा के अन्य बाबू अशोक रावत को आपराधिक कृत्य में शामिल पाया गया। जांच रिपोर्ट में अशोक के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज कराने की अनुशंसा की गई है।
विस्तृत जांव के आधार पर जो नतीजा सामने आया है उसके अनुसार जाली आवंटन पत्र के जरिए दो बेशकीमती प्लॉटो के पट्टे जारी कराने में योजना शाखा के वरिष्ठ लिपिक अशोक रावत की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। मामले से जुडी फाइलों को अशोक ही हर अफसर और कार्मिक के पास ले गया था और अपने खास आदमी का काम होने की बात कहकर जल्द निपटाने की आड में जालसाजी को अंजाम दिया।
इस मामले में बाबू करण सिंह पहले ही नामजद है क्योंकि संबंधित फाइलें उसके चार्ज में थीं। वहीं फाइलों पर नोटिंग में लापरवाही के लिए तत्कालीन एटीपी नवनीत शर्मा तथा एकल खिड़की के एक बाबू को लापरवाह पाया गया है।
वहीं अशोक रावत की सिफारिश पर पट्टों पर साइन करने वाली योजना शाखा की तत्कालीन प्रभारी रश्मि बिस्सा को भी लापरवाही का दोषी पाया गया है। अशोक रावत के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज करवाने की अनुशंसा की गई है। उधर मामले की जांच कर रही पुलिस ने भी बिस्सा को कुछ सवालों की लिस्ट थमाई हुई है जिसने जवाब का इंतजार है।
बतादें कि पंचशील नगर स्थित दो बेशकीमती प्लॉटो के पट्टे जाली आवंटन पत्र के आधार पर तैयार कर जारी करवा लिए गए थे। तीन माह पहले एडीए ने इस मामले में एफआईआर दर्ज करवाई थी। इसके आधार पर भू कारोबारी बशीर खा चीता और भोलू खां की गिरफ्तारी हो चुकी है।
यूं खेला गया जालसाजी का खेल
गौरतलब है कि भूमि के बदले भूमि के लिए समझौता समिति की 2003 में बैठक हुई थी जिसकी प्रोसेडिंग के प्रस्ताव संख्या 31 का जाली हवाला देकर एक आवंटन पत्र तैयार किया गया। दीगर बात यह है कि यह प्रस्ताव पंचशीलनगर योजना का न होकर वैशाली नगर योजना का था। इस प्रस्ताव के तहत गोविंद राम तेली और जसवंत सिंह को वैशाली नगर में दो अलग अलग प्लॉट आवंटित भी किए जा चुके हैं।
एडीए ने जो रिपोर्ट पुलिस को जो प्राथमिकी दी उसका सार यही है कि बलदेवनगर माकडवाली रोड निवासी बशीर खान पुत्र करामात खान ने कंप्यूटर, प्रिंटर, स्कैनर फोटोकॉपी मशीन का उपयोग कर भोलू खां के नाम से कूटरचित दस्तावेज तैयार कर एडीए को अंधेरे में रख सारी जालसाजी का अंजाम दिया। सूत्र बताते हैं कि भोलू खां अनपढ शख्स है यही कारण है कि उसने एडीए की सिंगल विंडो पर फाइल जमा करते समय दस्तखत करने की बजाय अंगूठा निशानी लगाई है।
प्रशासनिक जांच में इस मामले में मास्टर माइंड माने जा रहे बशीर खान तथा एडीए के बाबू अशोक रावत की मुख्य भूमिका मानी जा रही है। अशोक रावत व बशीर खान ने मिलकर एडीए के एक अन्य बाबू करण सिंह को साथ मिला लिया। प्रारंभिक जांच के दौरान सिंगल विंडो पर कार्यरत एक क्लर्क तथा एटीपी नवनीत सिंह, रश्मि बिस्सा की भी भूमिका है।
बशीर और भोलू खां जेल में
सिविल लाइन थाना पुलिस ने एडीए से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर धारा 420, 467, 468, 471 के तहत केस दर्ज किया था। मजे की बात यह है कि केस दर्ज होने के 50 दिन तक पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। आरोपी खुलेआम एडीए परिसर में बेखौफ घूमते रहे। आखिरकार जब दबाव बढा तो पुलिस ने बशीर खान और भोलू खां को 7 जून को अरेस्ट कर लिया। दीगर बात यह है कि बशीर की गिरफ्तारी एडीए परिसर से ही हुई।
तीन दिन रिमांड पर रखने के बावजूद पुलिस दोनों से कुछ खास नहीं उगलवा पाई और न ही कूटरचित दस्तावेज तैयार करने में उपयोग में लाए गए उपकरणों की बरामदगी हो सकी। रिमांड अवधि पूरी होने के बाद बशीर खान और भोलू खां को जेल भेज दिया गया। इस दौरान जैसे ही इन दोनों की गिरफ्तारी हुई वैसे ही एपीओ हुआ एडीए का बाबू अशोक रावत और सस्पेंड चल रहा क्लर्क करण सिंह भूमिगत हो गए।
इन प्लाटों को लेकर रचा गया खेल
पंचशील नगर योजना में स्थित प्लॉट नंबर बी 251 (175 वर्ग मीटर) तथा सी 161 (252 वर्ग मीटर) के 14 फरवरी 2017 को अजमेर विकास प्राधिकरण ने पट्टे जारी कर दिए गए थे। दस्तावेज पूर्ण हो जाने के बाद जालसाजी करने वाले रजिस्ट्री कराते उससे पहले किसी अज्ञात शख्स की सूचना पर मामले का भंडाफोड हो गया।
चैयरमेन हेडा ने दिया दर्द अब बन रहे दवा
बताया जा रहा है कि एडीए चैयरमेन शिवशंकर हेडा की सजगता से ही सारे मामले का पर्दाफाश हुआ था। फर्जी पट्टे तैयार होकर एडीए से निकल जाने की खबर भी उन्हें ही लगी थी। उस दौरान हेडा अजमेर से बाहर थे, लेकिन किसी ने उन्हें गुप्त रूप से इस सारे घटनाक्रम की जानकारी दी दी थी। इसके बाद हेडा हरकत में आए और एडीए के अधिकारियों को दौडाया। उनके प्रयासों के चलते ही आरोपी रजिस्ट्री नहीं करा सके और एडीए को करोडों रुपए की चपत लगने से रुक गई।
इस मामले में जब एडीए के अधिकारियों की संलिप्ता को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि उन्होंने खुद सारे मामले की अपने स्तर पर भी पडताल की साथ ही अधिकारियों और कर्मचारियों से भी इस बारे में पुख्ता जानकारी ली।
अधिकारियों की सजगता के चलते ही समय रहते मामला उजागर हुआ साथ ही आरोपी पकडे गए। गलत तरह से पट्टे जारी हो जाने को लेकर किसी अधिकारी को दोषी ठहराना उचित नहीं, हां, इसमें एडीए की चरफ जो चूक हुई है, लेकिन जो कर्मचारी इसमें लिप्त पाए गए उनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई के तत्काल निर्देश दे दिए गए थे।
प्रशासनिक स्तर पर भी जांच चल रही है। जो दोषी पाया जाएगा उसे किसी भी सूरत में नहीं बख्शा जाएगा। उन्होंने कहा कि इसमें कोई दोराय नहीं कि फर्जी तरीके से पट्टा तैयार करवा लेने के बाद भी एडीए की सजगता के चलते ही आरोपी रजिस्ट्री नहीं करा सके।