सबगुरु न्यूज-सिरोही। बडा अच्छा संयोग था 15 अगस्त को, स्वतंत्रता दिवस और जन्माष्टमी एक ही दिन थे। सवेरे अरविंद पेवेलियन में स्वतंत्रता दिवस के मुख्य कार्यक्रम में जिला प्रशासन की सजाई थाली से गोपालन राज्यमंत्री ओटाराम देवासी ने पुरस्कार की पंजीरी बांटी तो रात में मंदिरों में कृष्ण जन्म के बाद पंजीरी बंटी। दोनों कार्यक्रमों एक बडा अंतर रह गया।
सवेरे गोपालन मंत्री ने पंजीरी बांटते हुए बाढ के दौरान दो सौ लोगों की जान बचाने वाले रणछोड को छोड दिया, लेकिन रात को 12 बजे जिला मुख्यालय के कृष्ण मंदिरों में रणछोड (भगवान कृष्ण का उपनाम) को भोग लगाए बिना किसी भक्त ने पंजीरी का प्रसाद नहीं लिया। शायद यही अंतर है नेताओं और साधारण लोगों में। तभी लोग इस बार भी कह्ते दिखे कि अंधा बांटे रेवडी फिर-फिर अपनों को दे। इसीलिए हर बार की तरह इस बार भी स्वतंत्रता दिवस पर बांटे गए पुरस्कार को सिरोही के दर्शकों ने इस बार भी प्रक्रियागत खामियों के कारण इसे निन्दा ज्यादा मिली।
रणछोड वो व्यक्ति है जिसने रेबारियों का गोलिया के अपने ग्रामीणों के साथ मिलकर कृष्णगंज के निकट पानी की धाराओं में फंसे गुजरात के 150 पर्यटकों का न सिर्फ जीवन बचाया बल्कि अपने गांव के हर घर में अंतिम दाना रहने तक इन लोगों को तीन दिन तक भोजन करवाया। इस गांव के लोगों ने जब खाद्य सामग्री पूरी तरह से खतम हो गई तब तक इन 150 लोगों को भोजन करवाया।
अंत में जब सारी खद्या समाग्री खतम हो गई और कुछ चावल बचे तो अपने जानवरों का दूध निकालकर खीर बनाकर सबका पेट भरा। तीन दिन तक सिरोही जिला प्रशासन को इतनी संख्या में पर्यटकों के पानी में फंसे होने की जानकारी तक नहीं थी। जैसे तैसे इन पर्यटकों में से किसी ने रिस्क लेकर उंचे स्थान पर जाकर गुजरात में प्रशासन से संपर्क किया। वहां से कई माध्यमों से होता हुआ यह संदेश सिरोही जिला प्रशासन के पास पहुंचा। इस खबर ने मीडिया में सुर्खी बटोरी।
इसके बावजूद भी स्वतंत्रता दिवस पर बाढ के दौरान जिन लोगों को सम्मानित किया गया, उनमें अपने घर का अंतिम दाना तक लुटा देने वाले इस गांव के ग्रामीणों के प्रति कृतज्ञता जताने तक की प्रशासन को नहीं सूझी। इसका सीधा मतलब यही है कि प्रशासन ने रेबारियों के गोलिया के अनसंग हीरोज की बजाय उनके सामने आकर अपने कार्य को दिखाने और सोशल मीडिया पर फोटोज प्रसारित करने वालों को ही इस सूचि में शामिल किया।
अव्वल तो इस तरह के किसी अलग पुरस्कार की कोई व्यवस्था थी नहीं। इसे प्रशासन ने अपने स्तर पर ही तय किया था तो यह दलील भी गैर लाजिमी है कि रणछोड और उसके गांव वालों ने खुद या किसी अन्य व्यक्ति ने उसके कार्यों को सराहने के लिए अनुरोध नहीं किया था। यदि यह ग्रामीण इतने चपल होते तो अपने घर का अंतिम दाना पानी में फंसे पर्यटकों को खिलाने की बजाय किसी दूसरे का माल उन्हें खिलाकर फोटो खिंचवाकर श्रेय लूट लेते, जैसा कि इस बाढ के दौरान कई बार देखने और सुनने में भी आया है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि खुद गोपालन मंत्री ओटाराम देवासी ने अरविंद पेवेलियन में पढे गए अपने भाषण में रेबारियों के गोलिया की इस घटना का जिक्र किया, लेकिन उन्होंने पुरस्कार बांटते हुए यह तक नहीं जानने की कोशिश की कि इस गांव के किसी व्यक्ति को स्वतंत्रता दिवस पर सम्मानित किया जा रहा है या नहीं। ओटाराम देवासी ने लिखित भाषण पढा था तय है कि भाषण वाला पेपर उनके पास रात को या सवेरे जल्दी आ गया होगा।
इसके बावजूद उन्होंने यह जानने की कोशिश नहीं की कि रणछोड या रेबारियों के गोलिया को सम्मानित किया जा रहा है या नहीं। प्रशासन से ज्यादा दूरदर्शी तो आदर्श फाउंडेशन निकली जिसने उसके कार्यों के लिए 6 अगस्त को ही रामरसोडे के उद्घाटन के दौरान रणछोड का न सिर्फ सम्मान किया बल्कि उनके गांव के लोगों के त्याग और समर्पण को भी सराहा।
वैसे कार्यक्रम के बाद में ओटाराम देवासी उनके गांव गए थे। वहां जाकर आदर्श फाउंडेशन के कार्यक्रम के दौरान किए गए वादे के अनुसार गोलिया के लिए पानी की व्यवस्था को पांच लाख रुपये की घोषणा की। लेकिन, यह सबकुछ गोलिया के अनसंग हीरोज के साथ न्याय नहीं करवा सकता।
गायों को बचाने पर गिरफ्तारी की चर्चा भी
गोपालन मंत्री और जिला प्रशासन अतिवृष्टि के दौरान अर्बुदा गोशाला में हुई गायों की मौतों को लेकर भी मीडिया और विपक्ष के निशाने पर रहे। नेशनल मीडिया और स्थानीय मीडिया में गायों के गोशाला के पास दलदल में फंसने और उन्हें जिंदा ही कुत्तों द्वारा नोचने की खबरों के प्रकाशन और प्रसारण ने भी यहां की व्यवस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाया, लेकिन सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक घटना वो थी, जिसमें इन गायों को अपने साथियों के साथ दलदल से निकालने वाले भाटकडा युवक के साथ कथित रूप से प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष सरकारी कार्मिकों ने मारपीट की और उसे बाद में शांति भंग में गिरफ्तार कर लिया।
भैराराम के मौहल्ले और उसके जानकारों से पूछने पर यह जानकारी मिली कि उसकी किसी से कोई लडाई नहीं हुई थी और न ही किसी ने उसके खिलाफ पुलिस में शिकायत की थी। उसकी गिरफ्तारी का कारण अब भी एक रहस्य बना हुआ है। सोशल मीडिया पर देवासी समाज के एक नेता ने इसकी जमकर मुखालफत भी कि लेकिन सिरोही विधायक की इस मामले में संज्ञान नहीं लिये जाने पर भी सवालिया निशान लगता है। वैसे उनके समर्थकों का यह भी कहना है कि उनके फोन पर ही भैराराम को छोडा गया, लेकिन सवाल यह कि आखिर उसे गिरफ्तार किया ही क्यों गया था।
-parikshit mishra