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पूजा को मिला पीहर, दादी का आंचल और जमीन का हक - Sabguru News
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पूजा को मिला पीहर, दादी का आंचल और जमीन का हक

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पूजा को मिला पीहर, दादी का आंचल और जमीन का हक

अजमेर। कहानी पूरी फिल्मी है। बाप का साया सिर से उठ जाना, मां का दूसरी शादी रचा लेना, दादी और चाचा का पोती को हक देने से इंकार, अदालत, गांव वालों की गवाही, दादी का दिल पसीजना, पोती को उसका हक मिल जाना और गिले शिकवे भूलकर परिवार का फिर से एक हो जाना। राजस्व लोक अदालत के तहत गिरवरपुरा में आयोजित शिविर में जब दादी और पोती का मिलनहुआ तो सभी की आंखों में आंसू थे।

यह कहानी कई साल पहले सावर तहसील के नापाखेड़ा गांव से शुरू हुई। गांव के स्व. देवराज मीणा की पुत्री पूजा ने उपखण्ड न्यायालय में वाद दायर किया कि उसे उसकी पैतृक जमीन का हक दिलाया जाए। पूजा का कहना है कि उसकी मां सीमा ने करीब 15 साल पूर्व उसके पिता देवराज को छोड़कर भीलवाड़ा के जालमपुरा में रहने वाले केसरलाल फेडवा से ब्याह रचा लिया।

इसके कुछ समय बाद पूजा के पिता देवराज की भी मृत्यु हो गई। मां तो छोड़कर गई ही, पिता का साया भी सिर से उठ गया। ऊपर वाले का सितम यहीं पर नहीं रूका, पूजा के चाचा खेमराज और दादी गलकू देवी ने उसे अपना मानने तक से इंकार कर दिया। इस बीच मां की ममता जागी और सीमा मीणा पूजा को अपने साथ जालमपुरा ले गई। पूजा ने वहीं पढाई की और उसका ब्याह भी हो गया।

इस बीच पूजा जैसे ही बालिग हुई और अपने हक को जानने समझने लगी। उसने दादी से स्व. पिता का हिस्सा मांगा। इस बार भी उसे इनकार और तिरस्कार मिला। हालात से हारी पूजा ने पिछले साल उपखण्ड न्यायालय में न्याय की गुहार की। दिन बीतते गए और सरकारी कार्यवाही चलती रही। इस बीच राज्य सरकार का राजस्व लोक अदालत अभियान पूजा के लिए वरदान बनकर सामने आया।

प्रशासन ने दोनों पक्षों को बुलाकर समझाईश की तो दादी गलकू और चाचा खेमराज ने पूजा को अपना वारिस मानने से ही इनकार कर दिया। इस बीच गांव वालों को बुलाकर गवाही ली गई तो पता चला कि पूजा देवराज की पुत्री और गलकू देवी की पोती ही है। उपखण्ड अधिकारी सुरेश कुमार बुनकर ने बताया कि दोनों पक्षों को एक बार पुनः बुलाकर समझाया गया तो आखिरकार दोनों पक्षों में जमी बर्फ पिघल ही गई।

दादी और चाचा ने स्वीकार कर लिया कि पूजा उनके ही परिवार का हिस्सा है। पूजा ने भी सहमति दे दी कि उसके पिता का हिस्सा भले ही कागजों में उसके नाम कर दिया जाए लेकिन खेती चाचा ही करते रहे। मैं तो बस इतना चाहती हूं कि मुुझे मेरा पीहर मिल जाए और बेटी के रूप में स्वीकार किया जाए। दादी गलकू देवी से भी आखिरकार रहा नहीं गया और उन्होंने भी आंखों में आंसू भरकर पूजा को गले लगा लिया। गिरवरपुरा के सरपंच और ग्रामीणों ने भी परिवार को बधाई और शुभकामनाएं दी।