मुंबई। इस शुक्रवार को रिलीज होने जा रही अक्षय कुमार की फिल्म ‘जॉली एलएलबी 2’ के साथ कानूनी जंग का नतीजा जो भी रहा हो, लेकिन इस जंग में सेंसर बोर्ड की गर्दन भी फंस गई और फिल्म इंडस्ट्री में अब सेंसर बोर्ड की वैधता को लेकर सवाल किए जा रहे हैं।
महेश भट्ट मानते हैं कि यह गंभीर मुद्दा है और निर्माताओं को आने वाले वक्त में परेशानी होगी। अब तक तो फिल्मों को सेंसर बोर्ड ही पास करता था। इस फिल्म में हाईकोर्ट की भूमिका ने मामले को पेंचीदा बना दिया है। जरूरत इस बात की है कि सेंसर बोर्ड खुद आगे आकर इस मामले को उठाए और अपनी वैधता स्पष्ट करे।
निर्माताओं के संगठन गिल्ड के प्रमुख और महेश भट्ट के भाई मुकेश भट्ट भी मानते हैं कि ये चिंता की बात है। उन्होंने कहा कि हम सब कानून का सम्मान करते हैं और फैसले को लेकर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते, लेकिन यहां मामला सेंसर बोर्ड का है, जो इस केस में अजीब स्थिति में फंस गया।
वे कहते हैं कि भविष्य के लिए जरूरी है कि सेंसर बोर्ड की भूमिका को स्पष्ट कर दिया जाए। इसके लिए सेंसर बोर्ड को ही पहल करनी चाहिए। वे इस बात पर भी जोर देते हैं कि केंद्र सरकार को इस मामले में दखल देना चाहिए और स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए कि आगे क्या होगा। इस पूरे मामले पर सेंसर बोर्ड खामोश है।
बोर्ड के चेयरमैन पहलाज निहलानी भी कुछ बोलने से बचते नजर आ रहे हैं। दूसरी ओर, सेंसर बोर्ड के एक सदस्य ने माना कि बोर्ड की किरकिरी हुई है। सेंसर बोर्ड की गाइड लाइन के हिसाब से अगर निर्माता को सेंसर बोर्ड के किसी फैसले पर एतराज होता है, तो सबसे पहले एपीलेट ट्रिब्यूनल में मामला जाता है।
वहां भी निपटारा नहीं होता, तो सेशन कोर्ट होते हुए हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट जाता है। कोई भी अदालत सबसे पहले सेंसर बोर्ड के फैसले का संज्ञान लेती है। जॉली एलएलबी 2 के मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ। सबसे पहले फिल्म के सेंसर बोर्ड से पास होने से पहले ही मुंबई के एक वकील ने प्रोमोज के आधार पर मुंबई हाईकोर्ट में केस दायर कर दिया।
इससे पहले हाईकोर्ट में सुनवाई शुरू होती, सेंसर बोर्ड ने बिना किसी कट के फिल्म को पास कर दिया। हाईकोर्ट ने वकील की याचिका पर सुनवाई करते हुए तीन वकीलों के पैनल का गठन किया और फिल्म देखकर रिपोर्ट अदालत में जमा करने को कहा, तो फिल्म की प्रोडक्शन कंपनी (स्टार फॉक्स) ने वकीलों के गठन के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सर्वोच्च अदालत ने मामला हाईकोर्ट में लौटा दिया और हाईकोर्ट से वकीलों के पैनल की रिपोर्ट पर फैसला सुनाने को कहा।
पैनल गठित करने के हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करने की अपील को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। मजे की बात ये रही कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में सेंसर बोर्ड का कहीं कोई जिक्र नहीं किया। हाईकोर्ट ने वकीलों के पैनल की रिपोर्ट के आधार पर फिल्म से चार सीन काटने का आदेश दिया।
फिल्म प्रोडक्शन ने हाईकोर्ट के फैसले को स्वीकार करते हुए न सिर्फ सीन काट दिए, बल्कि सुप्रीम कोर्ट से केस भी वापस ले लिया। इस तरह से फिल्म के रिलीज पर मंडराता संकट तो खत्म हो गया, लेकिन सेंसर बोर्ड की गर्दन जरूर इस कानूनी जंग में फंस गई।
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