लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी ने सूबे में प्रचण्ड बहुमत हासिल करने के बाद आखिरकार शनिवार को नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक में मुख्यमंत्री और दो उपमुख्यमंत्रियों का नाम सार्वजनिक कर दिया।
इनमें गोरक्षपीठाधीश्वर एवं सांसद योगी आदित्यनाथ को जहां मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया गया है। वहीं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. दिनेश शर्मा और प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य उपमुख्यमंत्री होंगे।
अब रविवार को नए मुख्यमंत्री, दोनों उपमुख्यमत्रियों सहित मंत्रिमण्डल का शपथ ग्रहण समारोह कांशीराम स्मृति उपवन में आयोजित किया जाएगा। बैठक में केन्द्रीय पर्यवेक्षक के रूप में वेंकैया नायडू और भूपेन्द्र यादव मौजूद रहे।
26 साल की उम्र में पहली बार सांसद बनने से लेकर सीएम तक सफर योगी आदित्यनाथ का जन्म 5 जून 1972 को उत्तराखण्ड में हुआ था, तब उत्तराखण्ड अविभाजित उत्तर प्रदेश का हिस्सा था।
योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से पांच बार सांसद रह चुके हैं। वह सबसे पहले 26 साल की उम्र में 1998 में लोकसभा सांसद बने थे। अब तक योगी आदित्यनाथ 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में सांसद चुने जाते आये हैं।
साल 2014 में गोरखनाथ मंदिर के महन्त अवैद्यनाथ के स्वर्गवास के बाद वह महन्त यानी गोरक्ष पीठाधीश्वर चुन लिए गए। गोरखनाथ मन्दिर के महन्त अवैद्यनाथ ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था।
इसके अलावा योगी आदित्यनाथ हिन्दू युवा वाहिनी के संस्थापक भी हैं। योगी आदित्यनाथ गढ़वाल विश्वविद्यालय से गणित में बीएससी की डिग्री हासिल कर चुके हैं। उनका पुराना नाम अजय सिंह नेगी है। वहीं संन्यासी होने के बाद उन्हें योगी आदित्यनाथ नाम दिया गया।
विधानसभा चुनाव में वह भाजपा के स्टार प्रचारक थे। चुनाव के दौरान ही योगी को सीएम बनाने की मांग उठने लगी थी, लेकिन खुद योगी सीएम के सवाल पर कुछ कहने से बचते रहे। उन्होंने विधायक दल की बैठक में ही मुख्यमंत्री का चयन होने की बात कही।
हालांकि उनके चाहने वाले उन्हें सीएम के पद पर देखना चाहते थे। इसके लिए पूर्वांचल में कई जगह यज्ञ-हवन होते रहें। वहीं अब योगी आदित्यनाथ के शुभचिन्तकों की मुराद पूरी हुई है।
भाजपा के फायरब्राण्ड नेता माने जाने वाले योगी की पूर्वांचल में गहरी पैठ है। राजपूत बिरादरी से आने वाले योगी की हिन्दुत्व वाली छवि और उनके मुखर बयान उन्हे हमेशा सुर्खियों में बनाते रहे हैं।
वहीं इस बार पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने योगी का बेहद सधे हुए अन्दाज में अपनी रणनीति के तहत इस्तेमाल किया। उन्हें न सिर्फ पूर्वांचल में पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में उतारा गया, बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी योगी आदित्यनाथ की जनसभाएं करायीं गई। इसका फायदा भी भाजपा को मिला और उसने प्रदर्शन से विरोधियों की बोलती बन्द कर दी।
इससे पहले शनिवार सुबह नई दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व ने एक बार फिर मुख्यमंत्री के बारे में गहन मन्थन किया। इस पर चर्चा के लिए प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य और प्रदेश महामंत्री (संगठन) सुनील बन्सल को राजधानी लखनऊ जाने वाली अपनी फ्लाइट केन्सिल करनी पड़ी।
वहीं योगी आदित्यनाथ को भी नई दिल्ली से विशेष विमान भेजकर गोरखपुर से बुलाया गया। इसके बाद से ही सीएम पद को लेकर उनके नाम की चर्चायें तेज होने लगीं और आखिरकार शाम को लखनऊ में उनके नाम का ऐलान कर दिया गया।
फर्श से अर्श तक का रहा केशव का सफर
उप मुख्यमंत्री बनने वाले केशव प्रसाद मौर्य की बात करें तो उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने पहले ओबीसी वर्ग को अपने से जोड़ने की पहल की। विधानसभा चुनाव में उसे इस दिशा में कामयाबी भी मिली। बेहद गरीबी में पले-बढ़े केशव विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के पूर्व पदाधिकारी रह चुके हैं।
वह अशोक सिंघल के बेहद करीबी थे और राम मन्दिर आन्दोलन के दौरान केशव के लिए विशेष तौर पर अयोध्या प्रान्त की रचना की गयी थी। इसमें उन्हें प्रान्त संगठन मंत्री बनाया गया था। वहीं केशव के जाने के बाद अयोध्या प्रान्त की संरचना को ही समाप्त कर दिया गया। केशव को राजनीति में लाने का श्रेय भी अशोक सिंघल को जाता है।
इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद पश्चिमी सीट से बाहुबली अतीक अहमद के खिलाफ दो बार चुनाव लड़कर सुर्खियां बटोरी। हालांकि उन्हें हार नसीब हुई। इसके बाद वह कौशाम्बी की सिराथू विधानसभा से पहली बार विधायक बनने में कामयाब हुए।
वहीं विधायक रहते ही उन्होंने 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। केशव राजनीति में शून्य से शुरुआत करते हुए शिखर तक पहुंचे हैं। उन्होंने बहुत कम समय में लोकप्रियता भी हासिल की है। इसलिए पार्टी ने मुख्यमंत्री पद के लिए उनके नाम का ऐलान किया। सभी को साथ लेकर चलने की कार्यशैली है
लखनऊ के मेयर डॉ. दिनेश शर्मा
इसी तरह एक और उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा की बात करें तो राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं लखनऊ के मेयर 53 वर्षीय दिनेश शर्मा पार्टी के बड़े नेताओं में हैं। उनकी कार्यशैली से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक बेहद प्रभावित हैं। यही वजह है कि पीएम मोदी के करीबी अमित शाह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर दिनेश शर्मा को 16 अगस्त 2014 को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से नवाजा गया। शाह खूद भी दिनेश शर्मा को पसन्द करते हैं।
उनको जब भाजपा के सदस्यता अभियान का इंचार्ज बनाया गया था, उस समय पार्टी सदस्यों की संख्या एक करोड़ से बढ़कर 11 करोड़ के ऊपर पहुंच गई थी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से गहरा नाता रखने वाले और शान्त स्वभाव के दिनेश शर्मा सभी को साथ लेकर चलने की कार्यशैली में यकीन करते हैं।
वह वर्ष 2008 के बाद 2012 में फिर जनता के अपार समर्थन से लखनऊ के मेयर बनने में सफल रहे। डॉ. दिनेश शर्मा आक्रामक राजनीति से दूर रहते हुए खामोशी से संगठन से मिले दायित्व को निभाना पसन्द करते हैं। इस वजह से विरोधी दल के नेताओं के बीच भी उनका बेहद सम्मान है।
इससे पहले सूबे में कमल खिलने के बाद से ही भाजपाईयों में जहां जबरदस्त उत्साह का माहौल था। वहीं भगवा खेमें में मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरे की तलाश भी तेजी से की जा रही थी। सीएम पद की दौड़ में कई नेताओं का नाम था। इनमें केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर केन्द्रीय मंत्री मनोज सिन्हा, प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य और सांसद योगी आदित्यनाथ सहित कई अन्य नामों की चर्चाएं थीं।
बाद में इस दौड़ में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. दिनेश शर्मा का नाम भी जुड़ गया। हालांकि राजनाथ सिंह के इनकार करने के बाद मनोज सिन्हा इस रेस में काफी आगे थे और शुक्रवार तक उन्हें भावी सीएम के तौर पर भी देखा जा रहा था, लेकिन शनिवार सुबह होते-होते मनोज सिन्हा ने स्वयं साफ कर दिया कि वह सीएम की रेस में शामिल नहीं हैं।
इसके बाद जिस तरह से नई दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने योगी आदित्यनाथ को विशेष विमान से नई दिल्ली बुलाया और बैठक में प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य सहित प्रदेश महामंत्री (संगठन) सुनील बन्सल शामिल हुए, उससे तस्वीर कुछ साफ होने लगी थी। वहीं शाम को विधायकों की बैठक के बाद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री और दिनेश शर्मा व केशव मौर्य को उप मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की गई।